अगर चावलों की बात करें, तो सबसे पहला नाम जुबान पर बासमती का ही आता है. बासमती भारत में चावल की एक उम्दा किस्म है. हालाँकि, इसका वैज्ञानिक नाम काफ़ी अलग और अनोखा-सा है. आप पढ़ेंगे तो चौंक जरूर जाएंगे. इसका वैज्ञानिक नाम ओराय्ज़ा सैटिवा है. जी हाँ हर फसल का अपना वैज्ञानिक नाम होता है. उसी तरह बासमती चावल को हम इस नाम से भी जानते हैं. यह चावल अपनी लम्बाई, खुशबू और सफ़ेद रंगों की वजह से काफी मशहूर है.
भारत इस किस्म का सबसे बड़ा उत्पादक है. वहीं, भारत के पीछे इस कतार में खड़े भारत के कई अन्य पड़ोसी देश भी शामिल हैं, जैसे पकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश. पारम्परिक तरीकों से उगाई जाने वाली बासमती के पौधे काफी लम्बे और पतले होते है. इसकी पैदावार भी कम है लेकिन उच्च श्रेणी कि पैदावार होती है. तभी तो बासमती चावल की किस्मों का राजा माना जाता है. किसी भी तरह का आयोजन या छोटी-बड़ी पार्टी हो, हम खाने में बासमती चावल का ही प्रयोग करना पसंद करते है. स्वाद में भी इसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता.
बासमती की बढ़ती मांग और लोकप्रियता को देखते हुए देश का पहला बासमती अनुसंधान केंद्र जम्मू-कश्मीर में बनाया जाएगा. इसके लिए आरएस पुरा के चकरोई में 800 कनाल भूमि का चयन हो गया है. इसको बनाने का खर्च कुल 10 करोड़ रुपये तक आ सकता है. अनुसंधान केंद्र तैयार होने के बाद विश्व प्रसिद्ध आरएस पुरा की बासमती को अलग पहचान मिलेगी. स्वाद और सुगंध को और विकसित करने के लिए, नई किस्में तैयार करने समेत बासमती से बनने वाले अन्य उत्पादों पर भी कई प्रयोग किए जाएंगे. हालाँकि, यह देश का पहला ऐसा संस्थान होगा जहां सिर्फ बासमती पर ही रिसर्च किया जाएगा.
कश्मीर की शेर-ए-कश्मीर कृषि एवं तकनीकी विज्ञान विश्वविद्यालय का अनुसंधान विभाग इस केंद्र को तैयार करेगा. इसकी दूरी अंतरराष्ट्रीय सीमा से दो किलोमीटर दूर आरएस पूरा के चकरोई में बनने वाले इस केंद्र के लिए प्रदेश सरकार से जमीन देने की मंजूरी भी मिल गयी है. इसमें होने वाले खर्च का ब्लू प्रिंट तैयार किया जा रहा है. इसकी भी मंजूरी के लिए इसे सरकार के पास भेजा जाएगा.
खेती-किसानी के लिए महत्वपूर्ण इस केंद्र से बासमती उगाने वाले 10 हजार किसानों को इससे सीधा जोड़ कर इसको सफल बनाने कि कोशिश की जा रही है. यहां से वह बासमती की अनेक किस्मों कि अधिक जानकारी ले सकेंगे. उन्हें कहा कि बासमती की नई किस्म की फसल उगाने के लिए वैज्ञानिक और तकनीकी तौर पर प्रशिक्षण भी दिया जाएगा, जिससे किसानों को किसी तरह की कोई दिक्कत न हो और वह इस काम को आसानी से करने में सफल रहें.
क्या है सेंटर कि विशेषताएं
बासमती के विकास और स्थानीय फसलों पर यहाँ रिसर्च किया जाएगा.नई किस्मों को यहां विकसित कर उनका परीक्षण किया जाएगा. बीज उत्पादन कर प्रदेश के अन्य जिलों के किसानों को इससे जोड़ उनका मुनाफा बढ़ाया जाएगा. बासमती उगाने और पैदावार बढ़ाने की नई से नई तकनीक के बारे जानकारी देकर किसानों को इस बारे में प्रशिक्षित किया जाएगा.