एक बार फिर इसके विरोध में ये किसान दिल्ली की घेराबंदी किए बैठे हैं. पंजाब और हरियाणा के किसानों के बाद उत्तर प्रदेश के किसान भी इसके विरोध में आ गए हैं. जिसकी वजह से सरकार की टेंशन बढ़ गई है. लेकिन इन तीनों कानून में ऐसा क्या है जिसकी वजह से ये संग्राम छिड़ा है, आखिर जिन कानूनों को सरकार किसानों के हित में बता रही है, वही कानून किसानों के लिए विरोध प्रदर्शन का सबब क्यों बने हैं? चलिए तीनों नए कृषि कानून के बारे में पूरी डिटेल से आपको बताते हैं:
1. किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) कानून
इस कानून में प्रावधान किया गया है कि किसानों को मंडियों से बाहर फसल बेचने की आजादी होगी. इस कानून में राज्य के अंदर और दो राज्यों के बीच कारोबार को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया है. इतना ही नहीं, इसमें ट्रांसपोर्टेशन और मार्केटिंग का खर्च कम करने की बात भी कही गई है. यानी इस कानून में विभिन्न कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी) द्वारा विनियमित मंडियों के बाहर कृषि उपज की बिक्री की छूट दी गई है. सरकार का कहना है कि किसान इस कानून के द्वारा एपीएमसी मंडियों के बाहर भी अपनी उपज ऊंचे दामों में बेच सकते हैं. सरकार के मुताबिक ऐसा करने से किसानों को निजी खरीदारों से बेहतर दाम मिलेंगे.
क्यों हो रहा है विरोध ?
किसानों और आड़तियों का कहना है कि सरकार ने इस कानून के जरिए एपीएमसी मंडियों को एक सीमा में बांध दिया गय है. एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमेटी (APMC) के स्वामित्व वाले अनाज बाजार (मंडियों) को उन बिलों में शामिल नहीं किया गया है. इसके जरिए बड़े कॉरपोरेट खरीदारों को खुली छूट दी गई है. किसानों के मुताबिक कॉरपोरेटर्स बिना किसी पंजीकरण और कानून के दायरे में आए किसानों की उपज खरीद-बेच सकते हैं.
किसानों को यह भी डर सता रहा है कि कहीं सरकार धीरे-धीरे न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) खत्म ना कर दे. लेकिन सरकार ने साफ कहा है कि MSP खत्म नहीं होगा.
2. किसान मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं कानून
ये कानून कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की इजाजत देता है, यानी इस कानून में एग्रीकल्चर एग्रीमेंट पर नेशनल फ्रेमवर्क का प्रावधान है. ये कानून कृषि उत्पादों की बिक्री, फार्म सेवाओं, कृषि बिजनेस फर्म, प्रोसेसर्स, थोक और खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों के साथ किसानों को जोड़ता है. कानून में आप की जमीन को एक निश्चित राशि पर एक पूंजीपति या ठेकेदार किराए पर लेगा और अपने हिसाब से फसल का उत्पादन कर बाजार में बेचेगा.
किसानों की क्या है मांग?
किसान इस कानून का सबसे ज्यादा विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि फसल की कीमत तय करने और विवाद की स्थिति में बड़ी कंपनियां लाभ उठाने की कोशिश करेंगी और छोटे किसानों के साथ समझौता नहीं करेंगी. इससे किसानों पर दबाव बढ़ेगा.
3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून
इस कानून के तहत अनाज, दालों, आलू, प्याज और तिलहन जैसे खाद्य पदार्थों को आवश्यक वस्तुओं की सूची से बाहर रखा गया है. सरकार का कहना है कि इस कानून की वजह से बाजार में कॉम्पिटीशन बढ़ेगा जिससे किसानों को उनकी फसल की सही कीमत मिलेगी. इसके बाद आपात स्थितियों को छोड़कर भंडारण की कोई सीमा नहीं रह जाएगी.
किसानों का आरोप
किसानों का कहना है कि यह कानून न केवल उनके लिए बल्कि आम जन के लिए भी ठीक नहीं है. उपज जमा करने के लिए निजी निवेश को छूट होगी और सरकार को पता भी नहीं चलेगा कि किसके पास कितना स्टॉक है?