वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए देखा जाए तो महात्मा गांधी का ये कथन कि भारत की सफलता इसके गांवों की संपन्नता पर निर्भर करती है बिलकुल तर्क संगत प्रतीत होता है. भारत की जनसंख्या का लगभग 70%, अर्थात मानव जाति का तकरीबन दहाई हिस्सा देहातों में बसता है. यह संख्या ग्रामीण भारत को राष्ट्रीय और वैश्विक चिन्ता के मुद्दों के लिए केंद्र बिन्दु बना देती है; मुद्दे जैसे उच्च जनसंख्या और विकास का प्राकृतिक संसाधनों पर प्रभाव, स्वच्छता का अभाव व इसका स्वास्थ्य पर प्रभाव, गंदे नालों व कारखानों के अवशिष्ट पदार्थों के बहने से होने वाला जल प्रदूषण, मृदा अपरदन, मरुस्थलीकरण, वनों की कटाई व चरागाह की क्षमता से अधिक पशुओं के चरने से होने वाला नुकसान.
कई सालों से भारत के कुछ गाँव ऐसे है जो मुख्य धारा में बने रहने के साथ ही अपनी पीढ़ियों से चली आ रही परम्पराओं को संभालने के साथ लचीलापन दिखाते हुए बदलाव को स्वीकार कर रहे हैं। ऊर्जा नवीनीकरण से जैविक खेती तक यह 15 गाँव ऐसे है जो वाकई में अपने प्रयासों से इस बात के चमकते हुए उदाहरण बन गए हैं कि यदि सभी साथ आए तो एक बेहतर कल के लिए कितना बड़ा बदलाव लाया जा सकता है.
कभी भारत के अधिकतर गांवों की तरह बिजली के लिए तरसता धरनाई, आज इस गाँव ने अपने भाग्य को बदलते हुए भारत के एकमात्र पूरी तरह से सौर ऊर्जा पर आश्रित गाँव होने का दर्जा प्राप्त कर लिया है। धरनाई के निवासी कई दशकों से ऊर्जा पूर्ति के लिए पारंपरिक ईंधन जैसे गाय का गोबर व डीज़ल का इस्तेमाल करते आ रहे थे, जो कि न सिर्फ महंगा था, बल्कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी था। ग्रीनपीस संस्था के 2014 में स्थापित किए गए सौर चलित 100 किलो वॉट के माइक्रो ग्रिड सिस्टम द्वारा जेहांबाद जिले के इस गाँव में रहने वाले 2400 से ज्यादा व्यक्तियों को बिजली उपलब्ध कराई का रही है.
1. धरनाई, बिहार
कभी भारत के अधिकतर गांवों की तरह बिजली के लिए तरसता धरनाई, आज इस गाँव ने अपने भाग्य को बदलते हुए भारत के एकमात्र पूरी तरह से सौर ऊर्जा पर आश्रित गाँव होने का दर्जा प्राप्त कर लिया है। धरनाई के निवासी कई दशकों से ऊर्जा पूर्ति के लिए पारंपरिक ईंधन जैसे गाय का गोबर व डीज़ल का इस्तेमाल करते आ रहे थे, जो कि न सिर्फ महंगा था, बल्कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी था। ग्रीनपीस संस्था के 2014 में स्थापित किए गए सौर चलित 100 किलो वॉट के माइक्रो ग्रिड सिस्टम द्वारा जेहांबाद जिले के इस गाँव में रहने वाले 2400 से ज्यादा व्यक्तियों को बिजली उपलब्ध कराई का रही है.
2. पव्येहिर, महाराष्ट्र
महाराष्ट्र के अमरावती जिले के मेलघाट के तलहटी में बसा एक छोटा सा गाँव पव्येहिर, इस गाँव ने एक मिसाल पेश की है कि किस तरह एनजीओ व समुदाय के साझा प्रयासों से पर्यावरण संरक्षण कर सतत आजीविका सुनिश्चित की जा सकती है. शानदार प्रयासों के कारण 2014 में इस गाँव ने संयुक्त राष्ट्र संघ विकास कार्यक्रम के अंतर्गत जैव विविधता पुरस्कार भी हासिल किया। यह पुरस्कार इस गाँव को बंजर 182 हेक्टेयर भूमि को सामुदायिक वन अधिकार के अंतर्गत वन में बदलने के लिए मिला है। फिलहाल यह गाँव मुंबई व आस-पास के इलाके में अपने ब्रांड “नेचुरल्स मेलघाट” नाम से ऑर्गैनिक सीताफल व आम बेचने के विचार की क्रियान्विति में लगा है.
