आजकल की खेती/कृषि कार्य जिस तरह से किए जाते हैं, उसका साफ़ मतलब पर्यावरण और मिट्टी की उर्वरक क्षमता को ताख पर रखते हुए सिर्फ उत्पादन को बढ़ावा देना है. अधिक लाभ और गुणवत्ता के लिए कृषि में विभिन्न प्रकार के रसायनिक खाद,कीटनाशक और उर्वरकों का प्रयोग लम्बे समय से किया जाता है.
जिससे मिट्टी की उर्वरता तो खत्म होती है, साथ ही इसका दुर्प्रभाव पर्यावरण और मानव के शरीर पर भी पड़ता है. इस समस्या को गंभीरता से लेते हुए समाधान जल्द से जल्द खोजा जाए. आज इस कड़ी में आज हम बात करेंगे कि आखिर इसको रोकने का क्या उपाय हो सकता है? जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति, पर्यावरण और मानव शरीर पर भी कोई असर ना पड़े.
सतत/टिकाऊ कृषि
सतत विकास का अर्थ स्थाई या फिर टिकाऊ विकास होता है. जो मौजूदा हालात के अनुकूल सभी चीजों को एक साथ लेकर आगे बढ़ता है. इस विधि का अब तक कोई दुर्प्रभाव नहीं देखा गया है. तो आइये विस्तार से जानते हैं कि आखिर सतत कृषि क्या है और इससे किसानों को कैसे लाभ मिल सकता है.
स्थाई कृषि
स्थाई/टिकाऊ कृषि भूमि वन्य प्राणी, फसल, मत्स्य पालन, पशुपालन, वन-संरक्षण पौध,आनुवंशिक तथा पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलित प्रबन्ध द्वारा पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाकर वर्तमान एवं भावी पीढ़ी के लिए भोजन एवं जीविको पार्जन की व्यवस्था के साथ-साथ उत्पादकता एवं प्राकृवास (Natural habitat) को बनाए रखने की पद्धति है. स्थाई कृषि की पद्धति अल्पकालिक (short term) ही नहीं, बल्कि दीर्घकालीन (Long Term) आर्थिक सम्भावनाओं के दृष्टिकोण से भी उपयोगी एवं अनुकरणीय (Exemplary) भी है.
प्राकृतिक संसाधनों से मुनष्य को अन्न, वस्त्र, ईंधन, चारा प्राप्त होने के साथ ही हानिकारक रसायनों द्वारा उत्पन्न मृदा एवं जल विषाक्तता (Water poisoning) को कम करने, अनुकूल मौसम वाह-क्षेत्र में जल- चक्र नियंत्रण आदि के संवर्धन में भी सहायता मिलती है.
स्थाई कृषि से मृदा अपघटन तथा मृदाक्षरण की रोकथाम के साथ ही पोषक तत्त्वों की परिपूर्ति, खरपतवार, कीट एवं रोग व्याधियों का जैविक तथा कृषिगत विधियों से नियंत्रण किया जाता है.
इसके गुणकारी लाभों को समझते हुए और इसको बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने हेतु सरकार नें राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन की भी शुरुआत की है. तो आइये नजर डालते हैं क्या है राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन और इसका उद्देश्य.
राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन
आपको बता दें कि भारत सरकार ने 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना के तहत उपयुक्त अनुकूलन और शमन उपायों के माध्यम से भारतीय कृषि को जलवायु अनुकूल उत्पादन प्रणाली में बदलने के लिए 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन की शुरुआत हुई थी. जिसका उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों जैसे मृदा एवं जल की गुणवत्ता और उपलब्धता पर भी निर्भर करता है. कृषि विकास को समुचित स्थिति विशिष्ट उपायों के माध्यम से इन दुर्लभ प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और सतत प्रयोग को बढ़ावा देकर संधारणीय बनाया जा सकता है.
राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन का उद्देश्य
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कृषि को स्थान विशिष्ट एकीकृत/संयुक्त कृषि प्रणालियों को बढ़ावा देकर और अधिक उत्पादक, सतत, लाभकारी और जलवायु प्रत्यास्थ (elastic) बनाना है.
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समुचित मृदा और नमी संरक्षण उपायों के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना.
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मृदा उर्वरता मानचित्रों, बृहत एवं सूक्ष्म पोषक तत्वों के मृदा परीक्षण आधारित अनुप्रयोक्ता समुचित उर्वरकों के प्रयोग इत्यादि के आधार पर व्यापक मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन पद्धतियां अपनाना.
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'प्रति बूंद अधिक फसल हासिल करने के लिए व्याप्ति (coverage) बढ़ाने हेतु कुशल जल प्रबंधन के माध्यम से जल संसाधनों का इष्टतम उपयोग.
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जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और अल्पीकरण के क्षेत्र में अन्य चालू मिशनों अर्थात राष्ट्रीय कृषि विस्तार एवं प्रौद्योगिकी मिशन, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, राष्ट्रीय कृषि जलवायु प्रत्यास्थता पहल (एनआईसीआरए) इत्यादि के सहयोग से किसानों एवं पणधारियों की क्षमता बढ़ाना.