जायद सीजन की खीरा मुख्य फसल है. खीरा की खेती (Cucumber Cultivation) से अधिक उपज चाहिए, तो खेती के दौरान हानिकारक कीटों व रोगों का नियंत्रण करना आवश्यक है. वैसे तो खीरा फसल को बहुत से कीट व रोग नुकसान पहुंचाते हैं, लेकिन खीरा फसल के कुछ प्रमुख कीट व रोग भी हैं, जिनका प्रभाव सीधा फसल पर पड़ता है.
इस विषय में कृषि जागरण द्वारा कृषि वैज्ञानिक पूजा पंत से बातचीत की गई है. उन्होंने इस बारे में विस्तार से बताया है किस तरह किसान खीरे की खेती (Cucumber Cultivation) में कीटों व रोगों की रोकथाम कर सकते हैं और फसल से अधिक से अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं.
खीरे की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट
कद्दू का लाल भृंग (रेड पम्पकिन बीटिल)
कृषि वैज्ञानिक पूजा पंत का कहना है कि यह कीट तेज चमकीला नारंगी रंग का होता है. इनका आकार लगभग 7 मि.मि लंबा और 4.5 मि.मि चौड़ा होता है. इस कीट का भृंग पीलापन लिए सफेद होता है. इसका सिर हल्का भूरा होता है. इस कीट के भृंग और व्यस्क, दोनों नुकसान पहुंचाते हैं. भृंग जमीन के नीचे रहता है और पौधों की जड़ों एवं तनों में छेद कर देता है. आमतौर पर इसके प्रौढ़ पौधों की छोटी पत्तियों को ज्यादा पसंद करते हैं और उन्हें खाते हैं. इस कीट का आक्रमण फरवरी माह से लेकर अक्टूबर तक होता है. अंकुरण के बाद बीज पत्रक से लेकर 4-5 पत्ती अवस्था की पौध को इस कीट से बहुत नुकसान होता है.
प्रबंधन
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गर्मी में खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए, जिससे इस कीट के अंडे व भृंग ऊपर आ जाए और तेज गर्मी से नष्ट हो जाए.
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पहली अवस्था में जब कम प्रकोप रहता है, वयस्क को हाथ से पकड़कर नष्ट कर देना चाहिए.
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कार्बेरिल 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए.
फल मक्खी
कृषि वैज्ञानिक पूजा पंत बताती हैं कि इस मक्खी का रंग लाल-भूरा होता है. इसके सिर पर काले व सफेद धब्बे पाए जाते हैं. खीरा, करेला, टिंडा, तोरई, लौकी, खरबूज, तरबूज आदि सब्जियों को यह मक्खी क्षति पहुंचाती है. मादा मक्खी फल के छिलके में बारीक छेद कर अंडे देती है और अंडे से मैगेट (लार्वा) निकलकर फलों के अंदर का भाग खाकर नष्ट कर देते है. यह कीट फल के जिस भाग में छेद करके अंडा देता है, वह भाग टेढ़ा होकर सड़ जाता है. इस कीट से ग्रसित फल संपूर्ण रूप से सड़ जाता है.
प्रबंधन
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क्षतिग्रस्त फलों को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए.
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गर्मी में खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए.
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20 मि.ली. मैलाथियान 50 ई.सी. व 200 ग्राम चीनी या गुड़ को 20 लीटर पानी में मिलाकर कुछ चुने हुए पौधों पर छिड़क देना चाहिए. इससे वयस्क आकर्षित होकर आते हैं व नष्ट हो जाते हैं.
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कार्बेरिल (0.1 प्रतिशत) कीटनाशक (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करना लाभदायक है, लेकिन रासायनिक दवा का छिड़काव फल तोड़कर ही करना चाहिए.
खीरे की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग
चूर्णिल आसिता (पाउडरी मिल्ड्यू)
कृषि वैज्ञानिक पूजा पंत का कहना है कि यह विशेष रूप से जाड़े वाली खीरा, लौकी, कद्दू पर लगने वाला सामान्य रोग है. इसका पहला लक्षण यह है कि पत्तियों और तनों की सतह पर सफेद या धुंधले धूसर धब्बों के रूप में दिखाई देता है. कुछ दिनों के बाद ये धब्बे चर्णयुक्त हो जाते हैं. सफेद चूर्णिल पदार्थ अंत में समूचे पौधे की सतह को ढक लेता है. इसके कारण फलों का आकार छोटा रह जाता है.
प्रबंधन
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रोग ग्रस्त फसल के अवशेष इकट्ठा करके खेत में जला देना चाहिए.
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फफूंदीनाशक दवा जैसे कैराथेन या कैलिक्सीन आधा मि.ली. दवा एक लीटर पानी में घोल बनाकर 7-10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें.
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इस दवा के उपलब्ध न होने पर प्रोपीकोनाजोल 1 मि.ली. दवा 4 लीटर पानी में घोल बनाकर 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें.
मृदुल आसिता (डाउनी मिल्ड्यू)
कृषि वैज्ञानिक पूजा पंत द्वारा बताया गया है कि यह रोग मुख्यत खीरा, परवल, खरबूज और करेला पर पाया जाता है. यह रोग वर्षा ऋतु के अंतराल जब तापमान 20-22 डिग्री सेंटी होता है. तेजी से फैलता है, उत्तरी भारत में इस रोग का प्रकोप अधिक होता है. इस रोग में पत्तियों पर कोणीय धब्बे बनते हैं. ये पत्ती के ऊपरी पृष्ठ पर पीले रंग के होते हैं. अधिक आर्द्रता की उपस्थिति में इन भागों के नीचे पत्ती की निचली सतह पर मृदोमिल कवक की वृद्धि दिखाई देती है.
