मिर्च एक नकदी फसल होती है. जिसकी खेती से अधिक लाभ कमाया जा सकता है.यह हमारे भोजन का एक अहम हिस्सा है. अगर स्वास्थ्य की दृष्टि से देखा जाये, तो यह हमारे शरीर के लिए काफी फायदेमंद है, क्योंकि इसमें विटामिन ए, सी फॉस्फोरस, कैल्शियम समेत कई कुछ लवण पाये जाते है. भारतीय घरों में मिर्च को अचार, मसालों और सब्जी की तरह उपयोग किया जाता है.
किसान भाईयों को बता दें कि सब्जी के लिए शिमला मिर्च, सलाद के लिए हरी मिर्च, अचार के लिए मोटी लाल मिर्च और मसालों के लिए सूखी लाल मिर्च की खेती करते है. हरी मिर्च की खेती वैज्ञानिक तकनीक से की जाए तो इसकी पैदावार अधिक हो सकती है. भारत में हरी मिर्च का उत्पादन आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उड़ीसा, तामिलनाडु और राजस्थान में किया जाता है. हरी मिर्च में कैप्सेइसिन रसायन होता है. जिसकी वजह से इसमें तीखापन रहता है. आज हम इस लेख में हरी मिर्च की उन्नत खेती की जानकारी दे रहे है.
जलवायु (Climate)
हरी मिर्च की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु अपयुक्त रहती है. वैसे इसकी खेती हर तरह की जलवायु में हो सकती है. तो वहीं इसके लिए ज्यादा ठंड व गर्मी दोनों ही हानिकारक होते है. इसके पौधे को करीब 100 सेन्टीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाया जा सकता है. इसके अलावा हरी मिर्च की फसल पर पाले का प्रकोप अधिक होता है.
उपयुक्त मिट्टी (Suitable soil)
हरी मिर्च की फसल को सभी प्रकार की भूमि पर उगाया जा सकता है. ध्यान रहे कि खेत में अच्छे जल-निकास हो सके. साथ ही जीवांशयुक्त दोमट या बलुई मिटटी उपुयक्त होती है, जिसमें कार्बनिक पदार्थ की मात्रा अधिक हो.
खेत की तैयारी (Field preparation)
सबसे पहले भूमि को करीब 5 से 6 बार जोतकर और पाटा फेरकर समतल बना लें. ध्यान रखें कि जुताई करते वक्त गोबर की अच्छी पकी हुई खाद करीब 300 से 400 क्विंटल मिला देनी चाहिए. इसके बाद उचित आकार के क्यारियाँ बना लेते हैं.
उन्नत किस्में (Advanced varieties)
किसान भाईयों को अपने क्षेत्र की अधिकतम पैदावार वाली किस्म का चयन करना चाहिए. ध्यान रहे कि किस्मों में विकार रोधी क्षमता होनी चाहिए. हरी मिर्च की उन्नत फसल तभी संभव है. जब खेत में उचित प्रबंधन, अनुकूल जल व मिटटी होगी.
नर्सरी व रोपाई का समय (Nursery and Transplanting Time)
बता दें कि नर्सरी की लंबाई करीब 10-15 फुट और चौड़ाई करीब 2.33-3 फुट से ज्यादा न हो, साथ ही पौधशाला की ऊंचाई करीब 6 इंच तक रखनी चाहिए. इसके बाद गहरी नाली बना लें, जोकि करीब 5-10 सेंटीमीटर के अन्तर 2-2.5 सेंटीमीटर गहरी हो. इसमें बीज बोए. ध्यान रहे कि बीज की बुवाई कतारों में ही करें. जिसका फासला करीब 5-7 सेंटीमीटर तक होना चाहिए. इसके अलावा पौधशाला के लिए उचित जल निकास, पेड़ के लिए छाया रहित भूमि होनी चाहिए. इसी के साथ पौधशाला को पाले से बचाने के लिए अच्छा प्रबंध करना चाहिए.
नर्सरी की देखभाल (Nursery care)
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जरुरत के हिसाब से पौधशाला में फव्वारें से पानी देते रहना चाहिए.
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गर्मियों में दोपहर के बाद एक दिन के अंतर पर पानी छिड़ देना चाहिए, क्योंकि गर्मी के मौसम में एग्रो नेट का प्रयोग करने से भी भूमि में नमी जल्दी उठ जाती हैं.
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वर्षा के लिए जल निकास की व्यवस्था होनी चाहिए.
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इसके अलावा क्यारियों में से घास कचरा साफ करते रहना चाहिए.
सिंचाई व निराई-गुड़ाई (Irrigation and weeding)
हरी मिर्च की खेती में पहली सिंचाई पौध प्रतिरोपण के बाद कर देनी चाहिए. अगर गर्मियों का मौसम है, तो हर 5 से 7 और सर्दी का मौसम है, तो करीब 10 से 12 दिनों में फसल को सींचना चाहिए. फसल में फूल व फल बनते समय सिंचाई करना जरुरी है. अगर इस वक्त सिंचाई नहीं की जाए, तो फल व फूल छोटी अवस्था में गिर जाते हैं. ध्यान रहे कि मिर्च की फसल में पानी का जमाव भी न हो.
फल तोड़ाई (Fruit harvesting)
हरी मिर्च के लिए तोड़ाई फल लगने के करीब 15 से 20 दिनों बाद कर सकते हैं. पहली और दूसरी तोड़ाई में करीब 12 से 15 दिनों का अंतर रख सकते है. फल की तोड़ाई अच्छी तरह से तैयार होने पर ही करनी चाहिए.
पैदावार (Yield)
अगर वैज्ञानिक तरीके से खेती की जाए, तो इसकी पैदावार तकरीबन 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और 15 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सूखी लाल मिर्च प्राप्त की जा सकती है.