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Updated on: 25 May, 2018 12:00 AM IST
ladyfinger

भिन्डी भारत वर्ष की प्रमुख फसल है जिसकी खेती विभिन्न क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जाती है. अपने उच्च पोषण मान के कारण भिंड़ी का सेवन सभी आयुवर्ग के लोगों के लिए लाभदायक है. इसमें मैग्निशियम, पोटाशियम, विटामिन ए, बी, तथा कार्बोहाइड्रेट की प्रचुर मात्रा पाई जाती है. चूंकि यह उपभोक्ताओं में अत्यंत लोकप्रिय है अतः इसका बाजार मूल्य अच्छा मिलता है. जिससे किसानों को फायदा होता है तथा उनको इसकी खेती के लिए प्रोत्साहन मिलता है. लेकिन भिंड़ी की फसल में अनेक प्रकार के कीटो का प्रकोप होता है जो उपज का एक बड़ा हिस्सा नष्ट कर देते हैं अतः प्रस्तुत लेख में किसान भाइयों के लिए इन फसलों में लगने वाले कीटों और रोकथाम के बारे में जानकारी दी गई है जिसका लाभ उठाकर वे इन समस्याओं के प्रबंधन की उचित तकनीक अपना सकते हैं.

हरा तेला:- ये कीट हरे पीले रंग के होते हैं. इसके शिशु व प्रौढ़ पत्तों की निचली सतह पर रहकर रस चूसते हैं. इनका प्रकोप मई से सितम्बर मास तक होता है. रस चूसने की वजह से पत्तियाँ पीली पड़ जाती है और किनारों के उपर की ओर मुड कर कप का आकार बना लेती हैं. अगर इस कीट का प्रकोप अधिक हो जाए तो पत्तियां जल जाती हैं और मुरझा कर सूख जाती हैं.

प्रबंधन:- फसल को तेले से बचाने के लिए बीज का उपचार करना चाहिए. बीज उपचार के लिए इमीड़ाक्लोपरिड़ 70 ड़ब्लयू. एस. 5 ग्राम या क्रुजर 35 एफ. एस. 5.7 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से लें.

उपचार से पहले बीज को 6 से 12 घंटे तक पानी में भिगोयें. अब इस भीगे हुए बीज को आधे से लेकर 1 घण्टे तक छाया में सुखायें, जब यह सूख जाएं तो बताई गई दवाई डालकर इसे अच्छे से मिला दें.

भिण्ड़ी की खड़ी फसल में हरे तेले की रोकथाम के लिए एक्टारा 25 ड़ब्लयू . जी. की. 40 ग्राम मात्रा को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर घोल बनाएं और फिर इस घोल को प्रति एकड़ की दर से छिड़कें.

भिण्ड़ी में जब फल लग जाएं और वह खाने के लिए उगाई गई हों तो 300-500 मि.ली. मैलाथियान 50 ई.सी. को 200-300 लीटर पानी में मिलाकर एक घोल बनाएं और इसे 15 दिन केे अन्तराल पर प्रति एकड़ की दर से छिड़कें.

सफेद मक्खी:- ये सूक्ष्म आकार के कीट होते हैं तथा इन कीट के शिशु तथा प्रौढ़ दोनों ही निचली सतह से रस चूसकर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं. जिससे पौधे की वृद्वि कम होती है व उपज में कमी आ जाती है. ये पीत शिरा मोजैक (पीलिया) रोग भी फैलाते हैं.

प्रबंधन:- भिंड़ी की फसल को कपास के पास ना लगाएं.

खरपतवार जैसे कि कंधी बूटी अगर आस पास उगी हुई हो तो उसे उखाड़ देना चाहिए.

बीज का उपचार 5 ग्राम इमीडाक्लोपरिड़ 70 डब्लयू. एस. या 5.7 ग्राम क्रुजर 35 एफ.एस. लेकर प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करें. बीज का उपचार करने से पहले बीज को 6 से 12 घण्टे तक पानी में भिगोंए. भीगे हुए बीज को आधे से एक घण्टे तक छाया में सुखायें और उपर लिखी हुई दवाई ड़ालकर अच्छी तरह से बीज में मिला लें.

अगर बीज का उपचार ना किया गया हो तो एक्टारा 25 ड़ब्लयू. जी. (थायामिथोक्षम) नामक कीटनाशक दवा की मात्रा 40 ग्राम लें. इसे 150-200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें. अगर जरुरत हो तो इसका छिड़काव 20 दिन के अन्तराल पर फिर से करें.

अष्टपदी:- यह माईट पौधों की पत्तियों की निचली सतह पर भारी संख्या में कालोनी बनाकर रहते है. इसके शिशु व प्रौढ़ पत्तों की निचली सतह से रस चूसते हैं. ग्रसित हुए पत्तों पर छोटे-छोटे सफेद रंग के धब्बे बन जाते हैं. यह माइट पत्तियों पर जाला बना देती है. अधिक प्रकोप होने पर सपूर्ण पौधा सूख कर नष्ट हो जाता है.

प्रबंधन:- लाल माईट के प्रबंधन के लिए प्रेम्पट 20 ई. सी. नामक कीटनाशक दवाई का प्रयोग करना चाहिए. इसका 300 मि.ली. प्रति एकड़ के हिसाब से दो छिड़काव 10 दिन के अन्तर पर करें.

चित्तीदार तना व फलबेधक सूण्ड़ी:- इस कीट का प्रकोप जून से अक्तूबर तक अधिक होता है. यह सूण्ड़ी बेलन के आकार की होती है. इसके शरीर पर हल्के पीले संतरी, भूरे रंग के धब्बे होते हैं. आरम्भिक अवस्था में ये सूण्ड़ियां कोपलों में छेद करके अन्दर पनपती रहती है जिसकी वजह से कोपलें मुरझा जाती हैं और सुख जाती हैं बाद में ये सूण्ड़ियां कलियों और फलों फूलों, को नुकसान करती हैं. ये फल में छेद बनाकर अंदर घुसकर गुदा खाती रहती है. जिससे फल कीट ग्रसित हो जाते हैं और भिण्ड़ी खाने योग्य नही रहती.

प्रबंधन:- क्षतिग्रस्त पौधों के तनों तथा फलों को एकत्रित करके नष्ट कर देना चाहिए.

फल छेदक की निगरानी के लिए 5 फेरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर लगायें.

फल शुरु होने पर 400-500 मि.ली. मैलाथियान 50 ई.सी. 75-80 मि.ली. स्पाईनोसैड़ 45 एस.सी. को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करें. इसे 15 दिन के अंतर पर तीन बार दोहराएं.

समय पर कीट ग्रसित कोपलें व फल तोड़कर मिट्टी में गहरा दबा दें या जला दें.

रूमी रावल एवं कृष्णा रोलानियाँ, कीट विज्ञान विभाग,

चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार.

English Summary: In this way, protect the harmful insects from Bhindi ...
Published on: 25 May 2018, 05:27 IST

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