कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. भारत की अधिकांश आबादी कृषि या उस पर आधारित उद्योग पर निर्भर है. कृषि में मशीनों तथा तकनीक के कम इस्तेमाल के चलते कृषि उत्पादकता में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो पाती है. इसके अलावा खरपतवार मुख्य वजह है जिसके चलते कृषि उत्पादन दर कम रहती है.
खरपतवार ऐसे पौधों या घास-फूस को कहते हैं जो अनचाहे रूप से किसी फसल के साथ उग आते हैं और फसल को नष्ट कर देते हैं. खरपतवार को नष्ट करना कृषि में एक मुख्य कार्य माना जाता है. खरपतवार को हटाने के लिए कई विधि प्रयोग की जाती हैं. रासायनों या खरपतवार नाशकों का इस्तेमाल इसे नष्ट करने के लिए सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाता है. इसके बाद हाथ से खरपतवार को हटाना सबसे ज्यादा प्रचलित विधियों में से एक है. तीसरा और लगभग आखिरी तरीका जो बेहद ही कम इस्तेमाल किया जाता है वह है मशीन द्वारा खरपतवार को हटाना. रासायनों का अधिक इस्तेमाल खेती और जमीन के लिए घातक है. इसको देखते हुए पावर वीडर जैसे यंत्र कारगर सिद्ध होते हैं.
पावर वीडर : एक परिचय
पावर वीडर आमतौर पर छोटी मशीनें होती हैं जो पूरी तरह से खरपतवार को हटाने के लिए उपयोग की जाती हैं. इन मशीनों को आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है. यहाँ तक कि इनके सुरक्षित संचालन के लिए किसी भी प्रकार के पूर्व प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है. यह वीडर इंजन, फ्रेम, ब्लेड्स तथा सहायक पहिये का मिश्रण होता है. ये आमतौर पर दो छोटे स्ट्रोक इंजन द्वारा संचालित होते हैं। इंजन का उपयोग वीडर के सामने लगे ब्लेडों को घुमाने के लिए किया जाता है. वीडर में इंजन को स्टार्ट करने के लिए रिकॉइल्ड स्टार्टर्स लगा होता है. इंजन चालू होने के बाद मशीन को कोई व्यक्ति धकेलकर आगे बढ़ाता है. अधिकांशतः इंजन शक्ति का उपयोग केवल ब्लेड को घूमने के लिए किया जाता है.
सरंचना
इसमें एक या दो इंजन लगे होते हैं. इंजन से ब्लेड, मैकेनिकल क्लच और गियरबॉक्स को जोड़ने के लिए एक शाफ़्ट लगी होती है. इसकी गति को नियंत्रित करने के लिए चेन या बेल्ट ड्राइव अथवा वर्म गियर का उपयोग किया जाता है. सामान्यत दो या चार गियर वाले वीडर प्रचलन में रहते हैं. छोटे वीडर 1.5 से 5 हॉर्स पावर क्षमता वाले होते हैं. ज्यादातर मामलों में दो स्ट्रोक इंजनों की क्षमता लगभग 25 से 50 सीसी है. इनकी ईंधन खपत 60 से 80 मिनट प्रति लीटर होती है.
महत्व:
1. इसका इस्तेमाल खरपतवार को निकालने में होता है.
2. सब्जियों की कतारों के बीच उग आये अनचाहे घास-फूस को आसानी से निकाल देता है.
3. गन्ना की फसल में निराई, गुड़ाई तथा मिटटी चढाने में इस्तेमाल होता है.
4. कपास के खेत में भारी मात्रा में खरपतवार होता है उसे इससे ख़त्म किया जा सकता है.
5. फूलों की खेती में खरपतवार को निकलना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि इसके पेड़ बहुत नाजुक होते हैं और इनके बीच में नियत फैसला रहता है ऐसे में पॉवर वीडर काफी मददगार साबित होता है.
