घोड़ा मनुष्य से सम्बंधित संसार का सबसे प्राचीन पालतू स्तनपोषी प्राणी है. यह काफी वफादार पशु है जो आज से नहीं बल्कि हमारे देश में प्राचीन काल से ही देश के कई राजघरानों में मौजूद है. पहले राजा-महाराजा घोड़ों का सबसे ज्यादा मात्रा में इस्तेमाल करते थे. जैसे-जैसे समय आगे बढ़ा जीवन सवारी के साधनों में बदलाव होता गया और गाड़ियों, रिक्शे आदि का चलन बढ़ता चला गया. बाद में गाड़ियों के बाद भी उनका लगाव घोड़ों के प्रति कम नहीं हुआ. बेहतर नस्ल वाले घोड़ों को फौज में इस्तेमाल किया जाने लगा. बता दें कि जो भी लोग घोड़े पालन का कार्य करते है और उनकी अच्छी तरह से देखरेख का कार्य करते है वह काफी अच्छी कमाई करते है. वह बेहतरीन नस्ल के घोड़ों को पालकर उनको घुड़सावरी के शौकीन, घोड़ों को खेल में आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं.
घोड़ा पालन का इतिहास (History of Horse breed)
घोड़े को पालतू बनाने का इतिहास काफी अज्ञात है. कई लोगों का मत है कि सात हजार वर्ष पूर्व दक्षिणी रूस के पास आर्यों ने पहली बार घोडा पालन का कार्य शुरू किया था. बाद में इस बात को कई लेखकों और विज्ञानवेताओं ने इसके आर्य से जुड़े इतिहास को गुप्त रखा. वास्तविकता यही है कि अनंतकाल पूर्व हमारे पूर्वजों आर्यों ने इस घोड़ें को पालतू बनाने का कार्य किया. बाद में यह एशिया महाद्वीप से यूरोप तक और फिर बाद में अमरीका तक फैला. घोड़ों के इतिहास पर लिखी गई प्रथम पुस्तक शालिहोत्र है जिसे शलिहोत्र ऋषि ने महाभारत काल के समय पूर्व लिखा था. भारत में लंबे समय से अनिश्चिकाल से देशी अश्व चिकित्सक को शलिहोत्री कहते है.
घोड़े की नस्लें (Horse Breeds)
घुड़सवारी को एक अंतराष्ट्रीय खेल का दर्जा मिला हुआ है. अगर हम भारत में घोडा पालन की बात करें तो घोड़ों का पालन अधिकतर राजस्थान, पंजाब, गुजरात, और मणिपुर में किया जाता है. देश में इन घोड़ों की अलग-अलग नस्लें पाई जाती है. अगर अव्वल दर्जे के घोड़े की बात करें तो मारवाड़ी और कठियावाड़ी को अव्वल दर्जे का घोड़ा कहा गया है
मारवाड़ी घोड़ा-
इस घोड़े का इस्तेमाल राजाओं के जमाने में युद्द में किया जाता था. इसलिए कहावत है कि घोड़ों के शरीर में राजघरानों का लहू दौड़ता है. राजस्थान के मारवाड़ में इस नस्ल के बहुतायत घोड़े पाए जाते है. इन घोड़ों की लंबाई 130 से 140 सेमी और ऊंचाई 150 से 160 सेमी तक होती है. इन घोड़ों का इस्तेमाल खेल प्रतियोगिताओं, सेना के युद्धों, और राजघरानों की शान को बढ़ाने के लिए करते है.एक घोड़ा कई लाक तक कीमत में बिकता है.
कठियावाड़ी घोड़ा-
इस घोड़े का जन्मस्थली गुजरात का सौराष्ट्र इलाका माना जाता है.इस घोड़े की नस्ल काफी बढ़िया मानी जाती है.इसका रंग ग्रे और गर्दन लंबी होती है. यह घोड़ा 147 सेमी ऊंचा होता है. गुजरात राज्य के जूनागढ़, कठियावाड़ और अमरेली में यह घोड़ा पाया जाता है.
स्पीती घोड़ा-
यह घोड़ा पहाड़ी क्षेत्रों के लिए बेहतर माना जाता है. यह ज्यादातर हिमाचल प्रदेश के इलाकों में पाया जाता है. इस नस्ल के घोड़े ऊंचे पहाड़ी इलाकों में काफी बेहतर तरीके से कार्य करते है.
मणिपुरी पोनी घोड़ा-
इस किस्म के घोड़े को भी काफी अच्छा माना गया है. इस नस्ल के घोड़े काफी ताकतवर और फुर्तीले होते हैं.इस नस्ल के घोड़े का इस्तेमाल अधिकतर युद्ध और खेल के लिए किया जाता है.यह एक ऐसा घोड़ा है जो कि अलग-अलग रंगों में पाया जाता है.
भूटिया घोड़ा-
यह घोड़ा सिक्किम और पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में पाया जाता है. इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से दौड़ और ढोने में किया जाता है.
कच्छी सिंध घोड़ा-
इस नस्ल के घोड़े को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने कच्छी -सिंधी घोड़े को सातवीं नस्ल के रूप में पंजीकृत कर दिया है. यह घोड़ा गर्म और ठंडे दोनों वातावरण को सहन कर आसानी से जीवित रह सकता है. घोड़े की इस नस्ल को अपने धैर्य स्तर के लिए पहचाना जाता है. इस घोड़े की कीमत 3 लाख से 14 लाख रूपये के बीच होती है.
