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Updated on: 22 December, 2017 12:00 AM IST
Potato Disease

भारत में आलू साल भर उगाई जाने वाली एक महत्त्वपूर्ण फसल है. आलू का लगभग सभी परिवारों में किसी न किसी रूप में इस्तेमाल किया जाता है.आलू कम समय में पैदा होने वाली फसल है. इसमें स्टार्च, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन विटामिन सी व खनिज लवण काफी मात्रा में होने के कारण इसे कुपोषण की समस्या के समाधान का एक अच्छा साधन माना  जाता है. 

आलू की फसल में खरपतवारों, कीटों व रोगों से 42 फीसदी की हानि होती है.भारत में आलू की खेती लगभग 2.4 लाख हेक्टेयर रकबे में की जाती है. आज के दौर में इस का सालाना उत्पादन 24.4 लाख टन हो गया है. इस समय भारत दुनिया में आलू के रकबे के आधार पर चौथे और उत्पादन के आधार पर पांचवें स्थान पर है. आलू की फसल को झुलसा रोगों से सब से ज्यादा नुकसान होता है.

पछेता अंगमारी रोग (late leprosy Disease)

यह रोग फाइटोपथोरा नमक कवक के कारण फैलता है. आलू का पछेता अंगमारी रोग बेहद विनाशकारी है. आयरलैंड का भयंकर अकाल जो साल 1945 में पड़ा था, इसी रोग के द्वारा आलू की पूरी फसल तबाह हो जाने का ही नतीजा था.

यह रोग उत्तर प्रदेश के मैदानी तथा पहाड़ी दोनों इलाकों में आलू की पत्तियों, शाखाओं व कंदों पर हमला करता है. जब वातावरण में नमी व रोशनी कम होती है और कई दिनों तक बरसात होती है, तब इस का प्रकोप पौधे तक बरसात पत्तियों से शुरू होता है.

यह रोग 5 दिनों के अंदर पौधों की हरी पत्तियों को नष्ट कर देता है. पत्तियों की निचली सतहों पर सफेद रंग के गोले बन जाते हैं, जो बाद में भूरे व काले हो जाते हैं. पत्तियों के बीमार होने से आलू के कंदों का आकार छोटा हो जाता है और उत्पादन में कमी आ जाती है. इस के लिए 20-21 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान मुनासिब  होता है. आर्द्रता इसे बढ़ाने में मदद करती है.

प्रबंधन (Management)

आलू की पत्तियों पर कवक का प्रकोप रोकने के लिए बोड्रेक्स मिश्रण या फ्लोटन का छिड़काव करना चाहिए.

मेटालोक्सिल नामक फफूंदीनाशक की 10 ग्राम मात्रा को 10 लीटर पानी में घोल कर उस में बीजों को आधे घंटे डूबा कर उपचारित कने के बाद छाया में सूखा कर बोआई करनी चाहिए.

आलू की फसल में कवकनाशी जैसे मैंकोजेब (75 फीसदी) का 0.2 फीसदी या क्लोरोथलोनील 0.2 फीसदी या मेटालेक्सिल 0.25 फिसदी या प्रपोनेब 70 फीसदी या डाइथेन जेड 78, डाइथेन एम् 45 0.2 फीसदी या बलिटोक्स 0.25 फीसदी क्या डिफोलटान और केप्टन 0.2 फीसदी के 4 से 5 छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से करने चाहिए. 

अगेती अंगकारी रोग (Early Organ Disease)

यह रोग आल्टनेरिय सोलेनाई नामक कवक द्वारा होता है. यह आलू का एक सामान्य रोग है, जो आलू फसल को सब से ज्यादा नुकसान पहूँचाता है.

इस रोग के लक्षण पछेता अंगमारी से पहले यानी फसल बोने के 3-4 हफ्ते बाद पौधों की निचली पत्तियों पर छोटे-छोटे, दूर दूर बिखरे हुए कोणीय आकार के चकत्तों या धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं, जो बाद में कवक की गहरी हरीनली वृद्धि से ढक जाते हैं.

ये धब्बे तेजी से बढ़ते हैं और ऊपरी पत्तियों पर भी बन जाते हैं. शुरू में बिन्दु के आकार के ये धब्बे तेजी से बढ़ते हैं और शीघ्र ही तिकोने, गोल या अंडाकार हो जाते हैं.

आकार में बढ़ने के साथ साथ इन धब्बों का रंग भी बदल जाता है और बाद में ये भूरे व काले रंग के हो जाते हैं. सूखे मौसम में धब्बे कड़े हो जाते हैं और नम मौसम में फ़ैल कर आपस में मिल जाते हैं, जिस से बड़े क्षेत्र बन जाते हैं.

रोग का जबरदस्त प्रकोप होने पर पत्तियाँ सिकुड़ कर जमीन पर गिर जाती हैं और पौधों के तनों पर भूरे काले निशान बन जाते हैं. रोग का असर आलू के कंदों पर भी पड़ता है. नतीजतन कंद आकार में छोटे रह जाते हैं.

प्रबंधन (Management)

आलू की खुदाई के बाद खेत में छूटे रोगी पौधों के कचरे को इकट्ठा कर के जला देना चाहिए.

यह एक भूमि जनित रोग है. इस रोग को पैदा करने वाले कवक के कोनिडीमम 1 साल से 15 महीने तक मिट्टी में पड़े रहते हैं, लिहाजा 2 साल का फसल चक्र अपनाना चाहिए.

फसल में बीमारी का प्रकोप दिखाई देने पर यूरिया 1 फीसदी व मैंकोजेब (75 फीसदी) 0.2 फीसदी का छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए.

English Summary: Farmer's brother to manage the scorching diseases in potato ...
Published on: 22 December 2017, 12:42 IST

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