यह एक सदाबहार वृक्ष है,जिसकी औसतन ऊंचाई 30 मीटर होती है. इसके फल हरे रंग के होते है जो पकने के साथ गहरे बैंगनी रंग के हो जाते है. जहां एक तरफ इसके फल खाने में स्वादिष्ट और स्वास्थय के लिए लाभकारी होते हैं, तो वहीं जामुन के बीज आयुर्वेदिक औषधि के निर्माण में भी काम आते हैं. मधुमेह रोग में इसका काफी उपयोग किया जाता है.
जामुन की खेती के लिए जलवायु (Climate for Blackberry)
जामुन के वृक्ष को उगाने के लिए समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जलवायु की आवश्यकता होती है. सदियों में पड़ना वाला पाला और गर्मियों में अत्यधिक तेज़ गर्मी जामुन के वृक्ष को प्रभावित करते हैं. फूल बनने की अवस्था के दौरान बहुत ज्यादा बारिश होने से उत्पादन कम हो जाता है. जामुन के छोटे पौधों को गर्म हवा और पाला से बचाव की जरूरत होती है.
मिट्टी का चुनाव (Selection of soil)
जामुन की अधिक पैदावार लेने के लिए जल निकासी वाली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है. जामुन की बागवानी/खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान 5 से 8 के बीच होना चाहिए.
जामुन की उन्नत किस्में (Improved varieties)
जामुन की कई उन्नत किस्में हैं जिनसे उच्च गुणवत्ता वाले जामुन का अधिक उत्पादन लिया जा सकता है. राजा जामु: देश में यह किस्म सबसे अधिक उगाई जाती है. इस किस्म के फल बड़े और गहरे बैंगनी रंग के होते हैं जोकि बहुत रसीले और बड़े आकार के होते हैं जबकि गुठली किस्म की जामुन आकार में छोटा होती है.
CISHJ-45: यह जामुन की बीज रहित किस्म है जिसके फल सामान्य मोटाई वाले अंडाकार होते हैं. पकने के बाद काले और गहरे नीले रंग के हो जाते हैं. इस किस्म के फल रसदार और स्वाद में मीठे होते हैं. उत्तर भारत में जामुन की यह किस्म प्रसिद्ध है.
री जामुन: इस किस्म के पौधे बारिश के मौसम में फल देते हैं, जिनके फलों का रंग गहरा जामुनी या नीला होता है. इसके फल अंडाकार और गुठली बहुत ही छोटी होती है, जिनके अंदर मीठा रसदार गुदा हल्की खटाई के साथ होता है. यह किस्म पंजाब में अधिक उगाई जाती है.
गोमा प्रियंका: जामुन की यह किस्म काफी अच्छी मानी जाती है. इस किस्म के फल स्वाद में मीठे और गुदे की मात्रा ज्यादा होती है. फल बारिश के मौसम में पककर तैयार होते हैं.
काथा: इस किस्म के फल गहरे जामुनी और छोटे आकार के होते हैं. यह स्वाद में खट्टे और गुदे की मात्रा कम होती है.
CISHJ-37: जामुन की यह किस्म सेंट्रल फॉर सब-ट्रॉपिकल हॉर्टिकल्चर, लखनऊ से निकाली गई है. इस किस्म के फल गहरे काले रंग के, गुठली का आकार छोटा, गुदा मीठा और रसदार होते हैं. यह किस्म भी बारिश के मौसम में पककर तैयार होती है.
इनके अलावा नरेंद्र 6, कोंकण भादोली, और राजेन्द्र 1 भी जामुन की उन्नत किस्में हैं. जिनसे अलग-अलग क्षेत्रों में अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है.
बुवाई/रोपण का तरीका (Method of sowing/ planting)
बीज को बाविस्टीन दवा से उपचारित कर लेना चाहिए. भुरभुरी जमीन की नर्सरी में 25 X 15 सेमी की दूरी पर 4-5 सेमी गहरा बोएं. 10 से 15 दिनों के बाद बीजों से अंकुरण शुरू हो जाता है. लगभग एक साल बाद मानसून शुरू होने पर जामुन के पौधों की रोपाई करें. पौधे लगाने के समय गड्ढे को अच्छी मिट्टी और सड़ी गोबर खाद के साथ 3:1 अनुपात से मिलाकर भर दें.
पौध संरक्षण (Plant protection)
जामुन के वृक्ष पर कई तरह के कीट और रोगों का प्रकोप हो सकता है जिसकी वजह से उत्पादन में भारी गिरावट होने की आशंका रहती है. जामुन वृक्षों पर लगने वाले कीट और रोगों का विवरण इस प्रकार है –
मकड़ी: यह छः पैरो वाला छोटा जीव पत्तियों से रस चूसकर उसे मोड़ देता है और जाल से पत्तियों को ढक देता है जिससे पेड़ों द्वारा प्रकाश संश्लेषण क्रिया पर विपरीत असर होता है और पेड़ भोजन नहीं बना पता. इतना ही नहीं, जाल से फल आपस में मिलकर खराब हो जाते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए एकत्रित की हुई पत्तियों को फल लगने से पहले ही तोड़कर जला दें. इसके साथ क्लोरपीरिफॉस की 1 मिली मात्रा 1 लीटर पानी में छिड़काव करना चाहिए.
