लीची की फसल (Litchi Crops) पर लगने वाले विभिन्न प्रकार के कीटों और रोगों से लीची के बागान मालिक अकसर परेशान रहते हैं. उनका परेशान रहना स्वाभाविक भी है, क्योंकि फल इन कीटों के प्रभावों में आकर नष्ट हो जाते हैं. अगर आप भी लीची पर लगने वाले कीटों एवं रोगों से परेशान हैं, तो ये लेख आपके लिए है. इस लेख के माध्यम से हम आपको बताएंगें कि कैसे प्रभावी प्रबंधन कार्य कर आप इस समस्या से छुटकारा पा सकते हैं.
लीची पर लगने वाले विभिन्न प्रकार के कीटों और रोगों से लीची के बागान मालिक अकसर परेशान रहते हैं. उनका परेशान रहना स्वाभाविक भी है, क्योंकि फल इन कीटों के प्रभावों में आकर नष्ट हो जाते हैं. अगर आप भी लीची पर लगने वाले कीटों एवं रोगों से परेशान हैं, तो ये लेख आपके लिए है. इस लेख के माध्यम से हम आपको बताएंगें कि कैसे प्रभावी प्रबंधन कार्य कर आप इस समस्या से छुटकारा पा सकते हैं.
दवाओं का अधिक उपयोग हानिकारक (Overuse of drugs harmful)
कीटों को नष्ट करने के लिए कीटनाशकों का छिड़काव किया जाता है. कीटनाशक बनाने वाली कीटनाशक कंपनियां भी अपने मुनाफे के लालच में हमें कभी ये नहीं बताती कि इसके क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं. इन कीटनाशकों के अधिक उपयोग से पर्यावरण प्रदूषित तो होता ही है, साथ ही उपयोगी परजीवी और परभक्षी जीवों का नाश भी हो जाता है. आसान भाषा में समझाया जाए, तो दवाओं का अधिक उपयोग आपके उपज को कम करने के साथ ही उन्हें विषैला बनाता है. चलिए अब कुछ प्रमुख कीटों के बारे में जानते हैं.
छाल खाने वाले कीड़े (bark-eating insects)
छाल खाने वाले कीड़ों की पहचान आसान है, आकार में बड़े होने के कारण आप इसे आसानी से देख सकते हैं. इन कीटों को मुख्य रूप से वृक्षों के छाल पर देखा जा सकता है, जहां वो उन्हें खाकर वृक्ष को कमजोर कर देते हैं. इन कीटों की रोकथाम जरूरी है, क्योंकि मोटे धड़ों और शाखाओं में भी छेदने में ये अधिक दिन नहीं लगाते. दिन की अपेक्षा इन्हें रात में बाहर निकलना पसंद है, आप ध्यान से देखेंगें तो पाएंगें कि अपने बचाव के लिए ये टहनियों के ऊपर विष्ठा और छाल के बुरादो को जोड़कर जालों का निर्माण करते हैं.
रोकथाम
इन कीटों को नष्ट करने का सबसे आसान तरीका तो यही है कि तने और टहनियों पर लगे जालों को साफ कर दिया जाए. इसके अलावा प्रत्येक छिद्र में तार डालकर उन्हें खुरेचकर साफ कर देना भी अच्छा उपाय है.
छिद्र को तार या किसी अन्य माध्यम से साफ करने में यदि आप असमर्थ हैं तो दूसरे उपाय किए जा सकते हैं. मिट्टी तेल, पेट्रोल, फिनाइल या नुवान 5.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल से भीगाकर रूई के माध्यम से छेदों में ठूस दें. इसके बाद छिद्रों के ऊपर गीली मिट्टी या गोबर का लेप लगा दें. वैसे सबसे अच्छा तो यही है कि आप इन कीटों को वृक्षों पर लगने की नौबत ही न आने दें, इसके लिए बगीचों की साफ-सफाई जरूरी है.
पत्ती काटने वाले सूँडी (leaf caterpillar)
इन कीटों को इनके रंग के आधार पर पहचाना जा सकता है. यह कीट आकार में बड़े होने के साथ ही चांदी जैसे चमकदार रंग के होते हैं. इनका आक्रमण पत्तियों पर होता है, पुरानी पत्तियों को बाहर से काटते हुए ये उन्हें पूरा फाड़ देते हैं. लीची के लिए इन कीटों का होना सबसे अधिक घातक है.
रोकथाम
बागों में वर्षा के बाद खेतों की जुताई होनी जरूरी है. ध्यान रहे कि इस दौरान ये कीड़े घास-पात आदि के सेवन से अपना गुजारा करते हैं, ऐसे में पहले घास आदि को हटाया जाना चाहिए. छोटे पौधों पर अगर इन कीटों ने कब्जा किया है, तो आप आराम से टहनियों को हिलाकर इन्हें जमीन पर गिरा सकते हैं. जमीन पर इन्हें इकट्ठा कर इन्हें आग लगाकर नष्ट कर दें.
