सोमानी क्रॉस X-35 मूली की खेती से विक्की कुमार को मिली नई पहचान, कम समय और लागत में कर रहें है मोटी कमाई! MFOI 2024: ग्लोबल स्टार फार्मर स्पीकर के रूप में शामिल होगें सऊदी अरब के किसान यूसुफ अल मुतलक, ट्रफल्स की खेती से जुड़ा अनुभव करेंगे साझा! Kinnow Farming: किन्नू की खेती ने स्टिनू जैन को बनाया मालामाल, जानें कैसे कमा रहे हैं भारी मुनाफा! केले में उर्वरकों का प्रयोग करते समय बस इन 6 बातों का रखें ध्यान, मिलेगी ज्यादा उपज! भारत का सबसे कम ईंधन खपत करने वाला ट्रैक्टर, 5 साल की वारंटी के साथ Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Mahindra Bolero: कृषि, पोल्ट्री और डेयरी के लिए बेहतरीन पिकअप, जानें फीचर्स और कीमत! Multilayer Farming: मल्टीलेयर फार्मिंग तकनीक से आकाश चौरसिया कमा रहे कई गुना मुनाफा, सालाना टर्नओवर 50 लाख रुपये तक घर पर प्याज उगाने के लिए अपनाएं ये आसान तरीके, कुछ ही दिन में मिलेगी उपज!
Updated on: 13 October, 2020 12:00 AM IST

मधुमक्खी पालन किसानों के लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में लाभदायक व्यवसाय है. कृषि विविधिकरण के अन्तर्गत इस व्यवसाय की महत्वूपर्ण भूमिका रहती है. मधुमक्खी पालन शुरू करने के लिए किसी विशेष स्थान का चुनाव करना उस इलाके के मौनचरों पर निर्भर होता है. यदि किसी इलाके में मौनचर बहुतायत में मिलें तो वह इलाका मधुमक्खी पालन के लिए लाभदायक है. मधुमक्खी पालन के लिए इलाके में मौनचर का पूर्ण ज्ञान होना लाभदायक है. मधुमक्खी पालन में पूर्ण सफलता प्राप्त करने के लिए मौनालय का सही चयन तथा मधुमक्खी वंशों की समय अनुसार उचित देखभाल करना बहुत जरूरी है.

मधुमक्खी बक्सों का अवलोकन

मधुमक्खी वंशों की प्रगति जानने के लिए आमतौर पर इनका 15-20 दिन के अन्तर पर अवलोकन करना चाहिए परन्तु वकछूट के मौसम (जनवरी से अप्रैल) में 6-7 दिन के अन्तराल पर अवलोकन करना आवश्यक है. अप्रैल से जून के महीने में मधुमक्खी के बक्सों को प्रातः 6 से 9 बजे के बीच और सांयकाल 5 से 8 बजे के बीच अवलोकन करना चाहिए. सर्दी के मौसम में प्रातः 11 से 3 बजे के बीच जब धूप निकली हो और मौसम साफ हो तो अवलोकन करना उचित रहता है. बरसात और तेज हवाएं चल रही हों तो बक्सों का अवलोकन करने से बचे.

मधुमक्खी वंशों की देखभाल

जून से सितम्बर (गर्मी व बरसात)

यह फूलों की कमी वाला समय है तथा रानी मक्खी अण्डे कम देती है व कॅालोनी में भोजन की कमी हो जाती है. इस समय मधुमक्खी पालकों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. इसलिए कॅालोनियों को सुरक्षित रखने के लिए उपाय तथा सुझावों को अपनाएं.

अक्तूबर-नवम्बर (मानसून के बाद/सर्दी से पहले)

यह मधुमक्खियों द्वारा बच्चे पैदा करने तथा शहद इकट्ठा करने का उत्तम समय होता है. इस समय सूरजमुखी, अरहर, सन व तोरिया की फसलें मिलती हैं. इस समय मधुमक्खी के बक्सों में नये छत्ते देने चाहिएं. इस समय अष्टपदियों का प्रकोप हो सकता है जिसके प्रबन्ध के लिए 10 दिन के अन्तराल पर गन्धक पाऊडर का फ्रेमों पर भुरकाव करें.

