Lemon Cultivation: नींबू एक प्रमुख बागवानी फसल है, जो न केवल विटामिन सी का समृद्ध स्रोत है, बल्कि इसका उपयोग औषधीय और व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए भी होता है. भारत में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है, लेकिन बंपर उत्पादन प्राप्त करने के लिए किसानों को वैज्ञानिक विधियों और आधुनिक तकनीकों का सहारा लेना जरूरी है. बेहतर फसल प्रबंधन, सिंचाई तकनीकों और उन्नत किस्मों का चयन करने से न केवल पैदावार में वृद्धि हो सकती है, बल्कि फसल की गुणवत्ता भी बेहतर होती है.
1. भूमि चयन और तैयार
नींबू की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली, उपजाऊ और बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है. मिट्टी का पीएच 5.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए. खेत को गहरी जुताई करें और खरपतवार हटाएं. 2-3 जुताई के बाद खेत को समतल करें. मिट्टी में जैविक पदार्थ बढ़ाने के लिए 15-20 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर डालें.
2. उन्नत किस्मों का चयन
अच्छी उपज के लिए उन्नत किस्मों का चयन करें-
- कागजी नींबू: छोटे फलों और उच्च अम्लता के लिए प्रसिद्ध.
- गंधराज नींबू: सुगंधित फल के लिए उपयुक्त.
- पंत नींबू-1 और सामान्य नींबू: उच्च उत्पादकता के लिए.
3. पौधरोपण
पौधों का रोपण मानसून की शुरुआत में करें (जुलाई से अगस्त). पौधों के बीच 4 से 5 मीटर की दूरी रखें. गड्ढे का आकार 60×60×60 सेमी रखें. गड्ढे में 10 से 12 किलोग्राम गोबर की खाद, 1 किलोग्राम नीम खली और 50 ग्राम फफूंदनाशक डालें.
4. सिंचाई प्रबंधन
नींबू को नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है. गर्मियों में 7-10 दिन और सर्दियों में 15-20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें. टपक सिंचाई प्रणाली (Drip Irrigation) का उपयोग करें, जिससे पानी की बचत हो और पौधों को पर्याप्त नमी मिले. फूल आने और फल बनने के समय सिंचाई का विशेष ध्यान रखें.
5. खाद और उर्वरक प्रबंधन
नींबू के पौधों को पोषण की सही मात्रा देने से फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में वृद्धि होती है.
- प्रथम वर्ष: प्रति पौधा 100 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फॉस्फोरस और 50 ग्राम पोटाश.
- द्वितीय वर्ष: 200 ग्राम नाइट्रोजन, 100 ग्राम फॉस्फोरस और 100 ग्राम पोटाश.
- तृतीय वर्ष और उसके बाद: प्रति पौधा 600 ग्राम नाइट्रोजन, 300 ग्राम फॉस्फोरस और 300 ग्राम पोटाश. उर्वरकों का प्रयोग तीन भागों में करें: बौर आने से पहले (फरवरी); फूल आने के दौरान (मार्च-अप्रैल); फल बनने के समय (जून).
- सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जिंक, मैंगनीज और आयरन का स्प्रे करें. फलों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए बोरॉन और कैल्शियम का उपयोग करें.
6. पौधों की कटाई-छंटाई
मृत, रोगग्रस्त और सूखी टहनियों को समय-समय पर हटा दें. उचित आकार और घने पत्ते बनाए रखने के लिए कटाई-छंटाई करें. नई शाखाओं के विकास के लिए कटाई-छंटाई वसंत ऋतु में करें.
7. कीट और रोग प्रबंधन
नींबू की फसल को कई कीट और रोग प्रभावित कर सकते हैं.
- सिट्रस लीफ माइनर: नई पत्तियों पर हमला करता है. इसे नियंत्रित करने के लिए नीम का तेल या इमिडाक्लोप्रिड का छिड़काव करें.
- सिट्रस कैंकर: पत्तियों और फलों पर धब्बे बनाता है. इसे रोकने के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव करें.
- फूल और फल झड़ना: नमी की कमी और पोषक तत्वों की कमी के कारण होता है. इसके लिए सिंचाई और पोषण प्रबंधन करें. जैविक कीटनाशकों और फफूंदनाशकों का उपयोग करें, जैसे ट्राइकोडर्मा, ब्यूवेरिया और वर्टिसिलियम.
8. फूल और फल झड़ने की रोकथाम
फूल और फल बनने के समय नमी बनाए रखें. 1% पोटेशियम नाइट्रेट और 0.5% जिंक सल्फेट का स्प्रे करें. गिबरेलिक एसिड (10 पीपीएम) का छिड़काव फलों की वृद्धि में सहायक होता है.
9. मल्चिंग और खरपतवार प्रबंधन
पौधों के चारों ओर खरपतवार हटाएं और 5 से 7 सेमी मोटी परत में मल्चिंग करें. मल्चिंग से मिट्टी में नमी बनी रहती है और खरपतवार नियंत्रित होते हैं.
10. फसल चक्र और अंतःफसल
फसल चक्र अपनाने से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है. नींबू के बाग में मटर, मूंग, उड़द या धनिया जैसी दलहनी फसलों की अंतःफसल करें.
11. फसल प्रबंधन
फलों को नियमित रूप से चुनें ताकि नई वृद्धि हो. फसल कटाई के समय फलों को सावधानी से तोड़ें ताकि शाखाएं न टूटें.
12. जलवायु और तापमान का ध्यान
नींबू को 25 से 35°C तापमान की आवश्यकता होती है. ठंढ और अधिक गर्मी से बचाव करें. ठंड से बचाने के लिए पौधों को प्लास्टिक या घास से ढकें.
13. प्रसंस्करण और विपणन
उपज बढ़ने पर फलों की सही कीमत पाने के लिए उचित विपणन रणनीति अपनाएं. प्रसंस्करण इकाइयों को फसल बेचकर अधिक लाभ कमाएं.