परवल का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है. परवल भारत में बहुत ही प्रचलित सब्जी है. आज के समय में किसान परवल की खेती करके काफी मुनाफा कमा रहे हैं आप भी परवल की खेती करके आसानी से हजारों लाखों कमा सकते हैं. साधारण तौर पर परवल की खेती वर्ष भर की जाती है.ये बिहार, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश में सामान्य तौर पर उगाई जाती है और राजस्थानएमध्य प्रदेश, गुजरात, आसामऔरमहाराष्टमें भी ये कुछ बागानों में उगाई जाती है. परवल में विटामिन भरपूर मात्रा में पाया जाता है. इसकी मांग भी बाजार में अधिक है और आइये जानते है परवल की खेती कैसे करें.
जलवायु
परवल की खेती के लिए गर्म जलवायु अच्छी मानी जाती है. गर्म क्षेत्रों में परवल की खेती से अच्छा उत्पादन प्राप्त होता है. इसलिए परवल की खेती गर्म जलवायु में आसानी से की जा सकती है. ठंडे क्षेत्रों में इसको बहुत कम उगाया जाता है यानि ठंड वाले क्षेत्रों में इसकी खेती बहुत कम की जाती है.
भूमि का चुनाव
परवल की खेती गर्म एवं तर जलवायु वाले क्षेत्रो में अच्छी तरह से की जाती है इसको ठन्डे क्षेत्रो में न के बराबर उगाया जाता है किन्तु उचित जल निकास वाली जीवांशयुक्त रेतीली या दोमट भूमि इसके लिए सर्वोत्तम मानी गई है चूँकि इसकी लताएँ पानी के रुकाव को सहननही कर पाती है अतरू ऊंचेस्थानों पर जहाँ जल निकास कि उचित व्यवस्था हो वहीँ पर इसकी खेती करनी चाहिए.
भूमि की तैयारी
यदि इसे ऊँची जमीन में लगाना है तो 3 जुताई देशी हल से करके उसके बाद पाटा लगा देना चाहिए 1.5 मी.पौधे से पौधे की दुरी रखकर 30ग30ग30 से.मी.गहरा गड्डा खोद लेना चाहिए अतरू मिटटी में 5 किलो ग्राम गोबर कि खाद मिलाकर भर देना चाहिए.
प्रजातियां
परवल में दो प्रकार की प्रजातियां पाई जाती है, प्रथम क्षेत्रीय प्रजातियां जैसे की बिहार शरीफ, डंडाली, गुल्ली, कल्यानी, निरिया, संतोखिया एवं सोपारी सफेदा आदि है द्धितीय उन्नतशील प्रजातियां जैसे की एफ. पी.1, एफ. पी.3, एफ. पी.4, एच. पी.1, एच. पी.3, एच. पी.4 एवं एच. पी.5 है इसके साथ ही छोटा हिली, फैजाबाद परवल 1 , 3 , 4 तथा चेस्क सिलेक्शन 1 एवं 2 इसके साथ ही चेस्क हाइब्रिड 1 एवं 2 तथा स्वर्ण अलौकिक, स्वर्ण रेखा तथा संकोलिया आदि है.
नवीनतम किस्में
नरेंद्र परवल 260
नरेंद्र परवल 307
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नरेंद्र परवल 604
पौध रोपण व बुवाई
परवल का उत्पादन जड़ो द्वारा होता है जिसे की सकर्स कहते है या कटिंग के द्वारा रोपाई की जाती हैकटिंग द्वारा प्रवर्धन या रोपाई आसानी से जल्दी की जा सकती है इसके द्वारा फसल जल्दी तैयार हो जाती हैपरवल में कटिंग या जड़ो की संख्या रोपाई के अनुसार रोपाई की दूरी पर जैसे एक मीटर से डेढ़ मीटर दूरी पर 4500 से 5000 तथा एक मीटर से दो मीटर की दूरी पर 3000 से 4000 कटिंग या टुकड़े प्रति हेक्टेयर लगते है कटिंग या टुकड़ो की लम्बाई एक मीटर से डेढ़ मीटर तथा 8 से 10 गांठो वाले टुकड़े रखते है तथा गड्ढो या नालियो की मेड़ों पर 8 से 10 सेंटीमीटर तथा समतल भूमि पर 3 से 5 सेंटीमीटर गहराई पर रोपते है मादा व नर का अनुपात 10रू1 का कटिंग में रखते हैपरवल की बुवाई साल में दो बार कि जाती है तथा जून के दुसरे पखवाड़े में और अगस्त के दुसरे पखवाड़े में नदियों के किनारे परवल की रोपाई अक्टूबर से नवम्बर माह में की जाती है.
खाद एवं उर्वरक प्रबंधन
परवल की खेती के खाद प्रति हेक्टेयर की दर से-
अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद-250 से 300 क्विंटल
नत्रजन- 90 से 100 किग्रा.
फास्फोरस- 60 से 70 किग्रा.