दिसम्बर से फरवरी (सर्दी का समय)

सर्दियों में मधुमक्खी की कॉलोनियां बड़ी शीघ्रता से संख्या बढ़ाती हैं. इसलिए फ्रेमों पर मोमीशीट लगाना अति आवश्यक है. यह मधुमक्खी के लिए बच्चे पैदा करने व शहद इकट्ठा करने का उपयुक्त समय है क्योंकि इस समय सरसों व राया की फसलों पर फूल खिलते हैं. जब कॅालोनी दस फ्रेमों पर चली जाती हैं तब मधुकक्ष (सुपर) लगाने की जरूरत होती है तथा मक्खियों से शहद इकट्ठा करवाया जाता है. अच्छे प्रबन्धक द्वारा इस समय 3-4 बार शहद निकाला जा सकता है. फरवरी में नई रानी कोशिकाएं बनती हैं. इसी समय अच्छी संख्या वाली मधुमक्खी बक्सों का विभाजन करना चाहिए. बक्सों को ठंडी हवाओं से बचाकर, खुली धूप में रखा जाए तथा बक्सों में सर्दी से बचाव के लिए सूखी घास या फटे-पुराने कपड़ों की पैकिंग दी जा सकती है जोकि बक्सों में तापमान नियन्त्रण करने में सहायक होती हैं. बक्सों के प्रवेश द्वार हवा की दिशा में नहीं होने चाहिएं.

मार्च से मई (बसन्त व गर्मी की शुरूआत)

इस समय नींबू, आड़ू, जामुन, सफेदा, रिजका, बरसीम, सूरजमुखी, सिरिस व सब्जियां जैसे प्याज, मूली, गोभी, मेथी, गाजर आदि के फूल उपलब्ध होने के कारण शहद इकट्ठा करने व बक्सों में मधुमक्खियों की संख्या बढ़ाने का यह उपर्युक्त समय है. मई के अन्त तक शहद निकालने की सम्भावना हो सकती है. बसन्त में लूटमार व वकछूट की सम्भावना रहती है. इसलिए बक्सों को अधिक देर तक खुला न छोड़ें व रोकथाम के उपयुक्त उपाय करने चाहिए.

कृत्रिम भोजन

जून से सितम्बर के बीच मधुमक्खी वंशों को मकरन्द और पराग की कमी का सामना करना पड़ता है तथा मधुमक्खी वंशों की बढ़वार पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है और वंश कमजोर पड़ जाते हैं. इस प्रकार के भोजन अभाव को कृत्रिम भोजन देकर दूर किया जा सकता है. ऐसे समय में मकरन्द के स्थान पर चीनी की चाशनी (50 प्रतिशत) मधुमक्खी वंशों को दी जाती है. पराग की कमी होने पर पराग पूरक भोजन जिसमें सोयाबीन का आटा (25 भाग), पाऊडर दूध (15 भाग), बेकिंग ईस्ट (10 भाग), पिसी हुई चीनी (40 भाग) और शहद (10 भाग). इन सब को मिलाकर आटे की तरह गूंथ लें. 100-150 ग्राम की पेड़ी कागज पर रखकर फ्रेमों पर उल्टाकर रखें. इस भोजन से रानी मधुमक्खी दोबारा से अण्डे देने शुरू कर देगी.

लेखक:-
दलीप कुमार, देवेन्द्र सिंह जाखड, सुनील बैनीवाल व सुबे सिंह
कृषि विज्ञान केन्द्र, सिरसा
विस्तार शिक्षा निदेशालय, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार

English Summary: Beekeeping: how to take care of bee lineages
Published on: 13 October 2020, 04:56 IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now