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Updated on: 29 March, 2018 12:00 AM IST
अजोला की खेती

दरअसल अजोला तेजी से बढ़ने वाली एक प्रकार की जलीय फर्न है, जो पानी की सतह पर तैरती रहती है. धान की फसल में नील हरित काई की तरह अजोला को भी हरी खाद के रूप में उगाया जाता है और कई बार यह खेत में प्राकर्तिक रूप से भी उग जाता है. इस हरी खाद से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है और उत्पादन में भी आशातीत बढ़ोतरी होती है. अजोला की सतह पर नील हरित शैवाल सह जैविक के रूप में विध्यमान होता है.

इस नील हरित शैवाल को एनाबिना अजोला के नाम से जाना जाता है जो कि वातावरण से नत्रजन के स्थायीकरण के लिए उत्तरदायी रहता है. एजोला शैवाल की वृद्धि के लिए आवश्यक कार्बन स्त्रोत एवं वातावरण प्रदाय करता है. इस प्रकार यह अद्वितीय पारस्परिक सह जैविक संबंध अजोला को एक अदभुद पौधे के रूप में विकसित करता है, जिसमें कि उच्च मात्रा में प्रोटीन उपलब्ध होता है. प्राकृतिक रूप से यह उष्ण व गर्म उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है. देखने में यह शैवाल से मिलती जुलती है और आमतौर पर उथले पानी में अथवा धान के खेत में पाई जाती है.

पशुओं को अजोला चारा खिलाने के लाभ (Benefits of feeding Azolla fodder to animals)

अजोला सस्ता, सुपाच्य एवं पौष्टिक पूरक पशु आहार है. इसे खिलाने से वसा व वसा रहित पदार्थ सामान्य आहार खाने वाले पशुओं के दूध में अधिक पाई जाती है. पशुओं में बांझपन निवारण में उपयोगी है. पशुओं के पेशाब में खून की समस्या फॉस्फोरस की कमी से होती है. पशुओं को अजोला खिलाने से यह कमी दूर हो जाती है. अजोला से पशुओं में कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहे की आवश्यकता की पूर्ति होती है जिससे पशुओं का शारिरिक विकास अच्छा है. अजोला में प्रोटीन आवश्यक अमीनो एसिड, विटामिन (विटामिन ए, विटामिन बी-12 तथा बीटा-कैरोटीन) एवं खनिज लवण जैसे कैल्शियम, फास्फ़ोरस, पोटेशियम, आयरन, कापर, मैगनेशियम आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते है. इसमें शुष्क मात्रा के आधार पर 40-60 प्रतिशत प्रोटीन, 10-15 प्रतिशत खनिज एवं 7-10 प्रतिशत एमीनो अम्ल, जैव सक्रिय पदार्थ एवं पोलिमर्स आदि पाये जाते है. इसमें कार्बोहायड्रेट एवं वसा की मात्रा अत्यंत कम होती है. अतः इसकी संरचना इसे अत्यंत पौष्टिक एवं असरकारक आदर्श पशु आहार बनाती है. यह गाय, भैंस, भेड़, बकरियों , मुर्गियों आदि के लिए एक आदर्श चारा सिद्ध हो रहा है.

दुधारू पशुओं पर किए गए प्रयोगों से साबित होता है कि जब पशुओं को उनके दैनिक आहार के साथ 1.5 से 2 किग्रा. अजोला प्रतिदिन दिया जाता है तो दुग्ध उत्पादन में 15-20 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गयी है. इसके साथ इसे खाने वाली गाय-भैसों की दूध की गुणवत्ता भी पहले से बेहतर हो जाती है. प्रदेश में #मुर्गीपालन व्यवसाय भी बहुतायत में प्रचलित है. यह बेहद सुपाच्य होता है और यह मुर्गियों का भी पसंदीदा आहार है. कुक्कुट आहार के रूप में अजोला का प्रयोग करने पर ब्रायलर पक्षियों के भार में वृद्धि तथा अण्डा उत्पादन में भी वृद्धि पाई जाती है. यह मुर्गीपालन करने वाले व्यवसायों के लिए बेहद लाभकारी चारा सिद्ध हो रहा है. यही नहीं अजोला को भेड़-बकरियों, सूकरों एवं खरगोश, बतखों के आहार के रूप में भी बखूबी इस्तेमाल किया जा सकता है.

अजोला के गुण (Properties of Azolla)

अजोला जल सतह पर मुक्त रूप से तैरने वाली जलीय फर्न है. यह छोटे-छोटे समूह में सद्यन हरित गुक्ष्छ की तरह तैरती है. भारत में मुख्य रूप से अजोला की जाति अजोला पिन्नाटा पाई जाती है. यह काफी हद तक गर्मी सहन करने वाली किस्म है.

यह जल मे तीव्र गति से बढवार करती है.

यह प्रोईन आवयक अमीनो अम्ल, विटामिन (विटामिन ए, विटामिन बी-12 तथा बीटा कैरोटीन) विकास वर्धक सहायक तत्वों एवं कैल्श्‍ाियम, फॉस्फोरस, पोटेशियम, फैरस, कॉपर एवं मैग्नीशियम से भरपूर है.

इसमें उत्तम गुणवत्ता युक्त प्रोटीन एवं निम्नलिखित तत्व होने के कारण मवेशी इसे आसानी से पचा लेते है.

