पपीता पोषक तत्वों से भरपूर स्वास्थ्यवर्धक और पाचकफल है. पपीता विटामिन ‘ए’ और ‘सी’ से भरपूर होने के कारण शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, साथ ही इसमें मौजुद बीटा-कैरोटिन आंखों की सेहत के लिए फायदेमंद है.पपीता के पके फलों का उपयोग फल, मुरब्बा, जैम एवं फल शेक के रूप में किया जाता है.यह फल अच्छा पाचक होने के कारण बच्चों, गर्भवती महिलाओं, वृद्ध व्यक्तियों एवं बीमार लोगों के लिए बहुत फायदेमंद है.इसकी फाईबर की मौजूदगी से कोलस्ट्रोल को नियंत्रित रखा जा सकता है और दिल एवं डायबिटिज के मरीजों के लिए भी अच्छा माना जाता है. पत्तियों का रस डेंगू का इलाज करने में उपयोगी है.
पपेन का उपयोगऔर महत्व (Use and importance of papain)
हरे एवं कच्चे पपीते के फलों से सफेद रस या दूध निकालकर सुखाए गए पदार्थ को पपेन कहते हैं. पपेन एक पाचक एन्जाइम है जिसका उपयोग मुख्य रूप से मांस को मुलायम करने, प्रोटीन के पचाने, पेय पदार्थों को साफ करने,चिवंगम बनाने, पेपर कारखाने में, दवाओं के निर्माण में, सौन्दर्य प्रसाधन के सामान बनाने आदि के लिए किया जाता है.पपेन से निर्मित औषधियाँजैसे पेट का अल्सर, दस्त, एक्जिमा, लीवर के रोग, कैंसर के इलाज में उपयोगी होती हैं. कच्चे पपीते से प्राप्त पपेन एक महंगा उत्पाद होने के कारण उत्पादन करके अधिक लाभ लिया जा सकता है.
पपेन उत्पादन के लिए प्रमुख किस्में (Major varieties for papain production)
पूसा मैजेस्टीः यह उभयलिंगी किस्म है, इसमें मादा एवं द्विलिंगी पुष्प आते हैं अर्थात प्रत्येक पौधे पर फल लगते हैं. पौधा लगभग 60-65सेमी उंचाई से फल देना आरम्भ करता है. एक पौधे से लगभग 460 ग्राम पपेन प्रति वर्ष प्राप्त की जा सकती है.
कोयम्बटूर नं. 2: इसके फल मध्यम आकार के हल्के हरे-पीले रंग के होते हैं. इसके गूददे का रंग लाल होता है. इसका हर साल पपेन उत्पादन 420-450 ग्राम प्रति पौधा है.
कोयम्बटूर नं. 5 और कोयम्बटूर नं. 6: यह किस्म पपेन उत्पादन में श्रेष्ठ है. इसके फल मध्यम आकार के होते हैं. इसका गूददा लाल एवं प्रतिवर्ष पपेन उत्पादन 440-480 ग्राम होता है.
पपेन निकालने का उपयुक्त समय (Appropriate time to extract the papain)
अधिकतम पपेन प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि पपेन सूर्य निकलने से पूर्व ही निकाल देना चाहिए.वैसे सुबह 6-9 बजे के बीच पपेन निकालना भी ठीक रहता है.
पपेन निकालने की विधि(Papain Extract Method)
पपेन प्राप्त करने के लिए 3 महीने पुराने फलों पर डण्ठल की ओर से करीब 3 मि.मी. गहराई के 4-5 चीरे लम्बाई में लगाये जाते हैं. चीरा लगाने के तुरंत बाद फलों से दूध निकलने लगता, जिससे किसी मिट्टी या एल्यूमिनियम के बर्तन में इकट्ठा कर लेना चाहिए.इस प्रकार फल की पूरी अवधि में 12 से 15 बार चीरा लगाकर दूध निकाला जा सकता है. चीरा लगाए गए फलों को पकने दिया जाता है जिनका स्वाद सामान्य फलों के समान होता है लेकिन रंग खराब हो जाने के कारण बाजार मांग में कमी आना स्वभाविक है.या इन फलों का उपयोग जैम, मुरब्बा, टूट्री-फ्रूटी एवं फल शेक के रूप में किया जा सकता है.
पपेन तैयार करना (Preparation of papain)
इकट्ठा किए गए दूध को चौड़े आकार के बर्तन में डालकर धूप में अथवा 50-60 डिग्री सेल्सियस तापमान पर सुखाया जाता है. तरल दूध में थोड़ा सा (350 पी.पी.एम.) पोटैशियम मेटाबाई सल्फाईड मिला दिया जाता है. इससे पपेन लम्बे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है. इस प्रकार लेटेक्स से पाउडर बनाकर 200 गेज के पोलिथीन पैकटों के सुरक्षित एवं छायादार ठण्डे स्थानों पर 6-7 माह तक अच्छी तरह रखा जा सकता है.