कई बार तपमान बढ़ने और गर्म हवाएं चलने से सब्जियों की फसलों में कीट और रोगों का प्रकोप होने लगता है. यह प्रकोप अधिकतर लौकी, तोरई, तरबूज, खरबूजा, पेठा, खीरा, टिंडा, करेला, कद्दू जैसी कद्दू वर्गीय सब्जियों में ज्यादा होता है. ऐसे में किसानों को समय रहते इन कीट और रोगों की रोकथाम कर देना चाहिए, क्योंकि इसका सीधा प्रभाव पैदावार पर पड़ता है.कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि गर्म मौसम में सब्जियों की फसलों में रोग लगने का खतरा कम होता है, लेकिन कीट लगने का खतरा ज्यादा होता है. ऐसा इसलिए, क्योंकि जब गर्मी बढ़ने लगती है, तो कीट छिपने के पत्तियों का सहारा लेने लगते हैं. इस कारण फसलों को अधिक नुकसान पहुंचता है. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इस समय मूंगफली, उड़द, मूंग और कद्दू वर्गीय फसलों को अधिक नुकसान पहुंच सकता है. ऐसे में किसानों को इन फसलों पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्कयता है. आइए आपको कद्दू वर्गीय सब्जियों में लगने वाले प्रमुख कीट और उनकी रोकथाम की जानकारी देते हैं.
प्रमुख कीट और उनकी रोकथाम
मेलान मक्खी: यह एक फलनाशक मक्खी मानी जाती है, जो कि तरबूज, खरबूज, कद्दू, खीरा जैसी सब्जियों को अधिक नुकसान पहुंचाती है. यह गर्मी के मौसम में ज्यादा सक्रिय हो जाती है. यह फल पर 4 से 8 छेद कर देती है, जिसमें अंडे देने लगती है. इसकी रोकथाम के लिए पेड़ की मिट्टी के चारों तरफ गुड़ाई कर दें. इससे प्यूपा धूप में मर जाते हैं. इसके साथ ही प्रभावित फलों को भूमि में कम से कम 600 मिमी गहराई पर दबा दें.
माहू: इस कीट के वयस्क और बच्चे, दोनों ही पौधों का सारा रस चूस लेते हैं. यह पत्तियों और ऊपरी सतह पर चढ़कर नुकसान पहुंचाते हैं. यह एक तरल पदार्थ विसर्जित करता है, जिस पर फफूंदी उगने लगती है. यह खरबूज, तरबूज, बैंगन, कपास, भिंडी, खीरा को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं. इसकी रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास या डेमीक्रान का छिड़काव कर देना चाहिए. ध्यान रहे कि इस विषैली दवा का छिड़काव फल पर न हो पाए. इसके अलावा नीम से बनने वाली दवा जैसे, मल्टीनीम, नीमरिन का उपयोग जड़ वाली सब्जियों में कर सकते हैं.
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लाल भृंग: इस कीट के लगने से कद्दू वर्गीय सब्जियों को काफी क्षति पहुंचती है. इसकी वयस्क सूड़ी लाल रंग की होती हैं, जो कि करीब 5 से 8 मिमी लंबी होती हैं. यह घास और झाड़ियों में छिपकर रहा करती हैं. जब तापमान बढ़ता है, तो घास और झाड़ियों से बाहर निकलकर आ जाती हैं. इनकी रोकथाम के लिए पेड़ की मिट्टी के चारों तरफ बीएचपी चूर्ण मिला दें. ध्यान दें कि इसकी मात्रा प्रति हेक्टेयर के अनुसार होनी चाहिए. इसका छिड़काव सुबह और शाम के समय करना चाहिए, क्योंकि यह इस समय ही ज्यादा नुसान पहुंचाती हैं.
लौकी का बग कीट: यह कीट पत्तियों, कलियों, तनों और फलों का सारा रस चूस लेते हैं. इस कीट के भी बच्चे और वयस्कस दोनों ही काफी हानिकारक होते हैं. जब फल बढ़वार की अवस्था में होता है, तब यह कीट फसल पर हमला करता है. इस कीट के प्रकोप से लौकी लकड़ी की तरह कड़ी बन जाती है. इसकी रोकथाम के लिए ओजोन बायोटेक, ओजानीम त्रिशूल 3000 पीपीएम, 10000 पीपीएम का उयोग कर सकते हैं.
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