3. हीवरे बाज़ार, महाराष्ट्र
महाराष्ट्र के अकाल प्रभावित इलाकों में जहां एक और पानी के लिए तरसते लोगों के बीच एक गाँव है, जहां के निवासियों को कभी अपनी जरूरत के पानी की लिए पानी का टैंकर मँगवाने के लिए फोन नहीं करना पड़ता, असल में 1995 से यहाँ कभी किसी ने पानी का टैंकर नहीं मंगवाया। इतना ही नहीं यहाँ तकरीबन 60 करोड़पति है और प्रति व्यक्ति आय भी यहाँ सर्वाधिक है. अनावृष्टि के कारण सूखे की समस्या से ग्रसित रहने के कारण यहाँ के लोगों ने पानी का अधिक इस्तेमाल करनी वाली फसलों से किनारा कर लिया व बागवानी एवं पशुपालन कि तरफ रुख किया। जल संरक्षण के लिए उनके किए गए अथक प्रयासों भूगर्भीय जल में वृद्धि हुई और गाँव समृद्ध होने लगा। आज इस गाँव के 294 कुओं में हमेशा पानी भरा रहता है.
4. ओडंथुराई, तमिलनाडु
ओडंथुराई, कोयंबटूर जिले के मेटटुपालयम तालुक में एक पंचायत जो कि पिछले 1 दशक से ज्यादा समय से अन्य गांवों के लिए आदर्श है। यह पंचायत न सिर्फ अपने उपयोग के लिए बिजली उत्पादित कर रहा है बल्कि उत्पादन इतना अधिक है. कि वह अतिरिक्त बिजली तमिलनाडू बिजली विभाग को भी बेच रहा है. अपने सामाजिक कल्याण कि योजनाओं व अपनी विद्युत आवश्यकता की पूर्ति कर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके ओडंथुराई अब 5 करोड़ का कोष स्थापित करने व उससे सौर ऊर्जा व पवन ऊर्जा के स्रोत स्थापित करने में जुटा है जो कि 8,000 लोगों को बिना शुल्क बिजली उपलब्ध कराएगा.
5. चिजामी, नागालैंड
नागालैंड के फेक जिले का 1 छोटा सा गाँव चिजामी पिछले 1 दशक से अधिक समय से सामाजिक, आर्थिक सुधारो व पर्यावरण संरक्षण कि दिशा एक क्रांति ले कर आया है। नागा समुदाय में एक आदर्श गाँव रूप के में जाना जाने वाले चिजामी में आज कोहिमा और आस पास के गांवों के युवा इंटर्नशिप और चिजामी विकास मॉडल कि जानकारी लेने आते है. चिजामी विकास मॉडल कि सबसे अनोखी बात यहाँ है कि यहाँ हुए सुधारो में मुख्य भूमिका अब तक हाशिये पर रही महिलाओं ने निभाई है.
6. गंगादेवीपल्ली, आंध्र प्रदेश
अगर भारत की आत्मा गांवों में बस्ती है तो जो विकास का मॉडल हमे अपनाना चाहिए वो है, गंगादेवीपल्ली विकास मॉडल। आंध्र प्रदेश के वारंगल जिले मे बसा छोटा सा कस्बा जहां जीवन के लिए आवश्यक किसी सुविधा की कमी नहीं है। लगातार आने वाली बिजली से लेकर अनवरत पानी की सप्लाई और वैज्ञानिक पद्धति से पानी शुद्ध करने वाला यंत्र, समुदाय द्वारा स्थापित केबल टीवी, पक्की और रोशनी युक्त सड़के। यह गाँव लगातार समृद्धि की और बढ़ रहा है और इसका श्रेय जाता है वहाँ के निवासियों को जो सभी विषमताओं को भुलाकर एक साथ आए है.
