खुनी दस्त सामान्य दस्त से गंभीर होता है. जिसमें आंतों की म्युकस मेम्ब्रेन में सूजन हो जाती है. बता दें ये अधिक गर्मी, बुखार, अचानक तेज सर्दी तथा सड़ा – गला चारा खाने, दूषित पानी पीने से खूनी दस्त हो जाते हैं. इस रोग का मलाशय पर प्रभाव पड़ता है तथा पतला दस्त और खूनी बदबूयुक्त पेचिश की समस्या होती है.
इस रोग से ज्यादातर पक्षी, भेड़ बकरियां, कुत्ते बिल्लियां बछड़े-बछड़ियां प्रभावित होते हैं. यह आमतौर से चार माह से दो साल तक के बछड़ों को प्रभावित करता है. लाल पेचिश, खूनी पेचिश, खूनी दस्त, काक्सीडिया आदि इस रोग के अन्य नाम से जाने जाते हैं.
खूनी दस्त रोग का कारण – (Causes Of Bloody Diarrhea)
काक्सीडिया नामक प्रोटोजोआ इस रोग का प्रमुख कारण है तथा इसकी अलग-अलग जातियां हैं. छूतलगा चारा, पानी तथा चारागाह इस रोग को फैलाते हैं.
खूनी दस्त रोग के लक्षण – (Symptoms Of Bloody Diarrhea)
पशुओं में इस रोग के लक्षण निम्न प्रकार हैं –
1- पानी जैसे पतले, बदबूदार दस्त होते है जो श्लेष्म व रक्तयुक्त हो सकते हैं, इन दस्तों की शुरूआत अचानक होती है.
2- रक्त ताजा से लेकर गहरा थक्केनुमा हो सकता है
3- पूँछ पर रक्तयुक्त दस्त लगे हो सकते हैं.
4- मलत्याग के समय पशु जोर लगाता है जो विशिष्ट लक्षण होता है और मलत्याग के दौरान मलाशय बाहर भी आ सकता है.
5- रोगी प्राणी सुस्त व तनावग्रस्त हो जाता है.
6- शरीर मे पानी की कमी व कमजोरी आ जाती है.
खूनी दस्त रोग का उपचार – (Treatment Of Bloody Diarrhea)
1. बछड़े को सल्फोप्राइस की 1-2 टेबलेट दें.
2. सल्फाग्वानेडीन ,सल्फाग्वानेडीन की गोलियां, सल्फा बोलस की टेबलेट लें
3. पशु को मुँह द्वारा भी बोलस दे सकते हो,जैसे – NT-Zone बड़ें पशु को एक दिन मे दो बार ,छोटे बच्चो (बकरी बछड़ा ,भेड़ ) आधा बोलस दिन मे दो बार .
4. पशुओं के पास लाइकर अमोनिया फोर्ट 10 फीसदी का छिड़काव करें
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खूनी दस्त रोग की रोकथाम एवं बचाव – (Prevention Of Bloody Diarrhea)-
पशुओं में खुनी दस्त जैस बीमारी से बचाव करने के लिए निम्न बातों को ध्यान दें
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बछड़े के जन्म के समय बाड़ा सूखा एवं साफ होना चाहिए
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बाड़ों में गोबर इकट्ठा नहीं रहना चाहिए
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पशुओं के खाने-पीने के बर्तन साफ होने चाहिए.
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बाड़ों में हवा के आने-जाने का उचित प्रबन्ध होना चाहिए
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बछड़ों में दस्त होने की स्थिति में उनके बाड़ों को रोगाणुनाशक पदार्थों से साफ करना चाहिए एवं बछड़ों को नये साफ बाडे़ं में रखना चाहिए.
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बाड़े में बछड़ों की संख्या कम होनी चाहिए
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बीमार बछड़ों को अलग बाड़ें में रखकर उनका उपचार करना चाहिए
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बाड़ें में नए बछड़ों को लाने से पहले उन्हें कुछ समय अलग रखना चाहिए
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बछड़ों को जन्म के 12 घण्टें के भीतर कोलोस्टन्न्म/खींस अवश्य पिलाना चाहिए.
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