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Guava Crop Disease: अमरूद में कीट एवं व्याधि प्रबंधन कैसे करें

अगर आप खेती करने की सोच रहे है तो ऐसे में अमरूद की खेती आपके लिए अच्छा विकल्प साबित हो सकती है. लेकिन उससे पहले आपको इसमें लगने वाले कीटों एवं व्याधि जानकारी होना बेहद जरूरी है.

KJ Staff
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guava
अमरूद में लगने वाले कीटों का प्रबंधन

हमारे देश में अमरूद एक लोकप्रिय फल है. राजस्थान में विशेषकर सवाई माधोपुर जिला अमरूदों की नगरी के नाम से विख्यात हो रहा है अमरूद की आर्थिक व व्यवसायिक महत्व की वजह से यहां के किसानों का रुझान इसकी तरह काफी हो रहा है, लेकिन दूसरी और जलवायु परिवर्तन के कारण तरह तरह की समस्याओं जिनमे कीड़े- बीमारियों, जड़ गाँठ सूत्रकृमि, पोषक तत्वों की कमी आदि की जानकारी के अभाव में किसानों को अधिक नुकसान हो रहा है. इन सभी तथ्यों को समावेशित करते हुए प्रस्तुत लेख में कीट, रोग व अन्य समस्याओं के संबंध में किसानों को जानकारी तथा समाधान को निम्नलिखित रूप से उल्लेखित किया गया है.

प्रमुख कीट एवं प्रबंधन

1) फल मक्खी

फल की छोटी अवस्था में ही उस पर बैठकर अपना अंडा छोड़ देती है और जो बाद में बड़ी होकर सुंडी का रूप धारण कर लेती है और अमरूद के फल को खराब कर देती है, जिससे फल सड़ कर गिर जाते हैं.

उपचार

इसके उपचार के लिए मिथाइल यूजोनिल ट्रेप (100 मि.ली. मिश्रण में 0.1% मिथाइल यूजोनिल व 0.1 प्रतिशत मेलाथियान) पेड़ों पर 5 से 6 फीट ऊंचाई पर लगाएं. एक हेक्टेयर क्षेत्र में 10 ट्रेप पर्याप्त होते हैं. ट्रेप के मिश्रण को प्रति सप्ताह बदल दे. फल मक्खी ट्रेप से विशेष प्रकार की मक्खी को आकर्षित करने वाली गंध आती है. इसको कली से फल बनने के समय पर ही बगीचों में उचित दूरी पर लगा देना चाहिए. शिरा या शक्कर 100 ग्राम के एक लीटर पानी के घोल में 10 मी.ली. 350 मेलाथियान 50 ई.सी. मिलाकर प्रलोभक तैयार कर 50 से 100 मि.ली. प्रति मिट्टी के प्याले में डालकर जगह-जगह पेड़ पर टांग दे. मेलाथियान 50 ई.सी. का 1 मि.ली. पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें

2) फल बेधक कीट

यह मुख्यता अरंडी फसल का कीट है, परंतु बहुभक्षी होने के कारण अमरूद की फसल में भी भारी नुकसान पहुंचाता है. इसकी तितली अमरूद फल पर अंडे देती है, जिसमें से लार्वा निकलकर अमरूद के फल में छेद करके फल को खराब कर देते हैं. इस कीट के लार्वा अमरूद के फल से में घुसकर फल को खाते हैं, जिससे फल खराब हो जाते हैं. इससे प्रभावित फल टेडे- मेडे व फल के अंदर लाल मुंह वाली गुलाबी सफेद रंग की इल्ली निकलती है.

उपचार

प्रभावित फलों को एकत्र कर नष्ट करें. प्रकोप से बचाव के लिए कार्बोरील (0.2 प्रतिशत) या इथोफेनप्रोक्स (0.05 प्रतिशत) का फल बनने की प्रारंभिक अवस्था में छिड़काव करें. छिड़काव के 15 दिन बाद तक फल की तुड़ाई न करें.

3) अनार की तितली

 यह मुख्यता अनार का कीट है. परंतु यह अमरुद में भी भारी नुकसान करता है. उसकी तितली अमरूद फल पर अंडे देती है, जिसमें से निकलकर अमरूद के फल में छेद करके फल को खराब कर देते हैं.

उपचार  प्रकोप से बचाव के लिए कार्बोरील (0.2 प्रतिशत) या इथोफेनप्रोक्स (0.05  प्रतिशत) का फल बनने की प्रारंभिक अवस्था में छिड़काव करें. छिड़काव के 15 दिन बाद तक फल की तुड़ाई न करें.

