होल्स्टीन फ़्रिजीशियन गाय का इतिहास बहुत पुराना है. बता दें, लगभग 2000 साल पहले होल्स्टीन फ़्रिजीशियन गाय नीदरलैण्ड में देखी गई थी. यह वीटाविनस ( काली रंग की गाय) और एफ.आर. आई.ई.एन.एस.( सफ़ेद रंग की गाय) के क्रॉस या संकरण से उत्पन्न हुई है. इस गाय की प्रजाति 1861 में नीदरलैण्ड से पहली बार अमेरिका लाया गया था.
बता दें, अमेरिका में गायों के संरक्षण के लिए 1885 में एच.एफ. एसोएसन ऑफ अमरीका की स्थापना हुई. इस एच.एफ. एसोएसन के पहले से यानी 1940 में होल्स्टीन फ़्रिजीशियन गायों की संख्या बढ़ाने के लिए अतिहिमकृत बीज (स्पर्म) का इस्तेमाल करने की कोशिश की जाने लगी. 1994 हॉलिस्टीन एसोशियेशन यू.एस.ए. बना जिसका मुख्य उद्देश्य होल्स्टीन गायों की जातियों का संरक्षण करना था. बता दें इस समय तक एक हॉलिस्टीन गाय (नर पशु या सांड़) के पूरे जीवन काल में 50,000 को गर्भित किया जाने लगा था. लेकिन मौजूदा समय की बात की जाए तो वैज्ञानिकों ने ऐसा वीर्य उपलब्द्ध कर लिया है जिससे केवल ए2 केसिन वाली होल्स्टीन बछिया ही पैदा होंगी।
भारत में अधिकतर 3 या 4 चार होल्स्टीन गायों की डेयरियां पाई जाती हैं। अपने देश में दूध उत्पादन अग्रणी राज्य उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात और आंध्र प्रदेश हैं. लेकिन गायों के अपेक्षा पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा ज्यादातर दूध उत्पादन भैस से होता है.
भारत की देसी गाय 2 से 3 लीटर औसतन दूध उत्पादन करती है। वहीं होल्स्टीन जैसी गाय औसतन 30-50 लीटर दूध प्रतिदिन दे देती है.
होल्स्टीन फ़्रिजीशियन गाय को पालकार एक किसान अपनी अच्छी बचत कर सकता है, सबसे बड़ी खास बात इसमें यह है कि इस प्रजाति की गाय भारत, इजराइल तथा अरब की भीषण गर्मी को भी सहन करने की क्षमता रखती हैं. इनके ऊपर मौसम का भी प्रभाव पड़ता है लेकिन देखा जाता है कि पंजाब, उत्तराखण्ड, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तथा बंग्लूर जैसे गर्म क्षेत्रों में 30-40 लीटर दूध देने में समर्थ होती हैं.
भारत जैसे देश में इन गायों को रखने के लिए विशेष आवास की व्यवस्था भी नहीं करनी पड़ती है क्योंकि इस प्रजाति की गाय 0 डिग्री सेंटीग्रेट से 25 डिग्री सेंटीग्रेट में आसानी से रह लेती हैं, बस इनकों धूप से बचाना पड़ेगा।
बता दें इस प्रजाति की गाय थनैला, खुरपक, मुँहपक, गर्भपात, अधिक गर्मी, अधिक आंर्द्रता तथा आंत्रिक तथा वाहय परजीवी से देशी गायों की तुलना में अधिक प्रभावित होती है यही कारण है की इन्हे समय-समय पर टीकाकरण करवाना पड़ता है.