भारत में कई किसान भाई अतिरिक्त आय के लिए पशुओं को पालते हैं, जिनमें मवेशी, भैंस, बकरी, भेड़, घोड़ा आदि शामिल हैं. इस व्यवसाय से अच्छा मुनाफा प्राप्त करने के लिए जानवरों की मौसम से उचित देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता होती है. भारी बारिश, हवा और ओलावृष्टि से बचाने के लिए जानवरों को अच्छे व स्वच्छ आश्रय की जरूरत होती है. तो आइए आज के इस लेख में हम मौसम की मार (weather storm) से जानवरों को कैसे सुरक्षित रखा जाए इसके बारे में जानते हैं...
बारिश में पशुओं की देखभाल और प्रबंधन
टपकती छप्पर (leaky roof)
पशु के रहने वाले स्थान पर अगर पानी का रिसाव होता है तो यह आपके पशुओं के आराम को प्रभावित करेगा और अगर शेड पर्याप्त साफ नहीं रहता है तो ऐसी स्थिति में पानी अमोनिया जैसे रसायनों का उत्पादन करता है, जो कि शेड के अंदर पशुओं की आंखों पर तेजी से बुरा असर करता है. इसके चलते पशुओं को कोक्सीडियोसिस भी हो सकता है. इस मौसम में पशु पालकों को खुर सड़ने की बीमारी से बचने के लिए अपने खुरों (Hoof) को पानी से दूर रखना चाहिए.
अधिक नमी, बैक्टीरिया (Excess moisture, bacteria)
अक्सर आपने देखा होगा कि बरसात के मौसम में जमीन में नमी आ जाती है. बता दें कि जमीन पर मौजूद नमी बहुत सारे बैक्टीरिया (Bacteria) पैदा करती है जो बीमारियों का कारण बन सकते हैं. बरसात के मौसम में किसानों को कृमिनाशक की एक विस्तृत श्रृंखला का स्टॉक करना चाहिए. यदि कृमियों का समय पर उपचार नहीं किया गया तो यह पशुओं को बेहद प्रभावित करेगा. डी-वार्मिंग बरसात के मौसम की शुरुआत में और पूरे मौसम में किया जाना चाहिए क्योंकि इस समय कीड़े अधिक बढ़ जाते हैं.
बरसात के मौसम की घास (rainy season grass)
बरसात के मौसम में उगने वाली घास में पानी के साथ-साथ फाइबर भी बहुत होता है. पानी पेट को भर देता है और फिर यह पशु के पेट को खराब कर देता है. इससे जानवर गीले मौसम में पानीदार गोबर करते हैं. इसके बचाव के लिए है कि गाय को सही घास खिलानी चाहिए.
कीट समस्या (pest problem)
बारिश के मौसम में कीट तेजी से फैलते हैं. जिनसे ईस्ट कोस्ट नामक बुखार के कारण मवेशी की मृत्यु हो जाती है. मानसून के मौसम में मक्खियां भी अधिक संख्या में पाई जाती हैं, जिनमें से कुछ मक्खियाँ त्से त्से मक्खियों की तरह घातक होती हैं. ये मक्खियाँ मवेशियों में नागाना रोग फैलाने के लिए जानी जाती हैं, इलाज न किए जाने पर इससे पशुओं की मृत्यु हो सकती है.
उदर रोग (Abdominal disease)
बरसात के मौसम में पशुओं में थन के रोग की भी समस्या सबसे अधिक होती है. यह रोग मानसून के दौरान अस्वच्छ या गंदे शेड मास्टिटिस का कारण होते हैं, जिससे थनों में फाइब्रोसिस हो जाता है और दूध का स्राव या तो बंद हो जाता है या उसमें गुच्छे पाए जाते हैं, जो कि सही नहीं होता है.
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चारा गीला और फर्श की जांच (forage wetting and floor checking)
यदि टूटी हुई छत से बारिश के पानी के रिसाव के कारण चारा गीला हो जाता है, तो उसमें फफूंदी लग जाती है. अगर आप यही फफूंद युक्त चारा पशुओं को देते हैं तो इससे उन्हें कैंसर हो सकता है. इसके अलावा फिसलन वाले फर्श और कंकड़ वाले फर्श की जांच भी करनी चाहिए क्योंकि पत्थर मवेशियों के खुरों के बीच फंस जाते हैं और फिर बाद में उन्हें यह बेहद नुकसान पहुंचाते हैं.