4) अमरूद का मिलीबग कीट 

यह एक बहुभक्षी मिलीबग है जो अमरूद बागान में भारी नुकसान पहुंचा सकता है. मिलीबग का अधिक प्रकोप गर्मी के मौसम में होता है. मिलीबग भारी संख्या में पनपकर छोटे पौधों तथा मुलायम टहनियों एवं पंखुड़ियों से चिपककर रस चूस कर अधिक नुकसान पहुंचाता है तथा पत्तियां सूख कर मुड़ जाती हैं. इससे पौधे कमजोर होने के साथ इसका फलोत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. इसका प्रकोप जनवरी से मार्च तक पाया जाता है.

उपचार

नियंत्रण हेतु पेड़ के आसपास की जगह को साफ रखें तथा सितंबर तक थाले की मिट्टी को पलटते रहे इससे अंडे बाहर आ जाते हैं और नष्ट हो जाते हैं. प्रारंभिक फलन अवस्था में अथवा अफलन अवस्था में बूप्रोफेजिन 30 ई.सी.  2.5 मि.ली. या डाइमिथोएट में 30 ई.सी. 1.5 मि.ली. पानी के घोल बनाकर छिड़काव करें. क्यूनालफॉस 1.5% चूर्ण 50 से 100ग्राम प्रति पेड़ के हिसाब से थाले में 10 से 25 सेमी तक की गहराई में मिलावे. शिशु कीट को पेड़ों पर चड़ने से रोकने के लिए नवंबर माह में 30 से 40 से.मी. चौड़ी पट्टी की चारों तरफ लगावें तथा इससे नीचे 15 से 20 से.मी. भाग तक ग्रीस का लेप कर दे.

5) जड़ गांठ सूत्रकृमि

 पिछले एक-दो वर्षों में अमरूदों के बागानों में जड़ गांठ सूत्रकर्मी व सूखा रोग का प्रकोप ज्यादातर बगीचों में देखा गया जिसके कारण अमरुद के पौधे सूख जाते हैं. रोग के प्रारंभिक लक्षण में पौधों की पत्तियां हल्के पीले रंग की दिखाई देती है. पत्तियां झड़ने लगती है पौधों की बढ़वार रुक जाती है व पौधे सूख जाते हैं तथा पौधे को खोदकर देखने पर पौधे की जड़ों में गाँठे दिखाई देती है.

रोग का प्रकोप

इस रोग का प्रकोप ज्यादातर नए बगीचों में देखा गया. इसकी रोकथाम के लिए रोग मुक्त अमरूद के पौधों का चुनाव करें तथा पौधे लगाने के लिए 3×3 फीट आकार के गड्ढे मई में खोदकर छोड़ दे व इन गड्ढों को जून के अंतिम सप्ताह में प्रति गड्ढों में 20 से 25 किलो गोबर की खाद, 30 ग्राम कार्बोफ्यूरान 3 जी., 20 ग्राम कार्बेंडाजिम, 1-2 किलोग्राम नीम की खली, 50 ग्राम मिथाइल पैराथियान चूर्ण मिट्टी में मिलाकर भरे यदि रोग ग्रसित पौधे की पत्तियां हल्की पीली दिखाई देवें तो 50 ग्राम कार्बोफ्यूरान 3 जी. व 250 ग्राम नीम की खली को पौधों के तने के चारो तरफ फैला कर गुड़ाई करें व 20 ग्राम कार्बेंडाजिम 10 लीटर पानी में घोल बनाकर जड़ क्षेत्र को भिगोये. उसके 5-7 दिन बाद 10 से 25 किलो (पौधे के उम्र के आधार पर) गोबर की खाद डालकर गुड़ाई करके सिंचाई देवे.

6) रस चूसक व पत्ती खाने वाले कीट  

आजकल अमरूद के पौधों पर रस चूसने वाले कीट जैसे सफेद मक्खी, हरा तेला, माइट आदि का प्रकोप ऊपर से नई फुटान पर दिखाई देने लगा है जिसके फलस्वरुप पत्तियां मुड़ जाती है तथा पत्तियों को खाने वाली लट को किनारों से आरी की भांति खाई हुई दिखाई देती है. अधिक प्रकोप की स्थिति में ऊपर की नई कोमल पत्तियों को बिल्कुल खा जाती है तथा साथ में पत्तियों के बीच में से पीछे दिखाई देते हैं.

