झारखंड में खेती के लिए बहुत संभावनाएं हैं. कई किसान फसलों की बुवाई के लिए बारिश पर निर्भर रहते हैं. इसके लिए उन्हें मानसून का इंतजार करना पड़ता है, लेकिन झारखंड के सिमडेगा जिले के किसान बारिश की चिंता किए बिना ही खेती कर रहे हैं.
जी हां, यहां के किसान अब खेती करने के लिए सिर्फ बारिश पर निर्भर नहीं है, क्योंकि अब उनके पास पानी की उपलब्धता है, जिससे वह साल में 2 से 3 फसलों की बुवाई कर रहे हैं. यहां खेती की तस्वीर जिस योजना बदली है, वह राजकीय जलछाजन परियोजना (Jalchajan Pariyojana) हैं. इसके जरिए जलस्तर बढ़ा है, जिससे खेती बढ़ी है और किसानों की आमदनी में इजाफ़ा हुआ है.
साल 2016 में शुरु हुआ काम
जल को संरक्षित करने, जंगल और खेती योग्य जमीन को बचाने, तालाब और डोभा निर्माण से मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के साथ ही कृषि के तरीको में सुधार करने के लिए राजकीय जलछाजन परियोजना वर्ष 2016 में (Jalchajan Pariyojana) प्रारंभ की गई. जानकारी के लिए बता दें कि नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) ने झारखंड में जलछाजन योजना के लिए 300 करोड़ रुपये दिए हैं। यह राशि राज्य सरकार को ऋण के रूप में दी गई है। इस राशि से पूरे राज्य में 29 यूनिट जल छाजन परियोजनाओं का क्रियान्वयन हो रहा है . इसे आर.आई.डी.एफ. (RIDF- Rural Infrastructure Development Fund) के तहत शुरू किया गया है . इस परियोजना के तहत टीसीबी बनाए जाते हैं. कई जगहों पर वैट और मेड़बंदी का निर्माण भी किया जाता है.
सिमडेगा और पाकरटांड़ प्रखंड में हुआ काम
इस परियोजना के तहत सिमडेगा और पाकरटांड़ प्रखंड के गांवों में जल संरक्षण का कार्य किया गया है. इसका लाभ यह है कि इन प्रखंडों में लगभग 625 हेक्टेयर जमीन पर जलस्तर ऊंचा हो गया है. यानी अब किसान इस जमीन पर साल में 2 से 3 फसलों की बुवाई कर सकते हैं.
गांव में क्या काम हुआ
इस परियोजना के जरिए सिमडेगा और पाकरटांड़, दोनों प्रखंड के गांवों में टीसीबी यानी ट्रेंच कम बंड और वैट (WAT) बनाए गए हैं इसके साथ ही खेतों की मेड़बंदी की गई है और डोभा बनाए गए हैं. इससे लगभग 10 राजस्व गांव और 80 टोलों में लाभ हुआ. चिकसूरा गांव में 5 हेक्टेयर जमीन और तामड़ा में 10 हेक्टेयर जमीन में कार्य हुआ. कुछ जिलों में वर्षापात का औसत ठीक होने के बाद भी जमीन पर पानी ना रुकने से सूखे की समस्या रहती है। इसके लिए टीसीबी निर्माण का कार्य किया जा रहा है. तालाबों एवं डोभा के निर्माण के बाद उनके मेढों पर घास बिछाने का काम करने से गांव के लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार भी मिला. इसके अलावा जल छाजन परियोजना से डोभा, तालाब व मेड़बंदी में भी पॉलिशिंग के कार्य की जरूरत होने से रोजगार सृजित हो रहे है.
टीसीबी के फायदे
पाठकों को ज्ञात होगा कि राज्य में मनरेगा के तहत भी टीसीबी का निर्माण कराया जा रहा है. किन्तु जलछाजन के तहत बनाए गए टीसीबी और मनरेगा के तहत बनाए गए टीसीबी के आकार में फर्क होता है. जो टीसीबी जलछाजन के तहत बनाई जाती है, उसकी लंबाई 20 फीट होती है और चौड़ाई और गहराई ढ़ाई फीट होती है. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि 1 एकड़ में बने टीसीबी से 1 साल में लगभग 1 करोड़ लीटर पानी की बचत की जा सकती है.
आज प्रदेश के कई किसान अपने तालाबों एवं डोभा के पानी का उपयोग कर न केवल अपने जरूरत की चीजें उपजा रहे हैं, बल्कि आत्मनिर्भर भी हो रहे है. इस परियोजना से लाभान्वित किसान तालाब में मछली पालन करके आमदनी भी बढ़ा रहे है. साथ ही वे इस तालाब के पानी का उपयोग अपने खेतों में टमाटर और बैगन की खेती के लिए कर रहे हैं.
इस तरह जलछाजन योजना के द्वारा खेती के साथ पशुपालन को मिल रहा है बढ़ावा, तालाब और डोभा निर्माण से मत्स्य पालन करके किसानों की बढ़ रही है आमदानी. किसानों को सिंचाई सुविधा निर्बाध मिल रही है . कुल मिलाकर राजकीय जलछाजन परियोजना जल बचाने के साथ-साथ किसानों की आमदनी बढ़ाने में भी काफी मदद कर रही है.