Papaya Farming: पपीते की खेती से होगी प्रति एकड़ 12 लाख रुपये तक कमाई! जानिए पूरी विधि सोलर पंप संयंत्र पर राज्य सरकार दे रही 60% अनुदान, जानिए योजना के लाभ और आवेदन प्रक्रिया केवल 80 से 85 दिनों में तैयार होने वाला Yodha Plus बाजरा हाइब्रिड: किसानों के लिए अधिक उत्पादन का भरोसेमंद विकल्प किसानों को बड़ी राहत! अब ड्रिप और मिनी स्प्रिंकलर सिस्टम पर मिलेगी 80% सब्सिडी, ऐसे उठाएं योजना का लाभ GFBN Story: मधुमक्खी पालन से ‘शहदवाले’ कर रहे हैं सालाना 2.5 करोड़ रुपये का कारोबार, जानिए उनकी सफलता की कहानी फसलों की नींव मजबूत करती है ग्रीष्मकालीन जुताई , जानिए कैसे? Student Credit Card Yojana 2025: इन छात्रों को मिलेगा 4 लाख रुपये तक का एजुकेशन लोन, ऐसे करें आवेदन Pusa Corn Varieties: कम समय में तैयार हो जाती हैं मक्का की ये पांच किस्में, मिलती है प्रति हेक्टेयर 126.6 क्विंटल तक पैदावार! Watermelon: तरबूज खरीदते समय अपनाएं ये देसी ट्रिक, तुरंत जान जाएंगे फल अंदर से मीठा और लाल है या नहीं Paddy Variety: धान की इस उन्नत किस्म ने जीता किसानों का भरोसा, सिर्फ 110 दिन में हो जाती है तैयार, उपज क्षमता प्रति एकड़ 32 क्विंटल तक
Updated on: 28 September, 2019 12:00 AM IST

उत्तराखंड में पाए जाने वाले जंगली फल बेडू, तिमला, काफल, किनगोड़, मेलू, और घिंघोरा राज्य की लोकसंस्कृति में रच बस गए है. लेकिन इनको आज भी उतना महत्व नहीं मिल पाया है जिसकी सबको दरकार है. अगर इन सभी फलों को बाजार से जोड़कर देखा जाए तो ये फल जंगली होने के साथ फल प्रदेश की आर्थिकी स्थिति को संवारने का जरिया है. लेकिन इस दिशा में कोई पहल होती नहीं दिख रही है. बता दें कि उत्तर प्रदेश से अलग होकर नया राज्य बनने के बाद यहां पर जड़ी-बूटी को लेकर काफी हल्ला हो रहा है, लेकिन इन पोषक तत्वों को फलों पर ध्यान किसी ने नहीं दिया और ये सिर्फ लोकगीतों तक ही सिमटकर रह गए है. अगर देखें तो ये जंगली फल न सिर्फ स्वाद, बल्कि सेहतकी दृष्टि से कम अहमियत नहीं रखते.

जंगली फलों में कई वैल्यू

बेडू, तिमला, मेलू, काफल, अमेस, दग्रमि, करौंदा, तूंग, जंगली आंवाल, खुबानी, हिसर, किनगोड़, समेत कई जंगली फलों की इस तरह की 100 से ज्यादा प्रजातियां मौजूद है, जिनमें एंटी ऑक्साइड, विटामिन की भरपूर मात्रा मौजूद है. विशेषज्ञों की माने तो इन फलों की इकोलॉजिकल व इकोनामिकल वैल्यू है. इनके पेड़ स्थानीय पारिस्थितिकीय तंत्र को सुरक्षित रखने में भी अहम भूमिका निभाते है, जबकि फल की सेहत और आर्थिक लिहाज से महत्वपूर्ण है.

काफल का फल स्वयं लाए

अगर हम जंगली फल अमेस को ही लें और चीन में इसके दो चार नहीं पूरे 133 प्रोजेक्ट तैयार किए गए है और वहां पर उत्पादकों के लिए यह जंगली फल आय का बेहतर स्त्रोत है. उत्तराखंड  में यह फल काफी मिलता है, पर दिशा में अभी तक कोई कदम नहीं उठाए गए है. काफल को छोड़ सभी फलों का यही हाल है. काफल को भी जब सभी लोग स्वंय तोड़कर बाहर लाए तो इसे थोड़ी बहुत पहचान मिली, लेकिन अन्य फल तो अभी भी हाशिये पर है.

मुहिम चलानी होगी

उपेक्षा का दंश झेलते हुए जंगली फलों के महत्व देते हुए पूर्व में उद्यान विभाग ने मेलू, तिमला, आंवला, जामुन, करौंदा, बेल समेत एक दर्जन जंगली फलों की पौध को तैयार करने का निर्णय लिया है. इस कड़ी में कुछ फलों की पौध तैयार करके वितरित की जाती है.

English Summary: Know the special thing about these special wild plants rich in nutrients
Published on: 28 September 2019, 04:04 IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now