पोटास-40 से 50 किग्रा.
खेत की तैयारी के साथ अच्छी सड़ी गोबर की खाद को अच्छी तरह से मिला लेना चाहिए. उसके बाद नत्रजन 90 किग्रा. फास्फोरस 60 किग्रा. फास्फोरस और 40 किग्रा. पोटास को प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में देना चाहिए.फास्फोरस और पोटास की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा खेत की तैयारी के साथ देना चाहिए बाकि बची हुई नत्रजन को पौधे में फूल आने के समय देना चाहिए. इसी तरह दूसरे वर्ष भी गोबर की खाद और नत्रजन पोटास और फास्फोरस आवश्यकता अनुसार पौधों में देना चाहिए.
सिंचाई
कटिंग या जड़ो की रोपाई के बाद नमी के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए यदि आवश्यकता पड़े तो 8 से 10 दिन के अंदर पहली सिंचाई करनी चाहिए. लेकिन ठंडके दिनों में 15 से 20 दिन बाद तथा गर्मियों में 10 से 12 दिन बाद सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है इसके साथ ही वर्षा ऋतु में आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण
ठण्ड समाप्त होने के समय पौधों कि जड़ों के समीप की भूमि में निराई-गुड़ाई करके मिटटी पोली कर देनी चाहिए चूँकि लताएँ ऊपर की ओर फैलती जाती है इसलिए खरपतवार अधिक प्रभावशाली नहीं होते है.
कीट नियंत्रण
परवल कि फसल को बहुत से कीड़े मकोड़े हानि पहुंचाते है. किन्तु फल की मक्खी और और फली भ्रंग विशेष रूप सेहानि पहुंचाते है.
फल की मक्खी
मक्खी फलों में छिद्र करती है और उनमे अंडे देती है जिसके कारण फल सड़ जाते है कभी-कभी यह मक्खी फूलों को भी हानि पहुंचाती है.
रोकथाम
20 लीटर गौमूत्र में 5 किलो नीम की पत्ती , 3 किलो धतुरा की पत्ती और 450 ग्राम तम्बाकू की पत्ती, 1 किलो गुड 25 ग्राम हींग डाल कर तीन दिनों के लिए छाया में रख दें तर-बतर कर खेत में छिडकाव करें.
फली भ्रंग
यह धूसर रंग का गुबरैला होता है जो पत्तियों में छेद करके उन्हें हानि पहुंचता है.
रोकथाम
20 लीटर गौमूत्र में 5 किलो नीम की पत्ती, 3 किलो धतुरा की पत्ती और 500 ग्राम तम्बाकू की पत्ती, 1 किलो गुड 30 ग्राम हींग डाल कर तीन दिनों के लिए छाया में रख दें तर-बतर कर खेत में छिडकाव करें.
चूर्णी फफूंदी
यह रोग एक प्रकार कि फफूंदी के कारण लगता है जिसके कारण पत्तियों और तनों पर आते के समान फफूंद जम जाती है और पत्तियां पिली व मुरझाकर मर जाती है.
रोकथाम
20 लीटर गौमूत्र में 5 किलो नीम की पत्ती, 3 किलो धतुरा की पत्ती और 460 ग्राम तम्बाकू की पत्ती, 1 किलो गुड 20 ग्राम हींग डाल कर तीन दिनों के लिए छाया में रख दें तर-बतर कर खेत में छिडकाव करें.
कटाई तुड़ाई
परवल की अधिक पैदावार के लिए इसकी बेलों की छटाई करनी पड़ती है अब हमारे सामने यह प्रश्न खड़ा है बेलों कि छटाई कब की जाए इसकी छटाई करने का उपयुक्त समय पहले साल की फसल लेकर नवम्बर -दिसंबर में 20-30 से.मी.कि बेल छोड़कर सारी बेल काट देनी चाहिए क्योंकि इस समय पौधा सुषुप्त अवस्था में रहता है तने के पास 30 से.मी.स्थान छोड़कर फावड़े से पुरे खेत की गुड़ाई कर लेनी चाहिए इस बेलोंका फुटाव कम हो जाता है जिनसे लताएं निकलती है और उनमे मार्च में फल लगने शुरू हो जाते है .
परवल की उपज
परवल की उपज एक वर्ष में 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से होती है. पर ये बोने के तरीके पर निर्भर है. यदि अच्छे तरिके से पौधों का ध्यान रखा जाये तो लगभग 4 साल तक 150 से 190 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से उपज प्राप्त होती है.
मनीष कुमार मीना एवं1 जगदीश प्रसाद राठौर
पुष्प विज्ञान विभागए उधानकीय एवं वानिकी महाविधालयएझालावाड; राजस्थान
1फल विज्ञान विभागएशेर-ए-कश्मीर कषि एवं प्रौधौगिकी विश्वविधालय. कश्मीर ए शालीमार ए श्रीनगर
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फ़ोन न. : 09103133355