प्रबंधन
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बीजों को मेटालेक्जिल नामक कवकनाशी से 3 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए.
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मैंकोजेब 0.25 प्रतिशत (2.5 ग्राम/लीटर पानी) घोल का छिड़काव करें.
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पूरी तरह रोग ग्रस्त लताओं को निकाल कर जला देना चाहिए.
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रोग रहित बीज उत्पादन करने के लए गर्मी की फसल से बीज उत्पादन करें.
म्लानि एवं जड़ विगलन रोग
कृषि वैज्ञानिक पूजा पंत की मानें, तो आमतौर पर यह रोग खीरा व खरबूज में पाया जाता है. बीज पत्र सड़ने लगता है. बीज पत्र व नए पत्ते हल्के पीले होकर मरने लगते हैं, रोग ग्रसित पत्तियां एवं पूरा पौधा मुरझा जाता है. नई पौधे का तना अंदर की तरफ भूरा होकर सड़ने लगता है. पौधे की जड़ भी सड़ जाती हैं.
प्रबंधन
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खेत की गर्मी में जुताई करें, साथ ही खाद का प्रयोग करें. ट्राइकोडर्मा 3-5 कि. ग्रा./हे की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर खेत में प्रयोग करें.
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रोग ग्रसित पौधों को खेत से निकालकर जला देना चाहिए.
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बीज को कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए.
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धान एवं मक्का के साथ 4 साल तक का फसल-चक्र अपनाना चाहिए.
फल विगलन रोग
कृषि वैज्ञानिक पूजा पंत से जानकारी मिली है कि यह रोग हर स्थान व खेत में पाया जाता है. मुख्य रूप से खीरा, तोरई, परवल, लौकी व कवक की अत्यधिक वृद्धि हो जाने से फल सड़ने लगता है. धरातल पर पड़े फलों का छिलका नरम, गहरे हरे रंग का हो जाता है. आर्द्र वायुमंडल में इस सड़े हुए भाग पर रूई के समान घने कवकजाल विकसित हो जाते हैं. यह रोग भंडारण आर परिवाहन के समय भी फलों में फैलता है.
प्रबंधन
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खेत की गर्मी में जुताई करें, साथ ही हरी खाद का प्रयोग करके ट्राइकोडर्मा 5 कि.ग्रा./हे की दर से खेत में डालें.
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खेत में उचित जल निकाल की व्यवस्था करें.
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फलों को भूमि के स्पर्श से बचाने का यत्न मल्च लगाकर व उलट-पलट करते रहना चाहिए.
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फसल को तार एवं अंबे के ऊपर चढ़ाकर खेती करने से इस रोग का प्रभावी नियंत्रण होता है.
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भंडारण एवं परिवहन के समय फलों को चोट लगने से बचाएं. इसके साथ ही हवादार व खुली जगह पर रखें.
श्यामवर्ण (एन्थ्रेकनोज)
कृषि वैज्ञानिक पूजा पंत बताती हैं कि पत्तियों पर भूरे व हल्के रंग के धब्बे पाए जाते हैं. पत्तियां सिकुड़ कर सबख जाती हैं. ये धब्बे तने व फलों पर पाए जाते हैं. यह रोग खरीफ में ज्यादा होता है.
प्रबंधन
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बीज को कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम दवा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए.
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खेत में रोग लक्षण शुरू होने पर कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी का घोल 10 दिन के अंतराल पर छिड़क देना चाहिए.
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रोगरोधी किस्मों को ही लगाना चाहिए.
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फसल अवशेष को जला दें.
खीरा मोजैक वायरस
कृषि वैज्ञानिक पूजा पंत कहती हैं कि यह रोग विशेषकर नई पत्तियों में चितकबरापन और सिकुड़न के रूप में प्रकट होता है. पत्तियां छोटी हरी-पीली हो जाती हैं और उनकी वृद्धि रूक जाती है. इसके प्रकोप से पत्तियां छोटी हो जाती हैं और पुष्प छोटी पत्तियों में बदले हुए दिखाई पड़ते हैं. कुछ पुष्प गुच्छों में बदल जाते हैं. ग्रसित पौधा बौना रह जाता है और उसमें फलत बिल्कुल नहीं होती है. इस तरह की समस्या लगभग सभी कद्दू वर्गीय सब्जियों में आती है.
प्रबंधन
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खेत में से रोगग्रस्त पौधों को उखाड़कर जला देना चाहिए.
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खेत के आस-पास से जंगली खीरा एवं इस कुल के अन्य खरपतवारों का उन्मूलन कर देना चाहिए.
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रोगरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए.
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रोग वाहक कीटों से बचाव करने के लए थायोमिथेक्साम 0.05 प्रतिशत (0.5 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी) का घोल बनाकर 10 दिन के अंतराल में 2-3 बार छिड़काव फल आने तक करें.
एकीकृत कीट प्रबंधन में ध्यान देने योग्य महत्वपूर्ण बातें
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नर्सरी के लिए सही स्थान का चुनाव, उसका उपचार व उचित प्रजाति/हाइब्रिड बीज का चयन, बीज का उपचार व स्वस्थ पौध उत्पादन
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सब्जियों की उत्तम गुणवत्ता व उत्पादकता प्राप्त करने के लिए खेत का सही चयन और उसकी अच्छी तरह तैयारी व उचित दूरी पर रोपाई आदि पर विशेष महत्व दें.
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फसल विशेष के कीटों/व्याधियों की पहचान, उनका जीवन-चक्र, नुकसान करने का समय व ढंग के सबंध में किसानों को समुचित ज्ञान होना आवश्यक है.