शुष्क वजन के आधार पर इसमें 20-30 प्रति‍शत प्रोईन, 20-30 प्रति‍शत वसा, 50-70 प्रति‍शत खनिज ततव, 10-13 प्रति‍शत रेशा, बायो-एक्टिव पदार्थ एवं बायो पॉलीमर पाये जाते हैं

इसकी उत्पादन लागत काफी कम होती हैं

यह औसतन 15 क़िग़्रा वर्गमीटर की दर से प्रति सप्ताह उपज देती है

सामान्य अवस्था मे यह फर्न तीन दिन में दौगुनी हो जाती है

यह जानवरों के लिए प्रति जैविक का कार्य करती है.

यह पशुओ के लिए आर्दश आहार के साथ साथ भूमि उर्वरा शक्ति बढाने के लिए हरी खाद के रूप में भी उपयुक्त है.

रिजका एवं संकर नेपियर की तुलना मे अजोला से 4 से 5 गुना उच्च गुणवता युकत प्रोटीन प्राप्त होती है यदि जैव भार उत्पादन के रूप में तुलना करे तो रिजका व संकर नेपियर से अजोला 4 से 10 गुना तक अधिक उत्पादन देता है. आर्थि पशुपालन उत्पादन की वृद्वि में इन दोनो कारको के अति महत्वपूर्ण होने से अजोला को जादुई फर्न अथवा सर्वोत्तम पादप अथवा हरा सोना अथवा पशुओ के लिए च्वनप्राश्‍ा की संज्ञा दी गई है.

अजोला तैयार करने की विधि (Method of preparation of Azolla)

किसी छायादार स्‍थान पर 60 X 10 X 2 मीटर आकार की क्यारी खोदें

क्यारी में 120 गेज की सिलपुटिन शीट को बिछाकर उपर के किनारो पर मिटटी का लेप कर व्यवस्थित कर दें.

सिलपुटिन शीट को बिछाने की जगह पशुपालक पक्का निर्माण कर क्यारी तैयार कर सकते है.

80-100 किलोग्राम साफ उपजाउ मिटटी की परत कयारी में बिछा दें.

5-7 किलो गोबर (2-3 दिन पुराना) 10-15 लीटर पानी में घोल बनाकर मिटटी पर फेला दें.

क्यारी में 400-500 लीटर पानी भरे जिसमे क्यारी में पानी की गहराई लगभग 10-15 सेमी तक हो जावें.

अब उपजाउ मिटटी व गोबर खाद को जल में अच्छी तरह मिश्रित कर देवे.

इस मिश्रण पर दो किलो ताजा अजोला को फेला देवें इसके पश्‍चात से 10 लीटर पानी को अच्छी तरह से अजोला पर छिडके जिससे अजोला अपनी सही स्थिति में आ सकें.

कयारी को अब 50 प्रति‍शत नायलोन जाली से ढक कर 15-20 दिन तक अजोला को वृद्धि करने दें.

21वें दिन से औसतन 15-20 क़िलोग्राम अजोला प्रतिदिन प्राप्त की जा सकती है.

प्रतिदिन 15-20 क़िलोग्राम अजोला की उपज प्राप्त करने हेतु 20 ग्राम सुपरफॉस्फेट तथा 50 क़िलोग्राम गोबर का घोल बनाकर प्रति माह क्यारी में मिलावें.

मुर्गियों को 30-50 ग्राम अजोला प्रतिदिन खिलाने से मुर्गियों मे शारीरिक भार व अण्डा उत्पादन क्षमता में 10-15 प्रति‍शत की वृद्वि होती है.

भेंड एवं बकरियों को 150-200 ग्राम ताजा अजोला खिलाने से शारीरिक वृद्वि एवं दुग्ध उत्पादन में बढोतरी होती है.

अजोला का रखरखाव (Maintenance of Azolla)

क्यारी में जल स्तर को 10 सेमी तक बनाये रखें प्रतिदिन 15-20 क़िलोग्राम अजोला की उपज प्राप्त करने हेतु 20 ग्राम सुपरफॉस्फेट तथा 50 क़िलोग्राम गोबर का घोल बनाकर प्रति माह क्यारी में मिलावे.प्रत्येक 3 माह पश्‍चात अजोला को हटाकर पानी व मिटटी बदलें तथा नई क्यारी के रूप में दुबारा पुनसवर्धन करें. अजोला की अच्छी बढवार हेतु 20-35 सेन्टीग्रेड तापक्रम उपयुक्त रहता है. शीत ऋतु में ताक्रम 60 सेन्टीग्रेड से नीचे आने पर अजोला क्यारी के प्लास्टिक मल्च अथवा पुरानी बोरी के टाट अथवा चददर से रात्रि में ढक दे. अजोला उत्पादन इकाई स्‍थापना में कयारी निर्माण, सिलपुटिन शीट छायादार नाइलोन जाली एवं अजोला बीज की लागत पशुपालक को प्रति वर्ष नही देनी पडती है इन कारकों को ध्यान में रखते हुए अजोला उत्पादन लागत लगभग 100 रू क़िलो से कम आंकी गयी है.जैविक खेती करने वाले किसानों के लिए भी यह कारगर है इसे नाना प्रकार के ऑर्गेनिक प्रोडक्ट बनाए जाते हैं खेती-बाड़ी के लिए साथ ही इसके क्यारी के पानी का उपयोग जैविक खेती में किया जाता है.अजोला क्यारी से हटाये पानी को सब्जियों एवं पुष्प खेती मे काम मे लेने से यह एक वृद्वि नियामक का कार्य करता है. जिससे सब्जियों एवं फूलों के उत्पादन में वृद्वि होती है. अजोला एक उत्तम जैविक एवं हरी खाद के रूप में कार्य करता है.

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें

राजस्थान ऑर्गेनिक एग्रो किसान संस्था चौमू

9529250150

English Summary: Ajole Article
Published on: 29 March 2018, 02:25 IST

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