6. बाग़बानी में वीडिंग के लिए उपयुक्त
7. पहाड़ी क्षेत्रों में काफी उपयुक्त रहता है क्योंकि यहाँ जमीं उबड़ खाबड़, असमान तथा पथरीली होती है चूँकि पावर वीडर आकार में छोटा रहता है इसलिए इसे किसी भी जमीन पर आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता यही.
कीमत :
पावर वीडर किसानों के लिए काफी किफायती रहता है. यह खासकर उन छोटे तथा सीमान्त किसानों के लिए फायदेमंद रहता है जो ट्रैक्टर तथा उससे संबंधित यंत्रों पर भारी- भरकम दाम खर्च करने में सक्षम नहीं हैं. पावर वीडर ने किसानों की समस्या को काफी हद तक सुलझा दिया है. बाजार में राष्ट्रीय तथा बहुराष्ट्रीय कपनियां कम कीमतों पर पावर वीडर उपलब्ध करा रही हैं. इसका एक कारण यह भी है कि अधिक कंपनियों के आने से बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ी है और इसके दामों में कमी आयी है. जाहिर तौर पर इसका सीधा फायदा किसानों को हुआ है.
अपने आकर और फीचर्स के चलते कई कीमतों के पावर वीडर बाजार में उपलब्ध हैं. मिनी पावर वीडर की कीमत 10,000 रूपये से शुरू होकर 50,000 रूपये तक है. जबकि मध्यम या दीर्घ पावर वीडर पचास हज़ार से डेढ़ लाख रूपये तक की कीमतों में मौजूद है. उन्नत और एडवांस तकनीक वाले पावर वीडर की कीमतें एक से ढाई लाख तक हैं.
भारत में बिक्री कर रही कंपनियाँ :
पॉवर वीडर की मांग लगातार बढ़ रही है जिससे पावर वीडर का बाजार हर दिन तेज़ी से बढ़ रहा है. दुनिया भर में कृषि यन्त्र बनाने वाली असंख्य कंपनियां पावर वीडर का निर्माण कर रही हैं. इसके अलावा कुछ नई कंपनियों ने भी इसके निर्माण क्षेत्र में कदम रखा है.
भारतीय कंपनियाँ:
आज देश की कृषि यन्त्र बनाने वाली कई कम्पनियाँ पावर वीडर का निर्माण कर रही हैं. इससे किसानों को स्वदेशी तकनीक से बने वीडर मिल रहे हैं. कृषि यन्त्र बनाने वाली कई भारतीय कपनियां पावर वीडर का निर्माण कर रही हैं. कुछ प्रमुख कंपनियों के नाम इस प्रकार हैं-
1. रेखा एग्रीप्लस प्रा. लि.
2. मैक्स इंजी. प्रा. लि.
3. एसपी प्रा. लि.
4. ग्रीन प्लेनेट मशीन प्रा. लि.
5. केएसएनएम एग्रीकल्चर प्रा. लि.
6. सिराज इंजी. प्रा. लि.
7. प्रीमियर प्रा. लि.
8. किसान क्राफ्ट
विदेशी कंपनी :
पावर वीडर बेशक यूरोप और अमेरिका की देन है. जाहिर तौर पर विकसित देशों की कृषि यन्त्र बनाने वाली कई कंपनियां इस क्षेत्र में अग्रणी भूमिका अदा कर रही हैं. यह ना सिर्फ अपनी घरेलु मांग को पूरा कर रही हैं बल्कि भारत जैसे कृषि प्रधान देशों में भी आपूर्ति कर रही हैं. कुछ ऐसी ही प्रमुख तथा चुनिंदा कंपनियों पर एक नजर-
1. ओलियो मैक
2. वुल्फ गार्टन
3. बोस्टन एग्रीटेक
4. हौंडा एग्रीकल्चर
5. किर्लोस्कर
6. रेड लैंड्स
सब्सिडी (अनुदान या सहायता राशि) :
कृषि देश की समवर्ती सूची का हिस्सा है इसलिए यह राज्य तथा केंद्र सरकार का विषय है. केंद्र तथा विभिन्न राज्य सरकारें किसानों के हित में कई योजनाएं चलाती हैं. इनमें कृषि यंत्रों पर दी जाने वाली सब्सिडी जैसी स्कीम भी शामिल हैं. पावर वीडर पर भी केंद्र सरकार उसकी कीमतों के आधार पर सब्सिडी दे रही है यह इस प्रकार है-
केंद्र सरकार देश के सभी राज्यों के किसानों को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के अंतर्गत पावर वीडर की खरीद के लिए 15,000 रूपये प्रति मशीन अथवा लागत का 50 फीसदी मूल्य अनुदान के रूप में दे रही है. इसके अलावा पूर्वी भारत में हरित क्रांति लाने की पहल के तहत संबंधित राज्यों में केंद्र सरकार पावर वीडर की खरीद पर 15,000 की विशेष सब्सिडी दे रही है.
