भारत में खेती के बाद पशुपालन आय का एक अच्छा स्त्रोत है. ग्रामीण भारत में लोग बड़े पैमाने पर गाय व भैंस को पालते हैं, जिससे उन्हें दूध तो मिलता ही है साथ में गोबर खाद के तौर पर इस्तेमाल में आ जाता है. देश में डेयरी फार्मिंग उभरता हुआ व्यवसाय है. वहीं हिंदू धर्म में गाय को पूज्यनीय माना गया है. देश में गाय की भी कई नस्लें पाई जाती हैं, ऐसे में आपको देसी गाय की उन उन्नत नस्लों की जानकारी होनी चाहिए, जिससे आपको अच्छा मुनाफा मिले.
देसी गाय की पहचान आसानी से की जा सकती है. उनका स्वभाव बेहद शांत होता है, गाय की पीठ में कूबड़ होता है. देसी गाय की श्रेणी में वैसे तो बहुत सी गायों का नाम शामिल हैं, लेकिन उनमें से उन्नत नस्ल कांकरेज, खिल्लारी व गाठी गाय की है.
खिल्लारी गाय
खिल्लारी नस्ल की गाय मूल रूप से कर्नाटक व महाराष्ट्र से ताल्लुक रखती हैं. इस गाय का रंग खाकी होता है, पूंछ छोटी व सीग लंबी होती है. खिल्लारी नस्ल की गाय का औसतन वजन 360 किलो होता है. यह गाय एक दिन में 7 से 15 लीटर तक दूध दे सकती है, तो वहीं इनके दूध में 4.2 फीसदी वसा होती है.
राठी गाय
राठी नस्ल की गाय मूल रूप से राजस्थान से ताल्लुक रखती है. इस गाय की दूध देने की क्षमता अधिक है, जिस कारण से यह गाय डेयरी फार्मर्स की पहली पसंद है. राजस्थान के राठस जनजाती से ही राठी नस्ल का नाम रखा गया. राठी नस्ल की गाय रोजाना 6 से 10 लीटर तक तो दूध देती है, यदि देखभाल व चारा अच्छे से दिया जाए तो यह गाय एक दिन में औसतन 15 से 18 लीटर दूध देने की क्षमता रखती है.
कांकरेज गाय
कांकरेज गाय भी राजस्थान से ही है, जो कि राज्य के दक्षिण- पश्चिमी भागों में पाई जाती है. कांकरेज गाय का मुंह दिखने में छोटा व चौड़ा होता है, इसके सींघ भी काफी विशाल होते हैं. वैसे तो यह गाय एक दिन में 6 से 10 लीटर तक दूध देती है, मगर चारे व पानी की उचित व्यवस्था कर दी जाए तो यह औसतन रोजाना 15 लीटर दूध दे सकती है.
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देसी गायों की नस्लों को उन्नत इसलिए भी माना जाता है, क्योंकि इनके दूध में स्वास्थ्य संबंधी हर समस्या का समाधान होता है. देसी गाय का दूध शरीर में हर बीमारी से लड़ने में कारगर है. तो वहीं दूध के अलावा गोबर व गौमूत्र भी फसलों के पोषण के लिए बेहद उपयोगी माना जाता है.