Poultry Farming: बारिश के मौसम में ऐसे करें मुर्गियों की देखभाल, बढ़ेगा प्रोडक्शन और नहीं होगा नुकसान खुशखबरी! किसानों को सरकार हर महीने मिलेगी 3,000 रुपए की पेंशन, जानें पात्रता और रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया खुशखबरी! अब कृषि यंत्रों और बीजों पर मिलेगा 50% तक अनुदान, किसान खुद कर सकेंगे आवेदन किसानों को बड़ी राहत! अब ड्रिप और मिनी स्प्रिंकलर सिस्टम पर मिलेगी 80% सब्सिडी, ऐसे उठाएं योजना का लाभ GFBN Story: मधुमक्खी पालन से ‘शहदवाले’ कर रहे हैं सालाना 2.5 करोड़ रुपये का कारोबार, जानिए उनकी सफलता की कहानी फसलों की नींव मजबूत करती है ग्रीष्मकालीन जुताई , जानिए कैसे? Student Credit Card Yojana 2025: इन छात्रों को मिलेगा 4 लाख रुपये तक का एजुकेशन लोन, ऐसे करें आवेदन Pusa Corn Varieties: कम समय में तैयार हो जाती हैं मक्का की ये पांच किस्में, मिलती है प्रति हेक्टेयर 126.6 क्विंटल तक पैदावार! Watermelon: तरबूज खरीदते समय अपनाएं ये देसी ट्रिक, तुरंत जान जाएंगे फल अंदर से मीठा और लाल है या नहीं Paddy Variety: धान की इस उन्नत किस्म ने जीता किसानों का भरोसा, सिर्फ 110 दिन में हो जाती है तैयार, उपज क्षमता प्रति एकड़ 32 क्विंटल तक
Updated on: 30 January, 2020 12:00 AM IST

पालतू पशुओं में गाय सबसे लोकप्रिय पशु है. प्राय ये संसार में हर जगह पाई जाती है. भारत में ही गायों की 37 अधिक प्रजातियां पाई जाती है. वैसे हमारे देश में वैदिक काल से ही गायों को आर्थिक दृष्टि से देखा गया है. यहां की कुछ गायों की दूध देने की वास्तव में आशचर्यजनक है. बिहार में पाई जाने वाली गाय बाचौर उन्हीं में से एक है. चलिए आपको इस गाय से होने वाले लाभ के बारे में बताते हैं.

बाचौर की उत्पत्तिः
बाचौर की उत्पत्ति को लेकर विशेषज्ञों के मत अलग-अलग हैं. हालांकि आम राय यही है कि इसका मूल निवास उत्तर बिहार का मधुबनी, दरभंगा या सीतामढ़ी जिला ही रहा होगा. इसका कसा हुआ शरीर इसे अन्य गायों से अलग पहचान देता है. छोटे आकार के होने के कारण बाचौर बहुत हद तक हरियाणवी मवेशियों जैसी प्रतीत होती है.

प्रजनन चक्र
इन गायों का प्रजनन चक्र नियमित होता है और ये अधिक मात्रा में दूध देती हैं. यही कारण है कि ईस्ट इंडिया कंपनी दूध की आवश्यकता को पूरा करने के लिए बाचौर पर निर्भर रहती थी. 

बचौर की शारीरिक बनावट
वैसे आमतौर पर बाचौर को उसकी शारीरिक बनावट के आधार पर पहचाना जा सकता है. यह रंग में अमूमन सफ़ेद ही होती है. इसकी पीठ सीधी होती है, जबकि बैरल का आकार गोल होता है. छोटी गर्दन और चौड़े माथे वाली बचौर की आँखें बड़ी होती हैं. सींगों का आकार मध्यम होता है और बाहर की ओर घुमावदार होती हैं.

इस नस्ल के बैल का उपयोग भी अलग-अलग कार्यों के लिए किया जाता है. पहले के समय में ये बैल बोझा उठाने, खेत जोतने के लिए उपयोग में लिए जाते थे. इनकी एक खासियत यह भी है कि ये बैल बिना किसी रुकावट के अधिक समय तक काम करने में सक्षम हैं.

English Summary: Bachaur breed of cattle native Madhubani Darbhanga and Sitamarhi will give profit
Published on: 30 January 2020, 04:53 IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now