इन सभी नस्लों में मारवाड़ी, कठियावाड़ी और मणिपुरी घोड़े की नस्ल बेहतर मानी जाती है. इसीलिए इनका वाणिज्यिक पालन किया जा रहा है. इसके अलावा भारतीय घोड़े का निर्यात भी किया जाता है.
घोड़ापालन ऐसे करें (How to do Horse husbandry)
अगर आपके पास पर्याप्त मात्रा में भूमि उपलब्ध है तो आप अपनी संपत्ति में घोडा पालन का आनंद उठा सकते है. घोड़ा एक बुद्धिमान और भावुक पशु होता है.इसीलिए घोड़ा पालन करना जितना सरल है वह उतना ही जिम्मेदारी से भरा कार्य भी है. घोड़ापालन का अर्थ है- साल के 365 दिन घोड़े की देखभाल करना, निरीक्षण करना, साफ-सफाई करना, खाना-खिलाना और उससे जुड़ी समस्याओं का समाधान करना. ऐसे में अगर आपने घोड़ा पाल रखा है और आप कही दो -चार दिन या सप्ताह के लिए बाहर जा रहे है तो आपको घोड़े के लिए किसी अनुभवी और जरूरतमंद व्यक्ति की नियुक्ति करके जाना चाहिए. आपको घोड़े हेतु पर्याप्त चारे की व्यवस्था करनी होगी.
जीवनकाल (Life Spam)
घोड़ा का जीवनकाल 25 से 30 वर्ष तक का ही होता है. एक औसत घोड़ा पांच से छह साल की अवधि में प्रजनन तक तैयार होता है. उससे पहले उसकी सवारी नहीं करना चाहिए. क्योंकि उसकी कंकाल और हड्डियां पूरी तरह से विकसित नहीं होता है. रेस में दौड़ने वाले घोड़ों पर आमतौर पर 1.5 वर्ष में सवारी को शुरू कर देना चाहिए. कुछ घोड़े समय के साथ कई बार अपाहिज हो जाते है और कई को 3 वर्ष की आयु तक मार दिया जाता है.
घोड़े का भोजन (Horse Food)
घोड़ा अपने वजन का 1 प्रतिशत से ज्यादा घास खा सकता है. अगर आपके पास युवा और पौष्टिक घोड़े है तो आप वर्षभर विभिन्न प्रकार का चारा उगता है तो आप घोड़े को ताजा और सूखी घास दे सकते है. इसमें घास, दूब, लोबिया, ब्रासिका आदि है. घोड़ों के पोषण को पूरा करने के लिए भूसी, चुंकदर, पेलेट मिक्स, जई, बाजरा, कटी हुई घास और विटामिन का प्रयोग तब किया जाता है जब आप घोड़ों का वजन बढ़ाना चाहते है. बूढ़े, चोटिल घोड़े को अधिक विटामिन की जरूरत पड़ती है. इसके अलावा जई की घास भी बड़े घोड़ों और घोड़ियों की प्रारंभिक गर्भावस्था के लिए उपयुक्त चारा है. घोड़ों के कुल आहार में नाइट्रेट का स्तर 0.5 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिए.
घोड़ो का रहन सहन (Horse lifestyle)
घोड़ों के लिए अस्तबल और एक पर्याप्त आश्रय स्थान होना जरूरी होता है. उनके लिए हमें एक सुरक्षित, एक बाहरी आश्रय, एक चारागाह और एक ठहरने का स्थान, विभिन्न प्रकार का चारा रखने के लिए और तैरीके लिए एक या दो अलग कमरे, घोड़ों के लिए दवाएं और प्राथमिकता चिकित्सा किट रखने के लिए एक कमरे और विशेष मेड़ की जरूरत होती है ताकि हमारे घोड़े बाहर न निकले. घोड़े के लिए ऐसा स्थान तैयार करे जो कि बारिश और धूप से हर तरह से बच सकें. घोड़े की कोठरी में बिस्तर के रूप में लकड़ी के बुरादे का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. प्रत्येक घोड़े के पालन हेतु 170 वर्ग फीट स्थान की जरूरत है. कोठरी हवादार और साफ़ सुथरी होनी चाहिए.कोठरी ऐसी तैयार होती है जिसकी आधी खिड़की खुली होती है और उसमें मुख्य दरवाजा होता है.
घोड़ें की देखभाल (Horse care)
घोड़ापालक को चाहिए कि आपका घोड़ा हमेशा स्वस्थ रहे. इसीलिए उसके इलाज से संबंधित पशु-चिकित्सक का नंबर आपके पास हर वक्त मौजूद होना चाहिए. यदि वह वक्त पर नहीं आ सकता है तो उसके मार्गदर्शन में आप घोड़े की देखभाल कर सकते है. इसके लिए आपके पास अस्तबल में सूखी और साफ अलमारी होनी चाहिए जहां पर चिकित्सा सहायक किट और दवाओं को रखा जा सके . इसके अलावा आपको घोड़ों के स्वस्थ्य की नियमित जांच करानी चाहिए. घोड़ों के रोग की पहचान का सीधा लक्षण है कि वह सीधे खड़ा नहीं हो पाता, पूरे दिन सोना और कुछ घंटो तक ना खा पाना. घोड़ों को पशु चिकित्सकों से नियमित टीका भी लगवाना चाहिए. घोड़े अक्सर मक्खी और कीड़े आदि से परेशान होते है जो घोड़ों की आंख के पास मंडराते रहते है. आप पर्याप्त मात्रा में विभिन्न रंगों और आकार के फ्लाई मास्क को घोड़ो को पहना सकते हैं. इसके जरिए वह अच्छे से देख पाते हैं और उनकी आंखों को काफी सुरक्षा मिलती है.