आज सारी दुनिया खाद्यान्न संकट से जूझ रही है और भारत भी इससे अछूता नहीं है. यूं तो भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहां खाद्यान्नों का बहुतायत से उत्पादन होता है, लेकिन बदलती वैश्विक परिस्थितियों और महंगाई के कारण भारत पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं और इस आग में घी लगाने का काम किया है खाद (khad) की बढ़ती कीमतों ने.
आइए जानते हैं कि दुनिया भर में खाद (fertilizer) की बढ़ती कीमतों का कारण क्या है?
रूस-यूक्रेन संकट है बड़ा कारण
रूस-यूक्रेन की जंग ने सारी दुनिया के लिए मुश्किलें पैदा की हैं. रूस गैस, अनाज और खाद का दुनिया भर में निर्यात करता रहा है लेकिन अब आर्थिक प्रतिबंधों के चलते ऐसा करना मुश्किल हो गया है. इसीलिए अनाज उगाने की तैयारी में काम आने वाले खाद से लेकर खाने के सामान तक की कीमतों में भारी उछाल आ गया है. रूस यूक्रेन युद्ध के कारण चरमराई खाद की आपूर्ति फर्टिलाइजर्स की कीमत में वृद्धि का बहुत बड़ा कारण बनी है.
क्या होगा इसका भारत पर असर और क्या है सरकार का रवैया
अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद (fertilizer) की बढ़ती कीमतों के दुष्प्रभाव से हमारे किसानों को बचाने के लिए भारत सरकार ने खाद सब्सिडी को दोगुना करने की तैयारियां शुरू कर दी है क्योंकि खाद की कीमतें जहां पिछले साल 80 फीसदी बढ़ी थी , वहीं इस साल भी 30 फ़ीसदी तक बढ़ोतरी हो चुकी है. ऐसा अनुमान है कि सरकार इस साल खाद सब्सिडी पर 200000 करोड़ रुपए खर्च करने की योजना बना रही है. भारत की कृषि के विकास के लिए ऐसा करना जरूरी भी है.
घातक होंगे परिणाम
यदि खाद (Fertilizer) की बढ़ती कीमतों पर लगाम नहीं लगाई गई तो इसका असर बहुत गहरा होगा, क्योंकि खाद का प्रयोग उपज पैदा करने से पहले किया जाता है. यानि उत्पादित होने वाले अनाज की कीमत स्वतः ही बढ़ी हुई मिलेगी. हो सकता है किसान उत्पादन की मात्रा भी घटा दें क्योंकि वह अपनी लागत ज्यादा बढ़ाना नहीं चाहेगा और परिणाम यह होगा कि खाद्यान्न संकट बढ़ेगा.
एक नजर खाद की बढ़ी कीमतों पर
नाइट्रोजन, फास्फोरस, और पोटैशियम से बनने वाली खाद की कीमतें सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि सारी दुनिया में बेतहाशा बढ़ी है. इसके साथ ही यूरिया और डाई अमोनियम फास्फेट (DAP) की कीमतों में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है. जिसका कारण कोयला और नेचुरल गैस का महंगा होना बताया जा रहा है.
यूरिया की कीमतों की बात की जाए तो यह 2008 के संकट के स्तर को भी क्रॉस कर चुकी है. मूरिएट आफ पोटाश(m.o.p) रूस यूक्रेन युद्ध के पहले 280 डॉलर प्रति टन के भाव से बिक रहा था और आज इसकी कीमत 500 डॉलर प्रति टन पहुंच चुकी है.
यूरोपीय देशों ने रूस से प्राकृतिक गैस आयात करना बंद तो कर दिया लेकिन इसका परिणाम यह हुआ कि खाद बनाने वाले कारखानों में यह गैस बहुत महंगी हो गई और इसके भाव 9 डॉलर से बढ़कर 25 डॉलर तक पहुंच गए. रही सही कसर चीन द्वारा खाद निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंधों ने पूरी कर दी.
खाद पर छाए संकट का भारत पर बहुत गहरा असर होगा क्योंकि भारतीय किसान यूरिया डीएपी और m.o.p. खाद का प्रयोग करते हैं जिसका एक बड़ा हिस्सा विदेशों से खरीदा जाता है .
अलग-अलग देशों से आयात किए जाने वाले खाद:-
भारत में प्रयोग में लाया जाने वाला एक तिहाई यूरिया चीन से आयात किया जाता है.
हम करीब 50 फ़ीसदी पोटाश रूस और बेलारूस से आयात करते थे.
करीब 60 फ़ीसदी डीएपी चीन और सऊदी अरब से आयात जाता है.
हमारी आवश्यकता का करीब 20 फीसदी सल्फ्यूरिक एसिड हम रूस, बेलारूस और यूक्रेन से आयात करते हैं, यानी हम कह सकते हैं कि देश की आयातित खाद का एक बहुत बड़ा भाग रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग के कारण प्रभावित हुआ है. चीन द्वारा निर्यात पर पाबंदी ने जले पर नमक छिड़कने का काम किया है.
क्या किसानों के साथ है सरकार?
सरकार खाद पर अनुदान बढ़ाकर देने को तैयार है. ऐसी विकट परिस्थिति में सरकार का मानना है कि किसानों को मदद की सख्त जरूरत है और इसीलिए उसने खाद पर दी जाने वाली सब्सिडी को बढ़ाने का मन बना लिया है.
इसीलिए खाद सब्सिडी लगभग दुगनी करने पर विचार किया जा रहा है. यानी यह दो लाख करोड़ रुपए से ऊपर हो जाएगी. इससे निश्चित रूप से हमारे किसान भाइयों को राहत मिलेगी और खाद्यान्न के उत्पादन के लिए प्रोत्साहन भी मिलेगा.