दीपोत्सव यानि दिवाली आने में बस कुछ ही वक्त रह गया है. कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी यानि अमावस्या से पूर्व आने वाले दिन को हम छोटी दिवाली के रूप में है. दिवाली के पर्व में इस दिन के महत्व के बारें में भी जानना काफी जरूरी हो जाता है कि इसका क्या महत्व है. छोटी दिवाली को दूसरे शब्दों में हम नरक चतुर्दशी भी कहते हैं.
ऐसे में मन में एक जरूरी सवाल ये भी आता है कि रोशनी और प्रकाश से भरे इस धनतेरस से लेकर भैया दूज के पर्व के बीच नरक का नाम कोई क्यों लेना चाहेगा? लेकिन हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार ये दिन भी अपना
खासा महत्व रखता है. इस दिन को यम चतुदर्शी, नरक चौदस या रूप चतुदर्शी के रूप से भी जाना जाता है.
क्यों कहते है नरक चतुदर्शी ? (Why is it called Narak Chaturdashi?)
छोटी दिवाली को नरक चतुदर्शी कहने के पीछे हिंदू मान्यता यह है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध किया था, साथ ही बंदी गृह में कैद 16 हजार एक सौ कन्याओं को भी मुक्त करवाया था जिनका विवाह बाद में भगवान श्रीकृष्ण के साथ ही कर दिया गया था.
नरक चौदस पूजा विधि (Narak Chaudas Worship Method)
1. नरक चतुदर्शी के दिन सुबह सुर्योदय से पहले उठकर शरीर पर तेल या उबटन लगाकर मालिश करने के बाद स्नान करना चाहिए. इसके अलावा ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस दिन सूर्योदय के बाद उठकर नहाता है उसे पूरे वर्षभर किए शुभ कार्यों के फल प्राप्त नहीं होते.
2. सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करने के बाद दक्षिण मुख होकर हाथजोड़कर यमराज से प्रार्थना करना चाहिए. ऐसा करने से व्यक्ति के द्वारा किए गए वर्ष भर के पापों से व्यक्ति मुक्ति पा लेता है.
3. नरक चतुदर्शी के दिन शाम को सभी देवाताओं की पूजा करने के बाद तेल के दीपक जलाकर घर के दरवाजे के चौखट के दोनों ओर, सड़क पर, कार्यस्थल के प्रवेश द्वार पर रख दें.
ये है पौराणिक कथा (This is the legend)
नरक चतुदर्शी को लेकर कई तरह की मान्यताएं और कथाएं प्रचलित हैं. इनमें से एक कथा राजा रति से जुड़ी हुई है. मान्यता के अनुसार रति नामक देव एक पुण्यत्मा और धर्मात्मा राजा थे. उन्होंने अनजाने में कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो यमराज उनके सामने आकर खड़े हो गए. यमदूत को देखकर राजा रति अचंभित हो गए और उन्होंने यमराज से कहा कि मैंने तो कोई भी पाप नहीं किया फिर भी आप मुझए लेने क्यों आए हो? क्योंकि आपके यहां आने का मतलब मुझे नरक जाना है. साथ ही आप मुझ पर कृपा करें और बताएं किस अपराध के कारण मुझकों नरक में जाना पड़ रहा है.
छोटी दिवाली को दीपदान का महत्व (Significance of Deepdan on Choti Diwali)
छोटी दिवाली का महत्व भी कम नहीं होता है. मान्यता है कि इस दिन शाम को पूजा करने के बाद दीपदान का कार्य करना चाहिए और शाम को दीप प्रज्जवल भी करनी चाहिए. इस दिन घर में भी दीप जलाए जाते हैं ऐसा करने से घर के पितरों को अपने लोक जाने का भी साफ रास्ता दिखाई देता है. वह प्रसन्न हो जाते हैं. जो लोग दीप जलाकर और दान का कार्य करते हैं उन्हे कई तरह के पापों से भी आसानी से मुक्ति मिल जाती है. साथ ही पूरे वर्ष घर में लक्ष्मी का वास भी बना रहता है.
इस बात को सुनकर यमराज ने कहा कि हे राजन, एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था. यह उसी पापकर्म का फल है. इसके बाद राजा रति ने यमदूत से एक वर्ष का वक्त मांगा तब यमदूतों ने राजा को एकवर्ष का वक्त भी दे दिया. राजा इस परेशानी को लेकर ऋषियों के पास पहुंचा और सारी कहानी बता कर इस पाप से मुक्ति का भी उपाय पूछा. तभी सभी ऋषियों ने उन्हें बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी को व्रत कर ब्राह्म्णों को भोजन करवाकर इस पाप से मुक्ति पा सकते हैं और यमदेव को प्रसन्न कर सकते हैं. राजा ने ऐसा ही किया और ब्राह्मणों को भोजन कराया इससे यम देव खुश हुए और पापों से मुक्ति का वरदान दे दिया. इसीलिए तभी इस दिन को नरक चतुदर्शी के नाम से भी जाना जाता है.