IMD Forecast: देश के इन राज्यों में आज जमकर होगी बारिश, अगले 72 घंटों का ‘अलर्ट’ धान के पुआल से होगा कई समस्याओं का समाधान, जानें इसका सर्वोत्तम प्रबंधन कैसे करें? Good News: देश में खाद्य तेल उत्पादन को मिलेगा बढ़ावा, केंद्र सरकार ने इस योजना को दी मंजूरी केले में उर्वरकों का प्रयोग करते समय बस इन 6 बातों का रखें ध्यान, मिलेगी ज्यादा उपज! भारत का सबसे कम ईंधन खपत करने वाला ट्रैक्टर, 5 साल की वारंटी के साथ Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Mahindra Bolero: कृषि, पोल्ट्री और डेयरी के लिए बेहतरीन पिकअप, जानें फीचर्स और कीमत! Multilayer Farming: मल्टीलेयर फार्मिंग तकनीक से आकाश चौरसिया कमा रहे कई गुना मुनाफा, सालाना टर्नओवर 50 लाख रुपये तक पपीता की फसल को बर्बाद कर सकता है यह खतरनाक रोग, जानें लक्षण और प्रबंधित का तरीका
Updated on: 7 May, 2021 12:00 AM IST

जड़गांठ सूत्रकृमि व सुखा रोग एक साथ होने पर यह भयंकर रूप ले लेता है, जिस कारण अमरूद के पौधे सुख जाते हैं. रोग के प्रारम्भिक लक्षण में पौधे की पत्तियां हल्के पीले रंग की दिखाई दें ती है और पत्तियां झड़ने लगती है. पौधों की बढवार रूक जाते है और पौधे सुख कर मर जाते हैं. पौधों को खोदकर दें खने पर पौधे की जडों में गाँठे दिखाई दें ती है तथा जड़ को चीरकर दें खने पर अन्दर से भूरे रंग की धारी दिखाई दें ती है. सूत्रकृमि द्वारा ग्रसित जडों में सुखारोग आ विल्ट रोग का आक्रमण बढ़ जाता है.

निमेंटोड और विल्ट रोग के कारण (Causes of nematode and wilt disease)

यह समस्या सूक्ष्मदर्शी सूत्रकृमि या निमेंटोड जीव और फ्यूजेरियम फंगस के कारण उत्पन्न होते हैं.

यह फ्यूजेरियम फंगस मिट्टी में पहले से या रोग ग्रसित पौधे के साथ आ जाती है वहीं निमेंटोड की समस्या भी इन्ही कारणों से हो सकती है.

सूत्रकर्मी और उकठा रोग नियंत्रण के उपाय (Control measures of Nematode and Wilt disease)

अधिकृत नर्सरियों या विक्रेता से ही कलम लगे हुए पौधे खरीदें.

जहां पौधे लगाने हैं उस स्थान पर 3 X 3 फीट का गढ़ा मई में खोद कर खुल्ला छोड़ दें .

इन गढ़ो को जून के अतिम सप्ताह में प्रति गड्ढे में 20-25 किलोगोबर की खाद, 30 ग्राम कार्बोफ्यूरान 3 जी, 20 ग्राम कार्बेन्डाजिम, 1 किलो नीम की खली, मिटटी में मिला कर भरें और उपर से पानी दें. पानी देने से पहले खाली गड्ढे में मिटटी भरकर समतल करें व पौधे की थैली के बराबर मिटटी निकाल कर पौधा लगाएं.

रोग ग्रसित पौधे की पत्तियाँ हल्की पीली दिखाई दें, तो 50 ग्राम कार्बोफयूरान 3 जी व एक किलोग्राम नीम की खली को पौधे के तने के चारो तरफ फैलाकर गुडाई करें. व 20 ग्राम कार्बेन्डाजिम 10 लीटर पानी में घोल बनाकर जड क्षेत्र को भिगोएं.

इसके 5-7 दिन बाद पौधे की उम्र के अनुसार 10-25 किलो गोबर की खाद/ वर्मीकम्पोस्ट डालकर गुडाई करके सिचाई करें.

रोग ग्रसित सुखे पौधे को उखाड कर जला दें. रोग ग्रस्त पौधे कि जगह लगभग 5 फिट चौड़ी व 2 फिट गहरी मिट्टी निकाल कर गड्ढे को 15 दिन के लिये खुल्ला छोड दें. बाद में प्रति गड्ढ़े में 20-25 किलो गोबर की खाद, 30 ग्राम कार्बोफयूरान 3 जी, 20 ग्राम कार्बेन्डाजिम, 1 किलो नीम की खली मिटटी में मिलाकर गड्ढे़ भरें और पानी दें तथा पौधे के आकार का गड़ढा कर पौधा रोपित करें.

पौध रोपाई के बीच-बीच में गेंदा को लगाना चाहिए, इससे सूत्रकर्मी का नियंत्रण किया जा सके. इंटर क्रोपिंग के रूप में बैगन, टमाटर, मिर्च, भिंडी, खीरा आदि फसल ना लें.

निमाटोड के जैविक नियंत्रण के लिए नीम खली या वर्टिसिलियम क्लैमाइडोस्पोरियम या पैसिलोमयीसिस लिलसिनस का उपयोग किया जा सकता है.

English Summary: Management of nematodes and wilt disease in Guava orchards
Published on: 07 May 2021, 10:26 IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now