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अमिताभ बच्चन की तारीफ सब करते है, पढ़िए उनकी कहानी, जिनकी तारीफ अभिताभ बच्चन करते हैं...

कुंभ के मेले में लोगों के मिलने और बिछड़ने की कहानियां फिल्मों में देखने को मिलती है। लेकिन यहां एक शख्स ऐसा है, जिसने अपना पूरा जीवन कुंभ में बिछड़े हुए लोगों को उनके अपनों से मिलाने में न्योछावर कर दिया।

कुंभ के मेले में लोगों के मिलने और बिछड़ने की कहानियां फिल्मों में देखने को मिलती है। लेकिन यहां एक शख्स ऐसा है, जिसने अपना पूरा जीवन कुंभ में बिछड़े हुए लोगों को उनके अपनों से मिलाने में न्योछावर कर दिया। इस शख्स का नाम है राजाराम तिवारी। उन्होंने 20 अगस्त 2016 को दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन अपने जीवन काल में उन्होंने लाखों बिछड़े लोगों को उनके परिजनों से मिलवाया है। बातचीत करते हुए उनके बेटे उमेश चंद्र तिवारी ने बताया कि कैसे एक घटना ने पिताजी की जिदंगी बदल दी।

ये हुई थी घटना...

राजाराम का जन्म 10 अगस्त, 1928 को प्रतापगढ़ जिले के रानीगंज तहसील में हुआ था। जब उनकी उम्र 16 साल की थी तो वह अपने दोस्तों को साथ कुंभ मेला घूमने गए थे। इसी दौरान उन्हें एक बुजुर्ग महिला मिली, जो अपने परिवार से बिछड़ गई थी। उस जमाने में लाउडस्पीकर की व्यवस्था भी नहीं थी, जिससे अनाउंस कराकर उनकी फैमिली को ढूंढा जा सके।

उन्होंने महिला को परिवार से मिलाने के लिए हर जगह छान मारा, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। काफी जतन के बाद उन्हें वो जगह पता चल गई, जहां उनके घरवाले ठहरे हुए थे। इस घटना के बाद से उन्होंने ठान लिया कि मेले में एक ऐसा शिविर लगाएंगे, जहां भूले-भटके लोगों को मिलवाया जा सके।

साल 1946 में की शिविर की शुरुआत

साल 1946 में 18 साल की उम्र में राजाराम तिवारी ने गंगा तट पर 'भूले-भटके' शिविर की शुरुआत की। मेले में बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक अगर कोई अपने परिवार से बिछड़ जाता था, तो उसे इस शिविर में भेजा जाता है। यहां पूरी डिटेल पूछकर लाउडस्पीकर से अनाउंस किया जाता है। जिसके बाद बिछड़ा हुआ व्यक्ति या उसका परिवार नाम सुनकर शिविर में आ जाता है। इस संस्था ने 1946 से 2017 तक लगभग 15 लाख भुले-भटके लोगों को उनके परिवार से मिला चुका है।

टीन काटकर बनाया था भोंपू

उमेश चंद्र तिवारी ने बताया कि उस जमाने में लाउडस्पीकर नहीं होने की वजह से उनके पिता ने टीन काटकर भोंपू बनाया था। 9 लोगों की टोली के साथ वह दिनभर मेले में पैदल घूमकर भूले-भटकों को मिलाते थे। तब उनके इस कार्य की जिला प्रशासन ने काफी सराहना भी की थी। 20 अगस्त 2016 को राजाराम तिवारी की मृत्यु के बाद अब उनके बड़े बेटे पंडित लाल जी तिवारी और छोटे बेटे उमेश चंद्र तिवारी इस काम को संभाल रहे हैं।

अमिताभ बच्चन ने किया था सम्मानित.

साल 2008 में इस काम के लिए उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हुआ था। उनके जज्बे से प्रभावित होकर अमिताभ बच्चन ने उन्हें टीवी शो 'आज की रात है जिंदगी' में सम्मानित भी किया था।

शिविर से जुड़ते गए कई सामाजिक कार्यकर्ता

उमेशचंद्र तिवारी बताते हैं कि, 25 साल से पिताजी के साथ वह सामाजिक काम करते आ रहे हैं। पिताजी के गुजरने के बाद वह फुल टाइम सोशल वर्क कर रहे हैं। समय काफी बदल गया है। अब लोग सामाजिक कार्य के लिए आगे आने लगे हैं। कुंभ और अर्ध कुंभ मेले में भारत और अन्य देशों के लोग भी आते हैं। वहीं, विदेशियों को हिंदी समझने में काफी दिक्कत होती हैं। इसीलिए कुछ सामाजिक कार्यकर्ता 'भूले-भटके' शिविर से जुड़ गए हैं, जो क्षेत्रीय भाषा के जानकार हैं। उनकी मदद से बाहर से आए कई लोगों को बिछड़ने पर उनके परिवार से मिलाया है।

साल 1946 में राजाराम तिवारी ने गंगा तट पर 'भूले-भटके' शिविर की शुरुआत की थी। उनके जज्बे से प्रभावित होकर अमिताभ बच्चन ने उन्हें टीवी शो 'आज की रात है जिंदगी' में सम्मानित भी किया था। साल 2008 में इस काम के लिए उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हुआ था।

20 अगस्त 2016 को राजाराम ने दुनिया को अलविदा कह दिया। उनके इस संस्था को कई फिल्मी स्टार भी मदद करते हैं। इस संस्था ने 1946 से 2017 तक लगभग 15 लाख भुले भटके लोगों को उनके परिवार से मिला चुका है।

English Summary: Amitabh Bachchan praises everyone, read his story, whose praise is praised by Bachchan ... Published on: 04 February 2018, 11:35 PM IST

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