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Updated on: 28 September, 2019 12:00 AM IST

उत्तराखंड में पाए जाने वाले जंगली फल बेडू, तिमला, काफल, किनगोड़, मेलू, और घिंघोरा राज्य की लोकसंस्कृति में रच बस गए है. लेकिन इनको आज भी उतना महत्व नहीं मिल पाया है जिसकी सबको दरकार है. अगर इन सभी फलों को बाजार से जोड़कर देखा जाए तो ये फल जंगली होने के साथ फल प्रदेश की आर्थिकी स्थिति को संवारने का जरिया है. लेकिन इस दिशा में कोई पहल होती नहीं दिख रही है. बता दें कि उत्तर प्रदेश से अलग होकर नया राज्य बनने के बाद यहां पर जड़ी-बूटी को लेकर काफी हल्ला हो रहा है, लेकिन इन पोषक तत्वों को फलों पर ध्यान किसी ने नहीं दिया और ये सिर्फ लोकगीतों तक ही सिमटकर रह गए है. अगर देखें तो ये जंगली फल न सिर्फ स्वाद, बल्कि सेहतकी दृष्टि से कम अहमियत नहीं रखते.

जंगली फलों में कई वैल्यू

बेडू, तिमला, मेलू, काफल, अमेस, दग्रमि, करौंदा, तूंग, जंगली आंवाल, खुबानी, हिसर, किनगोड़, समेत कई जंगली फलों की इस तरह की 100 से ज्यादा प्रजातियां मौजूद है, जिनमें एंटी ऑक्साइड, विटामिन की भरपूर मात्रा मौजूद है. विशेषज्ञों की माने तो इन फलों की इकोलॉजिकल व इकोनामिकल वैल्यू है. इनके पेड़ स्थानीय पारिस्थितिकीय तंत्र को सुरक्षित रखने में भी अहम भूमिका निभाते है, जबकि फल की सेहत और आर्थिक लिहाज से महत्वपूर्ण है.

काफल का फल स्वयं लाए

अगर हम जंगली फल अमेस को ही लें और चीन में इसके दो चार नहीं पूरे 133 प्रोजेक्ट तैयार किए गए है और वहां पर उत्पादकों के लिए यह जंगली फल आय का बेहतर स्त्रोत है. उत्तराखंड  में यह फल काफी मिलता है, पर दिशा में अभी तक कोई कदम नहीं उठाए गए है. काफल को छोड़ सभी फलों का यही हाल है. काफल को भी जब सभी लोग स्वंय तोड़कर बाहर लाए तो इसे थोड़ी बहुत पहचान मिली, लेकिन अन्य फल तो अभी भी हाशिये पर है.

मुहिम चलानी होगी

उपेक्षा का दंश झेलते हुए जंगली फलों के महत्व देते हुए पूर्व में उद्यान विभाग ने मेलू, तिमला, आंवला, जामुन, करौंदा, बेल समेत एक दर्जन जंगली फलों की पौध को तैयार करने का निर्णय लिया है. इस कड़ी में कुछ फलों की पौध तैयार करके वितरित की जाती है.

English Summary: Know the special thing about these special wild plants rich in nutrients
Published on: 28 September 2019, 04:04 IST

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