उपचार

इसकी रोकथाम के लिए डाइमिथोएट 2 मि.ली. 0.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें. यदि पट्टी खाने वाली लट का प्रकोप होने पर क्यूनालफॉस 2 मि.ली. पानी में मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं.

प्रमुख व्याधिया एवं प्रबंधन

1) म्लानि या सूखा या उखटा रोग

यह अमरूद फल वृक्षों का सबसे विनाशकारी रोग है, रोग के लक्षण दो प्रकार के दिखाई पड़ते हैं पहला आंशिक मुरझाए जिसमें पौधे की एक या मुख्य शाखाएं रोग ग्रसित होती है व अन्य शाखाएं स्वस्थ दिखाई पड़ती है पौधों की पत्तियां पीली पर झड़ने लगती है. रोग ग्रस्त शाखाओं पर कच्चे फल पर छोटे व भूरे सख्त हो जाते हैं. दूसरी अवस्था में रोग का प्रकोप पूरे पेड़ पर होता है. रोग जुलाई से अक्टूबर माह में उग्र रूप धारण कर लेता है. पौधे की शाखाओं से पत्तियां पीली पढ़कर उड़ने लगती है तथा अंत में पत्तियां रंगहीन हो जाती है. पौधा नई फुटान नहीं कर पाता और अंत में मर जाता है. प्रभावित पौधे की जड़ सड़कर छाल अलग हो जाती है.

उपचार

इस रोग के प्रबंधन हेतु रोगग्रस्त शाखाओं को काट कर नष्ट कर दे.  साथ ही ज्यादा सघन बग़ीचों में  उचित कटाई- छटाई करें. पूर्णतयाः रोगग्रसित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दे.  पेड़ के तने के चारों ओर मिट्टी चढ़ावे व दोपहर में सिंचाई ना करे, थाले बड़े फैलाकर बनाएं. आंशिक रूप से ग्रसित पेड़ों में थाला सिंचाई की जगह पाइप लाइन या  ड्रिप सिंचाई पद्धति को अपनाते हुए जल निकास की उचित व्यवस्था भी बगीचों में करें.

रोगग्रसित पौधों को बचाने के लिए थालों में कार्बेंडाजिम फफूंदीनाशक दवा को 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर डालें साथ ही कार्बेंडाजिम या टोपसीन एम फफूंदनाशक 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर तथा पौधों पर भी छिड़काव करें. नीम की खली (4 किलो प्रति पौधा) और जिप्सम (2 किलो प्रति पौधा) भूमि उपचार करना भी इस रोग में लाभप्रद पाया गया है.जिंक की कमी दूर करने के लिए 50 से 100 ग्राम जिंक प्रति पौधा के हिसाब से डालें.

गड्ढे की तैयारी

नया पौधा लगाने से पूर्व गड्ढे की गहराई 1 X 1 X 1 मीटर रखें और गड्ढे की मिट्टी को फार्मेलिन और फफूंदीनाशक के घोल से उपचारित करें. वर्षा ऋतु शुरू होने से पहले थालों मैं तने के आसपास त्रैकोदार्मा  जैविक फफूंदनाशक ग्राम प्रति पौधों के हिसाब से डालकर गुड़ाई करें. एस्परजिलस नाइजर ए.एन. 17 से उपचारित देशी खाद 5 की.ग्रा./गड्ढा पौधा लगाते समय तथा 10 किग्रा प्रति गड्ढा पुराने पौधों में गुड़ाई कर डालें. बगीचों को साफ- सुथरा रखें, रोगग्रसित टहनियों, खरपतवार आदि को उखाड़कर बगीचों से बाहर लाकर नष्ट कर देवें. प्रतिरोधी मूलवृंत का उपयोग करके भी रोग से बचा जा सकता है.

2) डाइबेक या एन्थ्रेक्नोज या श्यामवर्ण

इस रोग का प्रकोप वर्षा ऋतु में अधिक रहता है. ग्रसित फलों पर काली चित्तियाँ पड़ जाती है और उनकी वृद्धि रुक जाती हैं. ऐसे फल पेड़ों पर लगे रहते हैं और सड़ जाते हैं. इस रोग से कच्चे फल सख्त एवं कॉर्कनुमा हो जाते हैं.  इस रोग से पेड़ों के शीर्ष से कोमल शाखाएं नीचे की तरफ झुकने लगती है. ऐसी शाखाओं की पत्तियां झड़ने लगती है और इनका भूरा हो जाता है.