इसके अलावा आप हर कुछ दिनों के अंतराल पर नीम आधारित रसायनों या नीम बीज अर्क का छिड़काव कर सकते हैं. अगर इनका प्रकोप नियंत्रण से बाहर हो रहा है तो आप कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी 2.0 ग्राम प्रति लीटर या नुवान 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर का छिड़काव कर सकते हैं.
टहनी छेदक कीट (twig borer insect)
इस तरह के कीट वृक्ष के नई कोपलों की मुलायम टहनियों पर आक्रमण करते हैं. टहनियों के अंदर प्रवेश कर उसे भीतर खोखला करते हुए ये पेड़ों को कमजोर कर देते हैं. फलस्वरूप टहनियां मुरझाना शुरू कर देती है और फलों का विकास रूक जाता है.
आप गौर से देखेंगें तो पाएंगे कि इस तरह के कीड़े नई टहनियों में जगह-जगह छिद्र बनाकर उसके अंदर रहते हैं. टहनियों को तोड़ने या चीरने से भी आपको ये अंदर नजर आ जाएंगें.
रोकथाम
सबसे पहले तो प्रभावित सभी टहनियों को तोड़कर जला देना उत्तम है. कीड़ों के प्रकोप को कम करने के लिए नीम स्प्रे का छिड़काव कर सकते हैं. अगर स्थिति तीव्रता के साथ खराब हो रही है, तो कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी दो ग्राम प्रति लीटर का छिड़काव करना फायदेमंद है.
मकड़ी वाला कीड़ा (spider worm)
लीची पर मकड़ी वाले कीड़े भी खूब लगते हैं, लेकिन ये अत्यंत सूक्ष्म होने के कारण नज़र नहीं आते. आप बहुत ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि मकड़ी वाले कीड़ों का शरीर बेलनाकार होता है एवं इनके चार जोड़े पैर होते हैं. इनका प्रकोप नवजात और वयस्क दोनों लीचियों पर पड़ता है. कोमल पत्तियों की निचली सतह, टहनी और पुष्पवृंत इनका मुख्य आहार है.
इनके प्रकोप के कारण निचली सतह पर मखमली रूआंसा (इरिनियम) निकल आते हैं, जिसके प्रभाव में पत्तियों पर गड्ढे आ जाते हैं.
रोकथाम
दिसंबर से जनवरी के माह में प्रभावित टहनियों को अलग कर जला देना चाहिए. डायकोफॉल या केलथेन 3.0 मिलीलीटर प्रति लीटर का एक छिड़काव कर सकते हैं. इन कीटों से छुटकारा पाने के लिए साफ-सफाई का ध्यान रखें.
पत्ता काटक (leaf cutter)
जैसा कि नाम से ही प्रतीत हो रहा है, इन कीटों का सीधा आक्रमण पत्तों पर होता है. मुलायम पत्तियों पर ये कीड़े रेशमी धागे छोड़कर उसे लंबवत लपेट लेते हैं. इसके बाद उन्हें अंदर ही अंदर आहार बनाना शुरू कर देते हैं. इनके प्रभाव में आकर पत्तियां समय से पूर्व ही सूखने लगती है और उपज कम होता है.
रोकथाम
प्रभावित पत्तियां कम हो तो हाथ से तोड़कर ऐसी पत्तियों में आग लगा दें. यदि कोपलों पर आक्रमण हो तो कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी 2 ग्राम प्रति लीटर घोल का छिड़काव कर सकते हैं. ध्यान रहे कि छिड़काव एक अंतराल के बाद ही किया जाना चाहिए, वैसे 7 से 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना उचित है.
सुरंगक कीट (tunnel insect)
सुरंगक कीट आकार में बहुत छोटा लेकिन लंबा होता है. इस प्रजाति की मादा कीट कोमल पत्तियों की निचली सतह पर ही अंडे देती है. धीरे-धीरे ये पत्तों के निचले सतह को खाकर आगे बढ़ते हुए मध्य सिरे से उसमें सुरंग का निर्माण करते हैं. इनके प्रभाव में आकर पत्तियां सूख जाती है. पौधों को देखने पर वो झुलसे हुए प्रतित होते हैं.
रोकथाम
लीची में नीम आधारित रसायनों या नीम बीज अर्क का प्रयोग कर सकते हैं. कीटों को मारने के लिए पौधों पर कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी 2.0 ग्राम प्रति लीटर का छिड़काव कर सकते हैं. अगर हालात अधिक खराब है तो नुवान 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी को घोलकर भी छिड़क सकते हैं.