Shree Anna Yojana: भारत के जो भी किसान मोटे अनाज की खेती करते हैं, उनकी गरीबी दूर करने के साथ साथ आमदनी में वृद्धि करने के लिए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 2023-24 के आम बजट में ‘श्री अन्न’ योजना (Shree Anna Yojana) की घोषणा की थी. भारत सरकार ने श्री अन्न (मोटे अनाज) योजना किसानों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करेगी साथ ही साथ आम नागरिकों के स्वास्थ्य को भी दुरुस्त रखने का काम करेगी.
इस योजना का मुख्य उद्येश्य भारत को श्री अन्न का हब बनाने एवं इसके उत्पादन को बढ़ावा देने का है. इससे मोटे अनाज का निर्यात भी बढ़ेगा जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर होगी.
ये हैं मोटे अनाज वाली फसलें
आपको बता दें, मोटे अनाज वाली फसलों में ज्वार, बाजरा, रागी, सावां, कौनी, चीना कोदो, कुटकी और कूटू को श्री अन्न मिलेट्स कहा जाता है. इन मिलेट्स को सुपर फूड के नाम से भी पहचाना जाता है, क्योंकि इनमे पोषक तत्व की काफी अच्छी मात्रा होती है. भारतीय मिलेटस अनुसंधान संस्थान के अनुसार प्रति 100 ग्राम रागी में 364 मिलिग्राम तक कैल्शियम होता है. इसमें आयरन की मात्रा भी गेहूँ और चावल से ज्यादा होता है. मिलेट्स क्रॉप को कम पानी की जरूरत होती है. बाजरा जैसे माटे अनाज की फसल के एक पौधे को पूरे जीवनकाल में 350 मिलीमीटर पानी चाहिए होता है. जहां दूसरी फसलें पानी की कमी होने पर खराब हो जाती है, वही मोटे अनाज की फसल खराब होनी की स्थिति में भी पशुओं क चारे के काम आ सकती है.
ये भी पढ़ें: फसल में आग लगने पर घबराएं नहीं, झट से करें ये काम, सरकार की इस योजना से हो जाएगी पूरी भरपाई
मोटे अनाज का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष
भारत सरकार के प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2023 को मोटे अनाज का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया था. जिससे भारत के साथ साथ पूरे विश्व में मोटे अनाजों को लेकर जन जागरूकता तेजी से फैल रही है. भारत सहित कुछ देशों में मोटे अनाजों का पहले से ही उपयोग किया जाता रहा है, लेकिन कृषि में नए-नए अनुसंधान और खाद्य पदार्थों के प्रति रुचि में आए परिवर्तन से मोटे अनाजों की लोकप्रियता में कमी आ गई थी. लेकिन जब से संयुक्त राष्ट्र संघ ने मोटे अनाज का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया है, इसके प्रति जन जागरूकता बढ़ रही है और आने वाले समय में निश्चित ही वैश्विक स्तर पर मोटे अनाजों के खाद्य पदार्थ लोकप्रियता के शिखर को अवश्य छुएंगे.
पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा
श्री अन्न (मोटा अनाज) कुपोषण दूर करने मे महतवपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. भारत के लोगो में आइरन और जिंक सहित अन्य पोषक तत्वों की कमी होने से कुपोषण की समस्या हो जाती है, जिसे दूर करने में श्री अन्न बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. भारत में आज लगभग 50 फीसदी जनसंख्या (इनमे 61 फीसदी गर्भवती महिलाएं है) में आयरन की कमी देखी जाती है. जीवन शैली, दिनचर्या और खान-पान के कारण भारत सहित पूरे विश्व में मोटापा, मधुमेह, रक्तचाप, हृदय और पाचन संबंधी रोगों के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. भारत के संदर्भ में बात करें तो ये रोग अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी पैर पसारने लगे हैं. कुछ दशक पहले ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह के रोगियों की संख्या नगण्य हुआ करती थी. इसका एक प्रमुख कारण मोटे अनाजों का भोजन में उपयोग करने के साथ नियमित दिनचर्या भी थी. मोटे अनाजों में प्रोटीन, कैल्शियम व अन्य पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं, जिसके कारण अनेक बीमारियों से बचाव होता है.
योजना के लिए 2000 करोड़ का प्रावधान
भारत सरकार ने श्री अन्न योजना के कार्यान्वयन के लिए 2000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है. हैदराबाद स्थित भारतीय बाजरा अनुसंधान केंद्र को उत्कृष्ट केंद्र के रूप में विकसित करने का योजना प्रस्तावित है. भारत सरकार देश को श्री अन्न का हब बनाने की दिशा में व्यापक तैयारी कर रही है. इसमें भारतीय बाजरा अनुसंधान केंद्र की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. मोटे अनाजों की उन्नत किस्मों के साथ उत्पादन बढ़ाने के लिए भी अनुसंधान कार्य किए जा रहे हैं. इस केंद्र से देश के राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ए बिहार सहित 14 राज्यों को तकनीकी सहायता मिल रही है. सरकार ने इंटरनेशनल मिलेट इंस्टीट्यूट स्थापित करने की भी घोषणा की है. इससे आदिवासी और सूखा प्रभावित क्षेत्रों में विशेष फायदा होने की संभावना है.
भारत दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक
भारत विश्व में मोटे अनाज का अफ्रीका के बाद दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है. भारत से अमेरिका, लीबिया, संयुक्त अरब अमीरात, नेपाल, सऊदी अरब, ओमान, यमन, इंग्लैंड आदि देशों को मोटे अनाज का निर्यात किया जाता है. भारत में हरित क्रांति के बाद गेहूं और चावल भोजन का प्रमुख हिस्सा बन गए हैं जिससे परंपरागत रूप से उपयोग में किए जाने वाले मोटे अनाजों बाजरा, ज्वार, रागी, कोदो, कुटकी, कंगनी, सांवा आदि भोजन की थाली से लगभग गायब हो गए. इस कारण मोटे अनाज का रकबा भी कम होता गया. सरकार भी मोटे अनाज के उत्पादन को बढ़ावा देने के साथ भोजन में उपयोग करने के लिए प्रयास कर रही है. संचार माध्यमों की पंहुच अब देश के प्रायः सभी लोगों तक हो गई है. मोबाइल नेटवर्क भी देश के सुदूर इलाकों तक पहुंच गया है. ऐसी स्थिति में श्री अन्न योजना का व्यापक प्रचार-प्रसार होने की उम्मीद है. बाजारों में इस समय इन उत्पादों की मांग तो है लेकिन मूल्य भी अधिक होने के कारण उपभोक्ता चाह कर भी मोटे अनाजों का उपयोग करने से हिचकिचाते हैं. पैदावार बढ़ेगी तो निश्चित ही मूल्यों में गिरावट आने की संभावना है. इसलिए सरकार मोटे अनाजों का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करें तो निश्चित ही किसान मोटे अनाजों की खेती करने के लिए प्रोत्साहित होंगे.
मिलेटस की मांग बढ़ने से किसानों को फायदा
शासकीय कैंटीन और होटलों के साथ सभी शासकीय आयोजनों में अनिवार्य रूप से मोटे अनाजों को जलपान और भोजन में शामिल करना चाहिए. मोटे अनाजों के सह उत्पाद बनाने के लिए स्टार्टअप को भी प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है. इन प्रयासों से एक ओर जहां किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी वहीं दूसरी ओर देश के किसानों के साथ-साथ नागरिकों की स्वास्थ्य भी अच्छी होगी. मिलेटस की मांग बढ़ने से किसानों को भी फायदा होगा उन्हें अपनी उपज की अच्छी कीमत मिलेगी.