कौशांबी के रहने वाले विवेक कुमार पटेल और मेरठ के रहने वाले सुशील चौहान ने बेसहारा बैलों से बिजली बनाने की अनोखी तरकीब ढूँढ निकाली है। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम तक़नीकी विश्विद्यालय में आयोजित हुए इस्टिट्यूट इनोवेशन काउंसिल की रीजनल मीट में बैल के बल से बिजली बनाने का प्रोटो टाइप मॉडल पेश किया गया।
ग्रासरूट में इस नवाचार को उत्तर-प्रदेश में दूसरा स्थान मिला है। प्रोटोटाइप का पेटेंट हो चुका है और मेरठ इस्टिट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (एमआईईटी) में इंक्यूबेशन फ़ोरम के माध्यम से इस नवाचार को धरातल पर लाने का प्रयास किया जा रहा है। बेसहारा गोवंश एक प्रमुख समस्या है। बैलों और दूध न देने वाली गायों को इनके पालक खुला छोड़ देते हैं। ऐसे में इस नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर इन गोवंशों से बिजली उत्पादन किया जा सकता है। विवेक और सुशील एग्रोफ़ार्म नाम से कम्पनी बनाकर जल्द ही इसे बाज़ार में ₹1 लाख में उतारने वाले हैं।
ऐसे बनेगी बिजली-
इस प्रोटोटाइप में एक डायनेमो को जोड़ा गया है। इसका डायमीटर 20 फ़ीट का है, जिसे दो चक्कर लगाने से 1450 से 1600 रेवोल्युशन प्रति मिनट (आरपीएम) की गति रहती है। दावा किया गया है कि इस तक़नीक से एक बैल एक घंटे घूमकर 15 यूनिट बिजली तैयार करेगा। अगर एक बैल दिन में 6 घंटे भी चलता है तो 90 यूनिट बिजली तैयार की जा सकती है। इस उपकरण को इस तरह तैयार किया गया है कि डायनेमो के साथ तैयार बिजली को बैट्री चार्ज करने या फिर घर के इस्तेमाल में कर सकते हैं। अतिरिक्त बिजली को ग्रिड के ज़रिये बेचा भी जा सकता है।
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गौशालाओं के लिए फ़ायदेमंद-
इस नवाचार को गौशालाओं के लिए लाभदायक माना जा रहा है। अगर एक बैल एक घंटे में 15 यूनिट बिजली बनाता है तो दस बैल छः घंटे में 900 यूनिट बिजली पैदा करेंगे। इस लिहाज से गौशालाओं की आय बढ़ेगी।