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राम के नारे ही लगाने थे तो मंदिर चले जाते, संसद क्यों गए !

हर बार चुनाव में आम जनता यही सोचकर वोट डालती है कि वो जिसे वोट दे रही है वो जीतने के बाद संसद पहुंचकर उनके मुद्दे और उनकी परेशानियों को उठाएगा और सरकार का ध्यान उनकी तकलीफों की ओर आएगा लेकिन हर बार की तरह इस बार भी जनता को धोखा ही मिलता दिख रहा है. सांसद कह लें या मंत्री, हर कोई प्रोपगेंडे को बढ़ावा दे रहा है. फिज़ूल की बातों पर वक्त बरबाद किया जा रहा है. चुनाव प्रचार एक अलग बात होती है, चुनाव प्रचार में झूठ को भी सच बनाकर फैलाया जाता है, लेकिन जब चुनाव हो जाता है और सरकार बन जाती है तो सारी नौटंकी बंद कर देनी चाहिए और वह भी तब जब आपके पास बहुमत से कहीं ज्यादा सीटें हों.

गिरीश पांडेय

हर बार चुनाव में आम जनता यही सोचकर वोट डालती है कि वो जिसे वोट दे रही है वो जीतने के बाद संसद पहुंचकर उनके मुद्दे और उनकी परेशानियों को उठाएगा और सरकार का ध्यान उनकी तकलीफों की ओर आएगा लेकिन हर बार की तरह इस बार भी जनता को धोखा ही मिलता दिख रहा है. सांसद कह लें या मंत्री, हर कोई प्रोपगेंडे को बढ़ावा दे रहा है. फिज़ूल की बातों पर वक्त बरबाद किया जा रहा है. चुनाव प्रचार एक अलग बात होती है, चुनाव प्रचार में झूठ को भी सच बनाकर फैलाया जाता है, लेकिन जब चुनाव हो जाता है और सरकार बन जाती है तो सारी नौटंकी बंद कर देनी चाहिए और वह भी तब जब आपके पास बहुमत से कहीं ज्यादा सीटें हों.

अब वक्त होता है प्लान को एक्शन मे लाने का. लेकिन अगर अब भी आप वही प्रपंच करते रहेंगे तो आपमें और पुरानी सरकारों में अंतर क्या रह जाएगा. न्यूज चैनल मैं देखता नहीं पर यूट्यूब देखता हूं. मैंने देखा कि कुछ सांसद जो अपने धर्म से मुस्लिम है वह सांसद पद की शपथ लेने आते हैं और पीछे से ‘जय श्री राम, जय श्री राम’ के नारे लगने शुरु हो जाते हैं. मैनें रामायण पढ़ी है उसमें कहीं भी मुझे राम का चरित्र ऐसा नहीं मिला. दूसरे को नीचा दिखाना या बाध्य करना कि राम का नाम लो, ये भक्त तो नहीं हो सकते. हां, दिमागी रुप से अपंग या सिरफिरे जरुर हो सकते हैं. इन लोगों का दिमाग ऐसा क्यों हुआ, ये 1 दिन के 24 घंटे क्या सोचते रहते हैं ? और न जाने ये क्या करना चाहते हैं. कुछ अच्छा या समाज के कल्याण में तो नहीं हो सकता.

बेरोज़गारी है, स्वास्थ्य है, शिक्षा है, स्वच्छता है और न जाने कितने ही मुद्दे हैं लेकिन बात किस पर हो रही है – राम, राम और राम. दुख होता है सर! दुख होता है हमें कि ये कैसी मानसिकता रखने वाले लोग संसद पहुंचे हैं और भय लगता है कि ये बिमार क्या करने वाले हैं. एक दिमागी रुप से बिमार सांसद कभी अपने क्षेत्र और लोगों का भला नहीं कर सकता. राम थे, हैं और अनंत काल तक रहेंगे लेकिन तुम राम नहीं हो, सांसद हो और सांसद का काम संसद में बैठकर नारे लगाना नहीं मुद्दों पर बात करना और उसको सुलझाना है. आप हिंदू हैं तो गर्व कीजिए इस बात पर. लेकिन उससे ज्यादा गर्व कीजिए भारतवासी होने पर, जहां कहा जाता है कि यही वो देश है जहां अलग-अलग धर्म, वर्ग और संप्रदाय के लोग बिना किसी नफरत और घृणा के बग़ैर साथ-साथ रहते हैं. वैसे देखा जाए तो एक मछली तालाब में ऐसी रहती ही है जो पूरे तालाब को गंदा करती है और ये तो मछली भी नहीं हैं, मगरमच्छ हैं. ऐसे ही हर राजनीतिक पार्टी में कुछ लोग हैं जो सत्ता के लिए किसी का भी गला काट सकते हैं किसी भी हद तक जा सकते हैं. ऐसा नहीं है कि सरकार काम नहीं कर रही है लेकिन कुछ ऐसे लोगों की वजह से सरकार हमेशा विपक्ष और विरोधियों की नज़रों में आ जाती है. आशा है कि पढ़ने वालों को ये लेख कड़वा लगा होगा क्योंकि लिखा तो सत्य ही है.  

English Summary: parliament house is not a place of Sloganeering Published on: 04 July 2019, 10:03 AM IST

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