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Updated on: 31 October, 2020 12:00 AM IST

उदगम स्थान: इस नस्ल का उदगम स्थान पश्चिम राजस्थान और सरहद पार सिन्ध पाकिस्तान है. भारत में यह गाय की नस्ल मुख्यत बाड़मेर, जैसलमर, जोधपुर, कच्छ क्षेत्रों में पाई जाती है. इसे ग्रे सिंधी, वाइट सिंधी और थारी के नाम से भी जाना जाता है.

नस्ल की विशेषताएं: इसका शरीर मध्यम आकार का तथा रंग हल्का भूरा होता है. शरीर गठीला और जोड़ मजबूत होते हैं. चेहरा सामान्य रूप से लम्बा, सिर चौड़ा और उभरा हुआ होता है. इनके सींग मध्यम आकार, किनारे तीखे होते हैं.

यह नस्ल दुधारू होने के साथ साथ इनके बैल खेती व अन्य कार्य में इस्तेमाल किए जाते है. अतः इस नस्ल को दोहरे उद्देश्य वाली नस्ल भी कहा जाता है. यह गाय प्रति ब्यांत में 1400 लीटर दूध देती है. इनके दूध में 5 फ़ीसदी वसा पायी जाती हैइस नस्ल की गाय प्रतिदन दस लीटर तक दूध देती हैं.   

थारपारकर नस्लीय गौवंश की काफ़ी मांग

इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुतअच्छी होती है. ये शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम होने के साथ ही सबसे कम खर्च में सर्वाधिक दूध देने वाली गाय मानी जाती है. शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम होने के साथ ही सबसे कम खर्च में सर्वाधिक दूध देने वाली यह गाय क्षेत्रीय ग्रामीणों के लिए जीवन निर्वाह का सम्बल है. थारपारकर नस्लीय गौवंश की पशुपालन व डेयरी संस्थानों में इसकी काफ़ी मांग बनी रहती है.

आहार व्यवस्था: ये जानवर सूखे और चारे की कमी की स्थिति के दौरान छोटे जंगली वनस्पतियों पर भी फल-फूल सकते हैं. आहार के रूप में यह नस्ल कम और सूखा चारा खा कर भी उत्पादन देती है किन्तु संतुलित आहार व्यवस्था से इसकी उत्पादन क्षमता बढ़ जाती है.

इसे  मक्का, जौं, ज्वार, बाजरा, गेहूं, जई की चोकर, मूंगफली, सरसों, तिल, अलसी से तैयार खल, हरे चारे के रूप में बरसीम रिजका, लोबिया, ज्वार, मक्की, जई, बाजरा, नेपियर घास, सुडान  सुडान घास और सूखे चारे के रूप में बरसीम की सूखी घास, रिजका की सूखी घास, जई की सूखी घास, ज्वार और बाजरे की कड़बी, घास, जई आदि दिया जा सकता है. पशु को उसका आहार शरीर भार के अनुसार दिया जात है किन्तु ग्याभिन पशु को संतुलित आहार अवश्य देना चाहिए.

रखरखाव की आवश्यकता: पशुओं को तेज धूप, बारिश, ठंड, ओले और परजीवी से बचाने के लिए शैड की आवश्यकता होती है. सुनिश्चित करें कि चुने हुए शैड में साफ हवा और पानी की सुविधा होनी चाहिए. पशुओं की संख्या के अनुसान भोजन के लिए जगह बड़ी और खुली होनी चाहिए, ताकि वे आसानी से भोजन खा सकें. पशुओं के अवशिष्ट पदार्थ जैसे गोबर, गौमूत्र की निकास के लिए 30-40 सेमी. चौड़ी और 5-7 सेमी. गहरी नालिया बनानी चाहिए. वैसे तो इस पशु कच्चे स्थान पर भी रख सकते है किन्तु पक्के फर्श में रोग और परजीवी लगने की संभावना बहुत कम हो जाती है और प्रबंधन के लिए भी आसानी होती है.

समय पर लगाए रोगरोधी टीके: बछड़ों को 6 महीने के हो जाने पर पहला टीका ब्रूसीलोसिस का लगवाना चाहिए. फिर एक महीने बाद आप खुरपक्का-मुहपक्का रोग से बचाव के लिए टीका लगवाएं और गलघोटू रोग से बचाव का भी टीका लगवाएं. एक महीने के बाद लंगड़े बुखार का टीका लगवाएं. बड़ी उम्र के पशुओं की हर तीन महीने बाद डीवॉर्मिंग करें. बछड़े के एक महीने से पहले सींग ना दागें. एक बात का और ध्यान रखें कि पशु को बेहोश करके सींग ना दागें आजकल इलैक्ट्रोनिक हीटर से ही सींग दागें.

English Summary: Best breed of cow-Tharparkar
Published on: 31 October 2020, 03:34 IST

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