7. कोकरेबेल्लूर, कर्नाटक
कर्नाटक के मद्दूर तालुक का कोकरेबेल्लूर गाँव में जाने पर आपको एक अनोखा दृश्य देखने को मिलेगा, आप यहाँ घरों के बैकयार्ड में भारत में पायी जानी वाली अति दुर्लभ पक्षियों को चहचहाते पाएंगे। इस गाँव का नाम ही एक प्रकार के सारस के जिन्हें कन्नड़ भाषा में कक्कारे कहा जाता है, पर पड़ा है। यह गाँव पक्षियों के लिए एक सुरक्षित अभयारण्य नहीं है, पर फिर भी यहाँ के निवासियों ने यह उदाहरण प्रस्तुत किया है कि मानव जाति और पक्षी एक साथ बिना एक दूसरे को नुकसान पहुंचाए बिना अपना अस्तित्व बनाए रख सकते हैं। यहाँ के निवासी इन पक्षियों को अपने परिवार के सदस्य की तरह ही प्यार करते हैं। यहाँ घायल पक्षियों के लिए भी विशेष व्यवस्था की गयी है, यहाँ पक्षी भी अब इतना भरोसा करने लगे हैं कि आप उन्हें काफी निकट से देख सकते हैं.
8. खोनोमा, नागालैंड
ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के प्रतिरोध से लेकर भारत के प्रथम ग्रीन विलेज बनने तक, खोनोमा ने काफी प्रगति की है। 700 साल पुरानी अंगामी सेटलमेंट व सीढ़ीनुमा खेतों का यह घर है, यह अनोखा व आत्मनिर्भर गाँव नागालैंड के मूलनिवासियों की पारिस्थितिक तंत्र संरक्षण की नागा जनजाति की परंपरा वसीयत का हिस्सा है। इस गाँव में शिकार पर प्रतिबंध है, यहाँ के निवासी अपनी अनोखी झूम कृषि का सहारा लेते है जो कि मृदा को और उपजाऊ बनाती है.
9. पुंसारी, गुजरात
पुंसारी गाँव, अहमदाबाद से 100 किमी. से भी कम दूरी, विकास ऐसा कि किताबों में पाठ के रूप में शामिल कर लिया जाए। सी. सी. टीवी कैमरे, वाटर प्यूरिफाइ करने के लिए यंत्र, वातानुकूलित स्कूल, बायो-गैस संयंत्र, वाई-फ़ाई, बीओमैट्रिक मशीने यहाँ सब कुछ है। यह सब हुआ है पिछले 8 सालों में व कुल लागत है 16 करोड़। इस बदलाव के पीछे है यहाँ के 33 वर्षीय युवा सरपंच हिमांशु पटेल जो गर्व के साथ कहते है कि उनके गाँव में “शहर की सारी सुविधाएं है पर मूल भावना वही गाँव वाली है।”
10. रामचन्द्रपुर, तैलंगाना
निर्मल पुरस्कार(2004-2005) जीतने वाला तैलंगाना का प्रथम गाँव। रामचन्द्रपुर ने सबका ध्यान अपनी और एक दशक पूर्व तब आकर्षित किया जब यहाँ के निवासियों ने अपनी आंखें दृष्टीबाधित लोगों को देने का निश्चय किया। इस गाँव की कई उपलब्धियों में है कि यहाँ किसी भी घर में कच्चे चूल्हे नहीं है, सभी घरों में टैप वॉटर सुविधा के साथ शौचालय बने है। राज्य का यह पहला गाँव है जिसने पास बहने वाली नदी की उपसतह पर बाँध बनाकर व घरों में 2 ओवरहैड टैंक बना कर पीने के पानी की समस्या से निजात पाली है। इस गाँव के प्रत्येक घर से निकालने वाला सारा पानी घरों में बने बगीचों में जाता है.
11. मावल्यंनोंग, मेघालय
मावल्यंनोंग के इस कस्बे में प्लास्टिक प्रतिबंधित है, गाँव के रास्ते एक दम बेदाग और किनारे फूलो से आच्छादित है, कुछ कदम दूरी पर बांस के बने कूड़ेदान लगे है, स्वयंसेवक कुछ देरी के अंतराल में गाँव कि सफाई करते है और हर जगह लगे बड़े बड़े साइन बोर्ड आगंतुकों को कचरा ना फैलाने के लिए सचेत करते रहते हैं। यहाँ सफाई करना एक परंपरा है जो नन्हे बालकों से लेकर वयोवृद्ध व्यक्ति भी गंभीरता से लेते है। यहाँ के लोगों के अथक प्रयासों का ही कमाल है कि यह गाँव आज भारत का ही नहीं एशिया का सबसे स्वच्छ गाँव है.