साथ ही संघीय सरकार 'कृषि यंत्रीकरण पर उपमिशन(एसएमएएम)' के अंतर्गत लागत मानक के आधार पर पावर वीडर (इंजन से संचालित) पर सब्सिडी दे रही है. इसके तहत 2 हॉर्सपावर से अधिक क्षमता वाले वीडर पर 'अनुसूचित जाति- जनजाति, छोटे तथा सीमांत किसान, महिलाएं तथा पूर्वोत्तर राज्यों के लाभार्थियों के लिए 19,000 रूपये की सहायता राशि दी जाती है. शेष लाभार्थियों को कुल कीमत का 40 फीसदी अनुदान दिया जाता है.
पीटीओ चालित पावर वीडर की कीमतें अधिक होती हैं इसलिए इसकी खरीद पर 50,000 से 63,000 हजार की सब्सिडी निर्धारित है.
कहाँ संपर्क करें?
पावर वीडर की खरीद पर सब्सिडी का लाभ लेने के लिए किसानों को अपने जिले के 'जिला कृषि अधिकारी' या 'जिला उद्यान या बागवानी कार्यालय' में संपर्क करना होगा. यहाँ योजना के अनुरूप किसानों को पंजीकृत किया जाता है. इसके लिए किसानों को अपनी जमीन के कागजात और आधार कार्ड की प्रतियां जमा करानी होती हैं.
इसके अलावा केंद्र तथा राज्य सरकार और जिला कृषि विभाग की वेबसाइट पर इससे संबंधित जानकारी ली जा सकती है और योजना का लाभ पाने के लिए ऑनलाइन आवेदन करने की सुविधा भी दी जाती है.
कहाँ से खरीद सकते हैं-
पावर वीडर आम तौर पर बड़े कृषि क्षेत्रों वाले बाज़ारों में उपलब्ध होते हैं क्योंकि वहां इनकी मांग ज्यादा रहती है. हालाँकि इसके लिए कई इंटरनेट आधारित ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से भी इसकी आसानी से खरीद की जा सकती है. किसानों को बाजार कीमत पर इसे खरीदना होता है. इसका बिल जिला कृषि कार्यालय में आवेदन फॉर्म के साथ सलंग्न करना होता है. आवेदन स्वीकार होने के बाद सब्सिडी की रकम लाभार्थी के बैंक खाते में डीबीटी के माध्यम से आ जाती है.
निजी विचार :
ऐसे वक़्त में जब दुनिया में कृषि में इस्तेमाल किये जा रहे हानिकारक रसायनों और पेस्टीसाइड के घातक परिणाम देखने को मिल रहे हैं. पावर वीडर इसका एक मजबूत और बेहतर विकल्प बन सकता है. साथ ही यह छोटे किसानों के लिए फायदेमंद है जो बड़े यन्त्र नहीं खरीद पाते हैं. पावर वीडर खरपतवार, निडाई-गुड़ाई तथा मिट्टी चढ़ाने के लिए उपयुक्त साधन है इसलिए किसानों को इसे खरीदकर लाभ उठाना चाहिए.