भारत के ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था खेती और पशुपालन पर निर्भर है. गांवों में किसान गाय और भैंस के पालन से बढ़िया मुनाफा कमा रहे हैं. लोगों को भैंसा और सांड पालन के फायदे नहीं पता होते हैं जिस कारण लोग इन्हें आवारा छोड़ देते हैं. ये आवारा पशु आपको सड़कों पर घूमते नजर आ जाएंगे. इन भैंसा और सांडों को खुला छोड़ने की जगह किसान इनका पालन कर काफी बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं.
सांड का चुनाव
सांड का चयन उसकी पीढ़ीयों पर निर्भर करता है. इनके दुग्ध उत्पादन की क्षमता के रिकार्ड देखने के बाद ही इनका चयन करना चाहिए. इसको वंशावली विधि चयन कहते हैं.
सांड संक्रामक बीमारियों से ग्रसित न हो. उसका स्वास्थ्य अच्छा और सामान्य हो. उसका नियमित रूप से टीकाकरण हुआ हो.
सांड के चुनाव में अधिक उम्र के सांड की तुलना में युवा सांड को चुनना चाहिए क्योकि वे प्रजनन के लिए अधिक सक्षम एवं योग्य होते हैं.
सांड का शरीर लंबा, ऊँचा तथा हष्टपुष्ट होने के साथ-साथ उसकी त्वचा पतली और चमकीली होनी चाहिए.
सांड प्रबंधन की अवधि
प्रजनन पूर्व प्रबंधन-
प्रजनन काल प्रबंधन-
युवा सांडो का प्रजनन अवधि 60 दिन तक की होती है. इस दौरान सांडों के अति उपयोग से वजन घटना, काम भावना कम होना जैसी समस्याओं से भी निदान पाना होता है. अत्यधिक कम वजन युवा सांडों के विकास को रोकता है और ऐसे दुर्बल सांड भविष्य में उपयोग के नहीं रह पाते हैं. प्रजनन में उपयोग किए जाने वाले सांडों को अतिरिक्त दाना व तेल से मिश्रित खाद्य पदार्थों को देना चाहिए.
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प्रजनन काल उपरांत प्रबंधन-
ब्रिडिंग अवधि के बाद 8 महीनों तक युवा सांडों के उच्च पोषण का ध्यान रखना चाहिए ताकि उसके शरीर का अच्छी तरह से विकास हो पाए. सांड के पोषण का स्तर उसके वर्तमान शारीरिक संरचना तथा भविष्य के परिपक्व शारीरिक संरचना को ध्यान में रखकर करना चाहिए. इस अवधि में सांडों को गायों से अलग रखना चाहिए तथा ठंड के महीनों में सांडों को शीतलहर से भी बचा कर रखना होता है, अन्यथा अत्यधिक ठंड सांडों के प्रजनन क्षमता को कम कर देती है.