बेर का पेड़ एक बहूपयोगी फलदार होता है. इसके फलों को खाने के लिए और पत्तों का उपयोग पशु चारे के रूप में किया जाता है तथा इसकी लकड़ी खेत पर बाढ़ बनाने में एवं तना उपयोगी फर्नीचर बनाने में काम आता है। इतने महत्वपूर्ण पेड़ की रक्षा करना तो जरूरी हो जाता है. बेर के पेड़ में इस वक्त फल लगने का वक्त है और बेर को इसके कीटों और रोगों के आक्रमण से काफी नुकसान हो जाता है. बेर से अच्छी आमदनी लेने के लिए समय पर प्रबन्ध करना भी जरूरी हो जाता है.
फल मक्खी (Fruit fly):
यह बेर का सबसे हानिकारक कीट है जब फल छोटे एवं हरी अवस्था में होते है तब से ही इस कीड़े का आक्रमण शुरू हो जाता है. इस कीट की वयस्क मादा मक्खी फलों के लगने के तुरन्त बार उनमें अण्डे देती है। ये अण्डे लट्ट (Larva) में बदल कर फल को अन्दर से नुकसान पहुँचाते है। जिससे फलों की गुठली के चारों ओर एक खाली स्थान हो जाता है तथा लटे अन्दर से फल खाने के बाद बाहर आ जाती है। इसके बाद में मिट्टी में प्यूपा (जब कीट निर्जीव पड़ा रहता है) के रूप में छिपा रहता है तथा कुछ दिन बाद व्यस्क (Adult) मक्खी बनकर फिर से फलों पर अण्डे देती है। यह जीवन चक्र ऐसे ही चलता रहता है.
इससे बचाव और नियंत्रण के लिए मई-जून में बाग की मिट्टी पलटे, जिससे धूप के कारण मिट्टी में छुपे कीट मर जाये. रोकथाम हेतु बाग के आसपास के क्षेत्र से बेर की जंगली झाड़ियों को हटा देना चाहिए. खराब या प्रभावित बेर के फलों को इकट्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए. रासायनिक दवा से नियंत्रण के लिए वृक्ष में फूल आने की अवस्था के समय क्यूनालफास 25 EC (Quinalphos) 1 मिलीलीटर या डायमिथोएट 30 EC (Dimethoate) 1 मिलीलीटर या 0.5 मिली सायपरमेथ्रिन 25% EC या 1 मिलीलीटर लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिए. दूसरा छिड़काव फल लगने के बाद जब अधिकांश फल मटर के दाने के आकार के हो जाए उस समय क्यूनालफास 25 EC 1 मिलीलीटर या डायमिथोएट 30 EC 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करे तथा तीसरा छिड़काव, दूसरे छिड़काव के 15-20 दिनों बाद करना चाहिए. दवा को हमेशा बदल बदल कर प्रयोग करें.
छाछया रोग/ चूर्णिल तुलासिता (Powdery mildew)
इस रोग का प्रकोप जाड़ों (सर्दियों) में अक्टूबर-नवम्बर में दिखाई पड़ता है। इस रोग में जैसे नाम से ही पहचाना जा सकता है कि बेर की पत्तियों, टहनियों व फूलों पर सफेद पाउडर सा जमा हो जाता है, जिससे प्रकाश संश्लेषण से पौधा भोजन कम बनाने के कारण बढ़वार रूक जाती है और फल व पत्तियाँ गिर जाती हैं। इसकी रोकथाम के लिए घुलनशील सल्फर 400 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ खेत में छिड़काव करना चाहिए। इस बीमारी से पूरी सुरक्षा के लिए 15 दिन के बाद दो-तीन छिड़काव करने चाहिए.
पत्ती धब्बा/झुलसा रोग (Leaf spot/ blight disease):
इस रोग के लक्षण सर्दियों में नवम्बर माह में शुरू होते है यह आल्टरनेरिया नामक फॅफूद के आक्रमण से होता है। रोग से प्रभावित पत्तियों पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे बनते है तथा बाद में ये धब्बे गहरे भूरे रंग के तथा आकार में बढ़कर पूरी पत्तियों पर फैल जाते है। जिससे पत्तियाँ सूख कर गिरने लगती है। इस रोग से नियंत्रण करने के लिए रोग दिखाई देते ही मेन्कोजेब 75 WP 3 ग्राम या थायोफिनेट मिथाइल 70 WP (Thiophenate methyl) 2 ग्राम या क्लोरोथलोनील 75 WP (Chlorothalonil) 2 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अन्तर पर 2-3 छिड़काव करें।
जड़ गलन (Root rot):
यह रोग अधिक सिंचाई या पानी भरे रहने की स्थिति में अधिक होता है. इस रोग का पौधों की जड़ों तथा भूमि के पास वाले तने पर इस रोग का हमला होता है, जिससे पौधे सूख जाते है. रोकथाम के लिए बीज को 2 ग्राम थायरम प्रति किलो की दर से उपचारित करके नर्सरी में बोये. मेटालेक्सल 8 + मेंकोजेब 64 WP 2.5 ग्राम प्रति लीटर में मिलाकर जड़ों के पास डेंचिंग (पानी पिलाना) करनी चाहिए.
कजली फफूंद/ सूटीमोल्ड (Sooty mold):
इस रोग के लक्षण अक्टूबर माह में दिखाई देने लगते है. यह रोग एक प्रकार की फफूंद द्वारा फैलता है. रोग से ग्रसित पत्तियों के नीचे की सतह पर काले धब्बे दिखाई देने लगते है जो कि बाद में पत्तियों की पूरी सतह पर फैल जाते है और रोगी पत्तियाँ गिर भी जाती है, जिससे पत्ती कजली (कालिख) की तरह दिखाई देने लगती है.
नियंत्रण के लिए रोग के लक्षण दिखाई देते ही मैन्कोजेब 3 ग्राम या कापर आक्सीक्लोराइड 50 WP (Copper oxychloride) 3 ग्राम प्रति लीटर पानी के साथ छिड़काव करना चाहिए तथा जरूरत पड़ने पर 15 से 20 दिनों के बाद स्प्रे दोहरा भी देना चाहिए.