गेहूँ की उपज लगातार बढ रही है. यह वृद्धि गेहूँ की उन्नत किस्मों तथा वैज्ञानिक विधियों से हो रही है. यह बहुत ही आवश्यक है कि गेहूँ का उत्पादन बढाया जाय जो कि बढती हुई जनसंख्या के लिए आवश्यक है. गेहूँ की खेती पर काफी अनुसंधान हो रहा है और उन्नत किस्मों के लिए खेती की नई विधियां निकाली जा रही है.
इसलिए यह बहुत ही आवश्यक है कि प्रत्येक किसान को गेहूँ की खेती की नई जानकारी मिलनी चाहिए जिससे वह गेहूँ की अधिक से अधिक उपज ले सके.किसान भाईयों गेहूं की एक अनोखी किस्म का अनुसंधान किया गया है जो कि मात्र 105 दिनों में ही तैयार हो जाएगी. यह किस्म केवल दो सिंचाईं में ही तैयार हो जाएगी. इसे प्रमाणन के लिए सीवीआरसी में भेजा गया है.
इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) इंदौर ने विकसित किया है. इसमें मानव शरीर के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक मात्रा में प्रोटीन, जिंक, आयरन, कैरोटीन आदि मौजूद हैं. जिसके कारण मनुष्यों में एनीमिया रोग से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है. इसे पूसा बीट 8777 नाम की पहचान दी गई है. कम सिंचाईं वाले क्षेत्रों में यह अधिक पैदावार देगी. यह एक एकड़ में 18 क्विंटल तक उपज दे सकती है.
वैज्ञानिक काफी समय से गेहूं में लगने वाले मुख्य रोग जैसे पीला रतुआ, गेरूआ रोग और काला कंडुआ रोग दूर करने के लिए प्रयासरत थे. जिसके लिए उन्होंने इस किस्म का अनुसंधान किया है. खासकर यह रोग फफूंद के रूप में फैलता है. तापमान में वृद्धि के साथ-साथ गेहूं को पीला रतुआ रोग लग जाता है जिसकी रोकथाम न करने की दशा में रोग फसल में फैल जाता है जिससे किसानों को नुकसान होने की प्रायिकता बढ़ जाती है.
संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक के मुताबिक गेहूं की इस किस्म में शरीर के लिए जरूरी पोषक तत्व आवश्यक मात्रा में उपलब्ध हैं जो कि स्वास्थ्य के लिए काफी लाभकारी है. वैज्ञानिकों की माने तो यह समुद्री तटों व महाराष्ट्र जैसे राज्यों में अच्छी पैदावार देगी.
गेहूं में लगने वाले मुख्य रोग जैसे पीला रतुआ, कंडवा रोग फफूंद के रूप में लगते हैं जो कि पौधे की पत्तियों को प्रभावित करते हैं जिसके कारण पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती हैं. जिससे किसानों को भारी फसल नुकसान का सामना करना पड़ता है.
मानव स्वास्थ्य के लिए यह काफी लाभप्रद किस्म है. जो कि विभिन्न प्रकार के पोषक तत्वों की मौजूदगी के फलस्वरूप यह शरीर को रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है.
पीला रतुआ, गेरूआ रोग और काला कंडुआ (खुली कांगियारी) गेहूं की फसल में फंफूद के रूप में फैलता है. रोग के प्रकोप से गेहूं की पत्तियों पर छोटे-छोटे अंडाकार फफोलो बन जाते हैं. ये पत्तियों की शिराओं के साथ रेखा सी बनाते हैं. रोगी पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती हैं.
बीटा कैरोटीन एक एंटी ऑक्सीडेंट और इम्यून सिस्टम बूस्टर के रूप में काम करता है. यह शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले मुक्त कणों (फ्री रेडिकल्स) से रक्षा करता है और इम्यून सिस्टम (रोग प्रतिरोधक क्षमता) को मजबूत बनाता है. यह विटामिन-ए का अच्छा स्रोत है, जो त्वचा में सूर्य से होने वाले नुकसान को कम करता है. वहीं आयरन की कमी को दूर कर नवजात, किशोरों व गर्भवतियों में होने वाली खून की कमी को दूर करता है.