अक्सर हमारे किसान भाई-बहन चकबंदी के बारे में सुनते होंगे, लेकिन आज भी कई किसानों को चकबंदी की पूरी जानकारी नहीं हैं. कहा जाता है कि चकबंदी किसानों के लिए लाभकारी है, लेकिन आमतौर पर किसान भाई चकबंदी की प्रक्रिया को काफी जटिल मानते हैं.
जब भी किसी परिवार में बंटवारा होता है, तो जमीन भी बांट दी जाती है और पैतृक खेत, बाग आदि की जमीन कई टुकड़ों में बंट जाती है. इससे खेती करने में कई तरह की परेशानियां होती हैं. इस समस्या का समाधान करने के लिए चकबंदी की प्रक्रिया अपनाई जाती है, तो इस लेख में जानिए चकबंदी क्या होती है और किसानों को इससे कैसे लाभ मिलता है इस बारे में -
क्या होती है चकबंदी?
कई बार किसानों को फसलों का कम उत्पादन प्राप्त होता है. इसका एक मुख्य कारण भूमि का उपविभाजन एवं अपखंडन है. उप विभाजन का मतलब होता है, भूमि का छोटे-छोटे टुकड़ों में होना, तो वहीं अपखंडन का मतलब है, छोटे-छोटे टुकड़ों का दूर-दूर बिखरा होना. यानी भूमि छोटी हो, तो कृषि की आधुनिक तकनीक को नहीं अपना सकते हैं. ऐसे में किसानों के बिखरे हुए जमीन के टुकड़े को एक जगह किया जाता है, जिसे चकबंदी कहा जाता है. इसके द्वारा उस भूमि की भी बचत होती है, जो बिखरे हुए खेतों की मेड़ों से घिर जाती है.
क्यों कराते हैं चकबंदी
कई बार खेत छोटे हो जाते हैं, जिससे किसानों को खेती करने में काफी दिक्कत आती है, तो वहीं समय के साथ सरकारी जमीन पर भी अतिक्रमण की शिकायतें बढ़ने लगती हैं. ऐसे में सरकार चकबंदी करवाती है. जानने योग्य बात यह है कि हर राज्य सरकार के चकबंदी अधिनियम अलग-अलग होते हैं.
चकंबदी के लाभ
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खेत का आकार अधिक हो जाता है, जिससे औसत उत्पादन की लागत घटती है.
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चक बनाना एक कानूनी प्रक्रिया है, जिसके कारण भूखंडों की सीमा को लेकर उत्पन्न होने वाले विवाद खत्म हो जाते हैं.
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छोटे-छोटे खेतों की मेड़ों में भूमि बर्बाद नहीं होती है
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बड़े चक के रूप में खेत का आकार बड़ा होता है. इस कारण आधुनिक उपकरणों जैसे-ट्रैक्टर आदि का इस्तेमाल आसानी से कर सकते हैं.
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कृषि क्रियाकलापों की उचित देखभाल कर सकते हैं.
चकबंदी में आने वाली मुश्किलें
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किसानों को छोटे-छोटे खेतों के टुकड़े के बदले कुल जमीन के अनुसार एक खेत मिल जाता है.
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कई बार ऐसा होता है कि किसानों को उनके बिखरे हुए खेतों के बदले 2 या 3 चक दे दिए जाते हैं, लेकिन यह चकबंदी उद्देश्यों के खिलाफ है.
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पैतृक भूमि के प्रति लगाव मुश्किलें खड़ी करता है.
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खेत में कम उर्वरता की समस्या से चकबंदी के काम में मुश्किलें आती हैं.
जानकारी के लिए बता दें कि बिहार के कई जिलों में चकबंदी का काम चल रहा है. यहां लगभग 70 के दशक में पहली चकबंदी शुरू हुई थी, जिससे 1992 में बंद किया गया था. हालांकि, इसे बाद में कोर्ट के आदेश पर शुरू किया गया, वहां यह प्रक्रिया काफी धीमी गति से चल रही है. बता दें कि बिहार सरकार पुराने चकबंदी के कागजों को डिजिटल रूप में तब्दील करवायेगी, ताकि उन्हें सुरक्षित रखा जा सके.
पंजाब और हरियाणा में चकबन्दी का कार्य पूरा किया जा चुका है. अब तक देशभर में 1,63,347 लाख एकड़ भूमि की चकबन्दी ही हो पाई है.
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