भले ही शहरीकरण के इस दौर में हमारा पूरा दिन गगनचुंबी इमारतों के अंदर बीतता हो, लेकिन हम चाहकर भी अपने आपको गांव की उन कच्ची सड़कें, कुएं के पानी, खेतों में काम करते किसान, खेतों में चरती गायों सरीखे दृश्यों को अपने जेहन से कभी अलहदा नहीं कर सकते हैं. बेशक, आधुनिकरण के इस दौर में आज हमने शहरों की ओर रूख करना शुरू कर दिया हो. गांवों की संस्कृति अपने समाप्ति के मुहाने पर दस्तक दे चुकी हो, लेकिन गांव, किसान, खेत व खलिहान की महत्ता को कभी गौण नहीं किया जा सकता. इसी का तो नतीजा है कि आजादी के सात दशकों के बाद से लेकर अब तक बेशुमार हुकूमतें हिंदुस्तान की सत्ता पर तख्तनशी रही है, लेकिन हमेशा से उनकी किताबों में किसानों की इबारतें अमिट रही.
यूं तो आजादी के सात दशकों के बाद भी किसान भाइयों की समस्याओं की फेहरिस्त काफी लंबी है और सरकार किसानों को उनकी समस्याओं से निजात दिलाने के लिए आगे क्या कुछ करती है. यह तो फिलहाल भविष्य के गर्भ में छुपा है, लेकिन इस रिपोर्ट में हम आपको वैज्ञानिकों की उस तकनीक से रूबरू कराने जा रहे हैं, जो किसानों को तपिश भरी गर्मी से महफूज रखने में कारगर साबित हो सकती है. आखिर इन वैज्ञानिकों ने किसानों को तपिश भरी धूप से निजात दिलाने के लिए क्या कुछ कदम उठाया है, जानने के लिए पढ़िए ये पूरी रिपोर्ट..