12. पिपलान्त्री, राजस्थान
पिछले कुछ वर्षों से पिपलान्त्री ग्राम पंचायत बेटी बचाओ अभियान के साथ ही अपने यहाँ के वन क्षेत्र में वृद्धि कर रही है। यहाँ ग्राम वासी प्रत्येक बालिका के जन्म होने पर 111 पौधे लगाते है और पूरा समुदाय मिलकर यह सुनिश्चित करता है कि उन पौधे की समुचित देखभाल की जाए, ताकि बड़े होने पर बालिकाएँ भी इन से लाभ प्राप्त कर सके। यहाँ लोग बालिकाओं के लिए एक मुश्त राशि भी सुरक्षित रखते है, व बालिका के माता-पिता से एक हलफनामा भी भरवाते हैं, जिससे उनकी शिक्षा में कोई रुकावट ना आए पिछले 9 वर्षों के भीतर यहाँ के वासियों ने तकरीबन 25,000 से अधिक पेड़ ग्राम पंचायत के चरागाह पर लगाएँ है। इन पेड़ो को दीमकों से बचाने के लिए इन पेड़ो से आस-पास 2.5 लाख से अधिक एलोवीरा के पौधे लगाए है। अब ये पेड़ और एलोवीरा के पौधे कई गाँव वालों की आजीविका के स्रोत बन गए है.
13. एरावीपेरूर, केरल
उस समय जब पूरे देश में डिजिटल इंडिया की बाते हो रहीं थी व इस बात को लेकर चर्चा चल रही थी कि भारत के सुदूर इलाको में तकनीक कैसे पहुंचाई जाए, प्रथनमिठ्त्ता जिले के एरावीपेरूर ग्राम पंचायत इस क्षेत्र में अग्रणी है। यह केरल की पहली ग्राम पंचायत है जहां आम जनता के लिए फ्री वाईफाई उपलब्ध कराया जा रहा है. इस पंचायत ने निर्धनों के लिए प्रशामक देखभाल योजना भी लागू की है, यह राज्य की प्रथम पंचायत है जहां कि प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं का ISO:9000 प्रमाणीकरण हुआ है। इस गाँव को होर्टिकल्चर विभाग द्वारा आदर्श हाइ-टेक गाँव का दर्जा भी प्राप्त है.
14. बघूवर, मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश का बघूवर गाँव भारत का एकमात्र ऐसा गाँव है, जहां आज़ादी के समय से ही कोई सरपंच नहीं है। यहाँ के हर घर में शौचालय है व एक संयुक्त शौचालय भी है, जिसे समारोह में उपयोग किया जाता है। इस गाँव में भूमिगत सीवेज लाइन है व साथ ही पूरे राज्य में सर्वाधिक बायो-गैस प्लांट भी यहीं है। यहाँ उत्पादित गैस को गाँव को रोशन करने व खाना पकाने के लिए काम में लिया जाता है। यहाँ जल संरक्षण भी इतने बेहतर ढंग से किया गया है, कि यह अकाल, सूखा पड़ने पर कई समय तक उससे मुक़ाबला कर सकता है।
15. शिखदमखा, असम
स्वच्छ भारत अभियान के शुरू होने से कई समय पहले 2010 सुदूर आसाम के गुवाहाटी के नजदीक स्थित शिखदमखा गाँव स्वच्छता के अभियान में ज़ोर शोर से लगा है ये गाँव स्वच्छता के लिए प्रतियोगिताएं आयोजित करता है और चाहता है कि ये मेघालय के मावल्यंनोंग से उसके सबसे स्वच्छ होने का खिताब छीने। पूरी तरह से प्लास्टिक मुक्त इस गाँव ने केन्द्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय के क्लीनलीनेस सब- इंडेक्स में सर्वाधिक अंक प्राप्त किए है। शिखदमखा ने हाल ही में खुले में शौच से मुक्त का प्रतिष्ठित स्टेटस भी प्राप्त किया है.