स्ट्रॉबेरी एक बहुत ही स्वादिष्ट, खूबसूरत व दिल लुभाने वाला रसीला फल है. इसका स्वाद हल्का खट्टा-मीठा होता है. इसकी पूरी दुनिया में 600 किस्में मौजूद हैं. इसमें कई सारे विटामिन और लवण पाए जाते हैं, जो हमारे स्वास्थ के लिए काफी ज्यादा फायदेमंद हैं. इसमें बड़ी मात्रा में विटामिन C , विटामिन A और K पाया जाता है. जोकि रंगत निखारने, चेहरे से कील मुँहासे दूर करने, आँखो की रौशनी तेज करने व दाँतों की चमक बढ़ाने का काम करते हैं.
हमारे देश में पहले स्ट्रॉबेरी की खेती (Strawberry Farming) सिर्फ पहाड़ी क्षेत्रों जैसे- उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, कश्मीर आदि जगहों पर ही होती थी. लेकिन, वर्तमान समय में इसकी नई उन्नत प्रजातियों के विकास से इसकी खेती अब उष्णकटिबंधीय जलवायु में भी सफलतापूर्वक की जा रही है. जिस वजह से अब यह खेती मैदानी हिस्सों जैसे कि- दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार आदि राज्यों में भी की जा रही है. लेकिन अभी भी ऐसे कई किसान हैं, जिन्हें इसके खेती के बारे में ज्यादा ज्ञान नहीं है. अगर आप भी इस खेती के बारे जानना चाहते हैं, तो आज हम आपको अपने इस लेख में स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में विस्तारपूर्वक बतायेंगे, तो आइये जानते है...
मिट्टी का चुनाव (soil selection)
स्ट्रॉबेरी की खेती करने के लिए वैसे तो कोई मिट्टी तय नहीं की गई है, लेकिन इसकी अच्छी उपज लेने के लिए बलुई दोमट मिट्टी को काफी हद तक उचित माना गया है. इसकी खेती के लिए PH मान 5.0 से 6.5 तक उपयुक्त होता है. यह फसल शीतोष्ण जलवायु वाली फसल है जिसके लिए 20 से 30 डिग्री तापमान उपयुक्त रहता है.
उन्नत किस्में (Improved varieties)
भारत में स्ट्रॉबेरी की कई सारी किस्मों की खेती की जाती हैं. इसके व्यावसायिक फल उत्पादन के लिए इसकी सही किस्मों का चुनाव करना बेहद ही जरूरी है. किस्मों का चयन क्षेत्र की जलवायु व भूमि की विशेषताओं को ध्यान में रखकर ही करना चाहिए. देश में उगाई जाने वाली कुछ प्रमुख किस्में जैसे- फेस्टिवल, चान्डलर, फ्लोरिना, कैमा रोजा, विन्टर डॉन, ओसो ग्रैन्ड, स्वीट चार्ली, ओफरा, गुरिल्ला, टियोगा, डाना, टोरे, सेल्वा, पजारो, सीस्कैप, बेलवी, फर्न, इत्यादि है.
बुवाई/रोपण का तरीका (Method of sowing/planting)
इसके पौधों को रोपने का सही समय जलवायु पर ही निर्भर करता है. उत्तरी भारत में इसकी रोपाई सितंबर से लेकर नवंबर के मध्य तक की जा सकती है. इसक रोपण करते समय इस बात का ध्यान रहे कि रनर्स स्वस्थ तथा कीट एवं रोगरहित होने बहुत जरूरी है. यह पौधों के रोपण की दूरी, उगाई जाने वाली किस्म, मृदा की भौतिक दशा, रोपण विधि और उगाने की दशा इत्यादि पर निर्भर करता है. कुछ जगहों पर इसके रोपण की दूरी 30 X 60 cm रखते हैं. इसकी खेती करने के लिए प्रति हेक्टेयर करीब 55 हजार से 60 हजार पौधों की जरूरत पड़ती है. इसकी ज्यादा मात्रा में उपज लेने के लिए पौधे से पौधे एवं कतार से कतार की दूरी 30 cm रखी जाती है.
सिंचाई का तरीका (Irrigation method)
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पौधे लगाने के तुरंत बाद सिंचाई करें.
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समय समय पर नमी को ध्यान में रखकर सिंचाई करते रहें.
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स्ट्रॉबेरी में फल आने से पहले सूक्ष्म फव्वारे से सिंचाई कर सकते हैं, फल आने के बाद टपक विधि से ही सिंचाई करें.
निराई-गुड़ाई (Weeding)
पौधे लगाने के कुछ समय बाद खेतों में कई तरह के खरपतवार उगने लगते हैं. जो पौधों के साथ पोषक तत्वों, स्थान, नमी, वायु आदि के लिए स्पर्धा करते रहते हैं. इसके साथ ही ये कई तरह के कीट एवं रोगों को भी अपने साथ लाते हैं. अक्टूबर में रोपे गए पौधों से नवंबर में फुटाव शुरू होने लगता है. इसलिए ये फुटाव शुरू होने पर खेत की निराई-गुड़ाई करके खरपतवार को जितना जल्दी हो निकाल देना चाहिए.
तुड़ाई (Harvesting)
स्ट्रॉबेरी के फल की तुड़ाई अलग-अलग दिनों में करनी चाहिए. इसके फल को हाथ से नहीं पकड़ना चाहिए. जितना हो सके इसकी ऊपर वाली डंडी को पकड़ें. इसका औसत फल 7 से 12 टन प्रति हेक्टयेर तक निकलता है.
उपज (Yield)
स्ट्रॉबेरी के फलों की उपज कई चीजों पर निर्भर करती है. जैसे कि उगाई जाने वाली किस्म कैसी है, जलवायु सही है या नहीं, मृदा उपजाऊ है, पौधों की संख्या कितनी है, फसल प्रबंधन कैसा है, इत्यादि. किसान इसके प्रति पौधे से एक सीजन में 500 से 700 g फल प्राप्त कर सकते हैं. 1 एकड़ क्षेत्रफल में 80 -100 क्विटल तक फलों का उत्पादन हो सकता है. इस उत्पादन को किसान उपरोक्त वैज्ञानिक तकनीक व अच्छे फसल प्रबंधन को अपना कर बढ़ा भी सकते हैं.
खेती के लिए पौधे कहां से खरीदें (Where to buy plants for farming)
स्ट्रॉबेरी के पौधे खरीदने के लिए किसान भाई केएफ बायोप्लान्ट्स प्राइवेट लिमिटेड पुणे (KF Bio-Plants Pvt Ltd Pune) या फिर हिमाचल प्रदेश से भी इसका पौधा खरीद सकते हैं. बाजार में इसके पौधे की कीमत 10 रूपए से लेकर 30 रूपए तक तय की गई है.