थ्रिप्स: इस कीट के कारण पत्तियों पर सफ़ेद दाग हो जाते है जो आगे चलकर पत्तियां मुड़ कर पीली पड़ जाती है. यह रसचूसक कीट है जिसके नियंत्रण के लिए प्रोफेनोफॉस 50% EC @ 30 मिली या एसीफेट 75% SP @ 18 ग्राम या फिप्रोनिल 5% SC @ 25 मिली प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए.
फल छेदक: यह कीट फल के अंदर सुरंग बनाकर फल को सड़ा देता है. इसके बचाव के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @ 0.5 प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें या जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.
पत्ती झुलसा रोग: इस रोग के लगने पर पेड़ों की पत्तियों पर भूरे-पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं और पत्तियां किनारों पर से सूखकर सिकुड़ने लगती है. जिससे पेड़ झुलसा हुआ नजर आता है. इसकी रोकथाम के लिए मेंकोजेब 75 WP की 2 ग्राम प्रति लीटर की दर छिड़काव किया जा सकता है.
ऐंथ्राक्नोस रोग: इस बीमारी के साथ पत्तों पर धब्बे पड़ना, पत्ते झड़ जाना और टहनियों का सूखना आदि लक्षण दिखाई देते है. इसके नियंत्रण के लिए मेंकोजेब 75 WP @ 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें या जैविक के रूप में ट्राइकोडर्मा विरिडी @ 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.
खाद एवं उर्वरक (Manure & Fertilizer)
अच्छी सड़ी गोबर की खाद 20-25 किलो प्रति पौधे को प्रति साल डालें. जब पौधे फल देने की स्थिति में पहुंच जाये तो खाद की मात्रा बढ़ा कर 50-60 किलो प्रति पौधे को प्रति साल कर दें. उसके बाद वृक्ष को नाइट्रोजन 500 ग्राम, पोटाश 600 ग्राम और फास्फोरस 300 ग्राम प्रति पौधे को प्रति वर्ष देना चाहिए.
सिंचाई व्यवस्था (Irrigation arrangement)
शुरुआत में जब गड्डे में पौधे को रोपित किया जाता है तो हल्की सिंचाई कर देना चाहिए.इसके बाद लगातार सिंचाई की जरूरत होती है. जामुन का पेड़ सख्त माना जाता है इसलिए वर्ष भर 6-7 बार सिंचाई काफी रहती है. थाला विधि से इसमें ज्यादातर सिंचाई की जाती है. गर्मी के दौरान 10-15 दिन और सर्दियों में 20-25 दिन के अंतराल पर आवश्यकतानुसार पानी दें. बारिश के मौसम में इसे पानी देने की जरूरत नहीं होती. बीज से तैयार पौधा 6-7 साल बाद फल देना शुरू कर देता है जबकि पेच बाडिंग या कटिंग द्वारा तैयार पौधों में से 3-4 साल बाद फल आना शुरू हो जाता है.
खरपतवार प्रबंधन (Weed management)
जामुन के पेड़ो के आसपास खरपतवार बढ़ने से कीट व रोगों की समस्या बढ़ जाती है. हाथ या कृषि यंत्र से खरपतवार निकालने का काम करें.खरपतवारनाशी दवाओं से बचना चाहिए क्योंकि इसका विपरीत असर पेड़ों पर भी देखा जा सकता है.
तुड़ाई और भंडारण (Fruit harvesting and storage)
फलों की तुड़ाई आमतौर पर मई-जून से शुरू हो जाती है तथा अगस्त तक चलती है. इसके फल की तुड़ाई हर दिन करनी चाहिए. फल काले या गहरे बैगनी होने पर तुड़ाई के योग्य हो जाते है. फिर फलों को बांस की टोकरियों या लकड़ी के बक्सों में पैक किया जाता हैं. जामुन को 5-6 दिनों तक रखने के लिए इनको कम तापमान पर रखना होता है. फलों को नुकसान से बचाने के लिए अच्छी तरह से पैकिंग करें और सही समय पर बिक्री के लिए बाजार में ले जाएं.
उपज (Yield)
जामुन के एक पेड़ से 80-100 किलो फल लिए जा सकते हैं.
जामुन के बागों में आने वाली लागत और मुनाफा (Cost and profit)
जामुन का बाग स्थापित करने में लगभग 35000 रुपये की लागत आती है और वार्षिक रखरखाव लागत 25000 रुपये आंकी गई है. इसका मुनाफा किस्म और बागों के रखरखाव पर निर्भर है इसके लिए लागत का तीन गुना शुद्ध लाभ मिल जाता है.
संपर्क सूत्र (For contact)
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देश में बागवानी के कई सरकारी संस्थान और कृषि विश्वविद्यालय है जिनसे सम्पर्क किया जा सकता है.
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भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलौर या निदेशक 080-28466471 080-28466353 से सम्पर्क किया जा सकता है.
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केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, रहमानखेड़ा, लखनऊ जाकर या 0522-2841022, 0522-2841023, 0522-2841027 पर फोन किया जा सकता है या इस संस्थान के वेबसाइट http://www.cish.res.in/hindi/index.php देखी जा सकती है.
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किसान हेल्पलाइन नम्बर 1800-180-1551 पर भी सम्पर्क किया जा सकता है.