Pankhiya Beans: भारत के किसान कम समय में अधिक कमाई के लिए पारंपरिक खेती को छोड़ गैर-पारंपरिक खेती में अपना हाथ अजमा रहे हैं और इसमें सफल भी हो रहे हैं. किसान खाद्यान्न उत्पादन की खेती पर जोर दे रहे हैं, जिससे उनकी आय में अच्छी खासी वृद्धि हो रही है. देश के अधिकतर किसान पंखिया सेम की खेती कर रहे हैं, जो कि एक नकदी फसल है और यह सेम की आम प्रजातियों काफी अलग भी है. इसमें कई प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो सेहत के लिए काफी लाभदायक है. सेम दलहनी फसलों में शामिल है, इसकी फलियों का सब्जियों के लिए अधिक उपयोग किया जाता है. इसके फल, फूल, पत्ता, तना, बीज और जड़ को भी खाया जा सकता है. पंखिया सेम में प्रोटीन, कैल्शियम, मैगनीशियम, कार्बोहाइड्रेट, वसा, आयरन, गंधक, खनिज पदार्थ, पोटैशियम, कैलोरी और फाइबर भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जिससे मार्केट में इनकी मांग हमेशा रहती है.
आइये कृषि जागरण के इस आर्टिकल में जानते हैं, पंखिया सेम की खेती कैसे की जाती है और इसके उन्नत किस्में कौन-सी है.
पंखिया सेम की उन्नत किस्में
भारत में अभी पंखिया सेम की ज्यादा किस्में विकसित नहीं होई है, लेकिन देश में सबसे अधिक प्रचलन आरएमबीडब्लूबी-1 (RMBWB-1) का है. इसके अलावा, भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी पंखिया सेम की नई किस्म पर काम कर रहा है.
उपयुक्त मिट्टी और खेत की तैयारी
पंखिया सेम की बुवाई के लिए अच्छे जीवांशयुक्त बलुई दोमट या दोमट मिट्टी को सबसे उपयुक्त माना जाता है. इस की फसल लगाने के लिए अधिक क्षारीय और अम्लीय भूमि बाधक होती है. किसानों को इसकी बुवाई के लिए खेत की जुताई कल्टीवेटर या हैरो से करनी चाहिए, जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाए.
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पंखिया सेम की बुवाई
पंखिया सेम की बुवाई करने के लिए किसानों को प्रति हेक्टेयर खेत में 20 से 30 किलोग्राम बीजों की आवश्यकता होती है. किसानों की इसकी बुवाई करने से पहले बीजों को कार्बेन्डाजिम या थिरम की 2 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम में लेकर शोधित कर लेना चाहिए. बता दें, इस सेम की बुवाई एक साल में साल में 2 बार होती है. इसकी बुवाई के लिए उठी हुई क्यारियां को तैयार किया जाता है और इनकी लाइनों की लंबाई 1 से 1.5 मीटर रखी जाती है. जबकि एक पौध से पौध की दूरी 1.5 से 2 फुट रखनी होती है. इसके बीजों को 2 से 3 सेमी की गहराई में बोआ जाता है.
सहारा देना
पंखिया सेम की फलियां दूसरी किस्मों की अपेक्षा काफी लंबी और नरम होती है, जिससे मिट्टी का इसकी फलत पर भी असर पड़ता है. किसान इसकी फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए इसके पौधों को सहारा दे सकते हैं, जिससे पौधों में अच्छी फलत आए और इसका विकास भी सही तरीके हो. किसानों को इसके पौधे की लताओं को बांस की बल्लियों के सहारे पर चढ़ाना चाहिए.
खाद एवं उर्वरक
किसान पंखिया सेम के खेतों के लिए जैविक खाद का उपयोग कर सकते हैं. इसके एक हेक्टेयर खेत में लगभग 10 से 15 टन गोबर से बनी सड़ी खाद का इस्तेमाल किया जाता है. किसान इसकी फसल के साथ 20 kg नीम की खली और 50 kg अरंडी की खली की भी बुवाई कर सकते हैं.
सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण
किसानों को इसके खेत की आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए. वहीं बरसात के मौसम में इसकी फसल को सिंचाई की जरूरत नही होती है. किसानों को इसके पौधे में फूल और फलियां आने पर खेत में नमी को बनाए रखना होता है, जिसके लिए सिंचाई की जाती है. इसके अलावा, फसल से अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए खरपतवार को निकाई-गुड़ाई करनी चाहिए. किसान इसकी फसल में खरपतवार को नियंत्रण करने के लिए मल्चिंग विधि का भी उपयोग कर सकते हैं.
पंखिया सेम की तुड़ाई
किसानों को पंखिया सेम की फलियों की तुड़ाई कोमल अवस्था में ही करनी चाहिए. यदि इसकी तुड़ाई देरी से की जाती है, जिससे फलियां कठोर हो जाती है और इसमें रेशे आ जाते हैं. अगर किसान पंखिया सेम की फसल से किसान प्रति हेक्टेयर 40 क्विंटल बीज, 80 क्विंटल जड़ और 300 क्विंटल फली की उपज प्राप्त कर सकते हैं.