उपचार

इसकी रोकथाम के लिए मेंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर या थायोफिनाइट मिथाइल 1 ग्राम प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव फल आने तक 10-15  दिनों के अंतराल छिड़कव दोहरावे तथा साथ ही (0.3%) आक्सीक्लोराइड का छिड़काव करें.

3) फल सड़न

इस रोग में फल सड़ने लगते हैं, सड़े हुए भाग पर रुई के समान फफूंदी की वृद्धि दिखाई देती है.

उपचार

इस रोग की रोकथाम के लिए 2 ग्राम मेंकोजेब 1 लीटर पानी में घोलकर तीन से चार छिड़काव करना चाहिए.

4) अमरूद का ‘धूसर अंगमारी, फल चित्ती, पामा या स्केब रोग

फलों पर चित्तीदार छोटे भूरे धब्बों का उभरना इस रोग का मुख्य लक्षण है जोकि सामान्यतया हरे फलों पर दिखाई देते हैं परंतु यदा-कदा पत्तियों पर भी हो सकते हैं. इस रोग से प्रभावित फलों की ऊपरी सतह खराब हो जाती है.

उपचार

इस रोग की रोकथाम हेतु बोर्डो मिश्रण 1% का 3-4 बार छिड़काव करें.

5) अमरूद का ‘शैवाल पर्ण व फल चित्ती रोग’

पत्तियों पर वेल्वेटी धब्बों का बनना व फलों पर जालनुमा कत्थई-काले रंग के दानों का बनना इस बीमारी के मुख्य लक्षण हैं. पत्तियों पर छोटे- छोटे आकार के धब्बे दिखाई देते हैं जो बढ़कर 2- 3 मी.मी. आकार के हो जाते हैं. यह रोग पत्ती के शीर्ष किनारों या मध्य शिरा पर अधिक प्रभावी होता है. अपरिपक्व फलों पर कत्थई-काले रंग के दाग बन जाते हैं. रोग अप्रैल माह से शुरु होकर मई- अगस्त में अधिक होता है.

उपचार

इसके नियंत्रण हेतु कॉपर आक्सीक्लोराइड (0.3 प्रतिशत) 15 दिन के अंतराल पर तीन चार बार छिड़काव अवश्य करें.

6) अमरुद का ‘सरकोस्पोरा पत्ती धब्बा’ रोग

पत्तियों पर भूरे पीले रंग के अनियमित आकार के धब्बे का बनना व प्रभावित पुराने पत्तियों का पीला होकर झड़ जाना. पत्तियों की निचली सतह पर भूरे अनियमित आकार के धब्बे तथा ऊपरी सतह पर पीले रंग के दाग दिखाई देते हैं. पुरानी पत्तियॉ बहुत अधिक प्रभावित होकर अंत में झाड़ जाती है.

उपचार

इसके प्रबंधन हेतु प्रभावित पौधों पर मेंकोजेब (0.2 प्रतिशत) का एक माह के अंतराल पर छिड़काव करें.

7) अमरूद का ‘फल विगलन’ रोग

फलों का गलन, सफेद अमरूद की वृद्धि एवं पत्तियों का मध्यशिरा के दोनों ओर से भूरा होकर झुलसना इस रोग के मुख्य लक्षण हैं. यह रोग वर्षा के मौसम में फल के केलिक्स (पुटक) भाग पर होता है. प्रभावित भाग पर सफेद रुई जैसी बढ़वार फल पकने के साथ-साथ तीन-चार दिन में पूरी तरह फल सतह पर फैल जाती है. जब वातावरण में आद्रता ज्यादा हो तब यह लोग अधिक फैलता है. प्रभावित फल गिरने लगते हैं.

उपचार

इस रोग के नियंत्रण हेतु डायथेन जेड 78 (0.2 प्रतिशत) या रिडोमिल या फोस्टाइल ए.एल. 80 डब्ल्यू  पी (0.2 प्रतिशत) या कॉपर आक्सीक्लोराइड (0.3 प्रतिशत) का छिड़काव करें. कॉपर आक्सीक्लोराइड (0.3 प्रतिशत) या फोस्टाइल ए.एल. 80  डब्ल्यू पी (0.2 प्रतिशत) से भूमि उपचार करें.

प्रस्तुति

डॉ. बी. एल. मीना, डॉ. के. सी. मीना एवं हुकम सिंह कोठारी

कृषि विज्ञान केंद्र, सवाई माधोपुर 

English Summary: How to manage pests and diseases in guava ... Published on: 05 March 2018, 03:56 IST

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