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Updated on: 31 March, 2020 6:17 PM IST
फसल सुरक्षा

गर्मियों के दिन बिना तरबूज और खरबूज के अधूरे लगते हैं. इनका रंग और मिठास लोगों को बहुत पसंद होता है. इन फलों के सेवन से लू दूर भागती है. इनकी खेती यूपी, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार में सबसे अधिक होती है. मैदानी क्षेत्रों में तरबूज और खरबूज की बुवाई फरवरी में की जाती है. इसके बाद मई, जून, जुलाई में फलों की तुड़ाई होती है. इसके अलावा   पहाड़ी क्षेत्रों में अप्रैल-मई में बुवाई होती है. तरबूज और खरबूज की खेती में कई प्रमुख रोग और कीटों के लगने की संभावना होती है.

तरबूज और खरबूज में लगने वाले प्रमुख रोग (Major diseases of watermelon and melon)

मृदुरोमिल आसिता

यह रोग बारिश में तेजी से फैलता है. इस रोग से पत्तियों पर कोणीय धब्बे पड़ने लगते हैं. इसके साथ ही पत्तियों की ऊपरी सतह पीली पड़ जाती है.

रोकथाम

इस रोग की रोकथाम के लिए बीज को उपचारित करके बोना चाहिए. इसके लिए बीज को कवकनाशी से 3 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करें. इसके अलाव खड़ी फसल में मैंकोजेब 2.5 ग्राम 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़क दें.

चूर्णी फफूंद

इस रोग में पत्तियां और तनों की सतह पर सफेद या फिर धुंधले धुसर रंग के धब्बे पड़ जाते हैं. इसके बाद ये धब्बे चूर्णयुक्त होने लगते हैं. ये पौधे की सतह को ढक लेता है. इससे पौधे की पत्तियां गिरने लगती हैं. इस रोग से फलों का विकास सही से नहीं हो पाता है.  

रोकथाम

फसल को इस रोग से बचाने के लिए रोगग्रस्त पौधों को खेत में जला देना चाहिए. ध्यान दें कि किसान खेत में रोगरोधी किस्म की बुवाई करें. इसके अलावा 1 मि.ली. कैलिक्सीन का 1 लीटर पानी में घोल बना लें. इसका छिड़काव 7 दिन के अंतराल पर करते रहें.

खीरा मोजैक वायरस

इस रोग में पौधों की नई पत्तियों पर छोटे, हल्के पीले धब्बे पड़ने लगते हैं. पत्तियों में सिकुड़न आ जाती है. पौधे छोटे रह जाते हैं.

रोकथाम

इसकी रोकथाम के लिए 1 मि.ली. डाईमेथोएट को प्रति लीटर पानी में घोल लें. इसका 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करते रहें.

तरबूज वड नेक्रोसिस विषाण


इस रोग में पौधों की पत्तियों और डंठलों पर छोटे-छोटे धब्बे पड़ जाते हैं, जो ऊपर से सूखने लगते हैं. इसके साथ ही पत्तियों पर काले और फलों पर छल्लेदार धब्बे दिखाई देते हैं. बता दें कि यह रोग थ्रिप्स कीट द्वारा फैलता है. 

रोकथाम 

इस रोग की रोकथाम के लिए रोगरोधी किस्म की बुवाई करनी चाहिए. इसके अलाव रोगग्रस्त पौधों को उखाड़ कर जमीन में गाड़ देना चाहिए. कानफिडोर 3 मि.ली. को 10 लीटर पानी में घोलकर छिड़क दें. ध्यान दें कि यह फलों की तुड़ाई के 8 से 10 दिन बाद ही करें.  

तरबूज और खरबूज में लगने वाले प्रमुख कीट 

फल मक्खी

यह कीट फसल में फूल आने से पहले भूमि और तने पर अण्डा दे देता है, जिससे सड़न शुरू हो जाती है. इससे पौधा भी सूख जाता है. बता दें कि इस कीट से फल का वह हिस्सा खराब हो जाता है, जिस हिस्से पर कीट ने छेद करके अण्डा दिया है.

रोकथाम

खेत में फेरो मोन ट्रैप या फिर प्रकाश प्रपंच लगा देना चाहिए. इसके अलावा मिथाइल इंजीनॉल, सिनट्रोनेला तेल, एसिटिक अम्ल, लेक्टिक असिड में से किसा एक का घोल तैयार करके छिड़क देना चाहिए. 

कुम्हड़ा का लाल कीट

इस कीट का प्रकोप जनवरी से मार्च के बीच होता है. यह कीट पौधों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है, जिससे पौधा सूखने लगता है. इसके साथ ही पुराने और बड़े पौधे पीले पड़ने लगते हैं, साथ ही उनका विकास भी रुक जाता है.

रोकथाम

इस कीट के प्रकोप में प्रौढ़ को हाथ से पकड़कर मार देना चाहिए. इसके साथ ही आवश्यकतानुसार मैलाथियान चूर्ण, कार्बारिल चूर्ण को प्रति हेक्टर की दर से राख में मिलाकर बुरक देना चाहिए. ध्यान दें कि यह सुबह के समय़ करें.

English Summary: major diseases and pests occurring in melon and watermelon
Published on: 31 March 2020, 06:31 PM IST

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