Maize Farming: रबी सीजन में इन विधियों के साथ करें मक्का की खेती, मिलेगी 46 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार! पौधों की बीमारियों को प्राकृतिक रूप से प्रबंधित करने के लिए अपनाएं ये विधि, पढ़ें पूरी डिटेल अगले 48 घंटों के दौरान दिल्ली-एनसीआर में घने कोहरे का अलर्ट, इन राज्यों में जमकर बरसेंगे बादल! केले में उर्वरकों का प्रयोग करते समय बस इन 6 बातों का रखें ध्यान, मिलेगी ज्यादा उपज! भारत का सबसे कम ईंधन खपत करने वाला ट्रैक्टर, 5 साल की वारंटी के साथ Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Mahindra Bolero: कृषि, पोल्ट्री और डेयरी के लिए बेहतरीन पिकअप, जानें फीचर्स और कीमत! Multilayer Farming: मल्टीलेयर फार्मिंग तकनीक से आकाश चौरसिया कमा रहे कई गुना मुनाफा, सालाना टर्नओवर 50 लाख रुपये तक घर पर प्याज उगाने के लिए अपनाएं ये आसान तरीके, कुछ ही दिन में मिलेगी उपज!
Updated on: 29 August, 2020 3:03 PM IST
Grass Hoppers

इस समय राजस्थान के किसानों की चिंता काफी बढ़ गई है, क्योंकि राज्य में टिड्डियों (Locusts) के बच्चे यानी हॉपर्स (Hoppers) का प्रकोप बढ़ रहा है. राज्य में जब से मानसून की बारिश हुई है, तब से करोड़ों की तादाद में हॉपर्स जमीन से बाहर निकल रहे हैं, जो कि किसानों की फसलों को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं.

इस कड़ी में कृषि विभाग (Agriculture Department) और टिड्डी चेतावनी संगठन लगातार हॉपर्स को नष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं. फिलहाल दावा किया जा रहा है कि अभी इस स्थिति पूरी तरह से नियंत्रण में है.

इन जिलों में हैं टिड्डियों का प्रकोप (There is an outbreak of locusts in these districts)

  • जैसलमेर

  • पाली

  • नागौर

  • बाड़मेर

  • जोधपुर

  • बीकानेर

  • चूरू

ऐसे किया टिड्डियों का खात्मा (This is how the locusts were eliminated)

विभाग का कहना है कि कीटनाशक के छिड़काव के जरिए हॉपर्स को नियंत्रित किया जा चुका है. इनका प्रकोप काफी बड़े स्तर पर था, लेकिन समय रहते इनको नियंत्रित करने के प्रयास शुरू कर दिया था.

अब चुनिंदा जगहों पर ही हॉपर्स छितराई अवस्था में देखने को मिल रहे हैं. इन हॉपर्स को नियंत्रित करने के प्रयास लगातार जारी है. इनके खात्मे के लिए लैम्ब्डा सिहलोथ्रिन कीटनाशक का छिड़काव किया गया है.

खाई खोदने की पारम्परिक तकनीक भी कारगर है (The traditional technique of digging a trench is also effective)

कीट विज्ञान विशेषज्ञों का कहना है कि खाई खोदकर हॉपर्स को नियंत्रित करने वाली पारम्परिक तकनीक भी कारगर है. इस तकनीक में खेत के आस-पास लगभग 2 फीट गहरी खाई खोद दी जाती है, जिससे हॉपर्स इसमें गिर जाते हैं और वह बाहर नहीं निकल पाते हैं.

इसके बाद कीटनाशकों का छिड़काव करके उन्हें नष्ट कर दिया जाता है. इस तरह कीटनाशक का इस्तेमाल भी कम होता है, साथ ही फसल भी कीटनाशक से सुरक्षित रहती है.

मोबाइल ऐप भी तैयार (Mobile app ready)

कृषि विभाग की तरफ से हॉपर्स की मॉनिटरिंग के लिए मोबाइल ऐप भी तैयार किया गया है. इसके जरिए नियंत्रण में लगे कर्मचारियों को हॉपर्स के निकलने की अग्रिम जानकारी मिलती है. इस तरह नियंत्रण का कार्य प्रभावी हो जाता है. अगर संसाधनों की बात की जाए, तो टिड्डी नियंत्रण में लगे संसाधन ही हॉपर्स के नियंत्रण में उपयोग लिए जा रहे हैं. 

इसके सर्वेक्षण के लिए लगभग 120 और नियंत्रण के लिए 45 वाहन लगे हैं. इसके अलावा ट्रैक्टर, माउंटेड स्प्रेयर और पानी के टैंकर भी उपलब्ध करवाए गए हैं. इस पर कंट्रोल रुम की नजर बनी हुई है, जिससे टिड्डियों और हॉपर्स की सूचना मिलती रहती है.

English Summary: Hoppers are being attacked on crops, farmers should avoid spraying these pesticides
Published on: 29 August 2020, 03:08 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now