चित्रक (Plumbago zeylanica) एक सदाबहार झाड़ी होती है. इसका पौधा हमेशा हरा-भरा रहता है. इस पौधे की जड़ें गठीली और तना सीधा रहता है, तो वहीं इस पौधे की तनें कठोर, फैली, गोलाकार, सीधी होती हैं. चित्रक के पौधे की पत्तियों और जड़ों से कई बीमारियों का इलाज किया जाता है. चित्रक की खेती पर राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड ने 50 प्रतिशत की सब्सिडी दी है. इस औषधीय पौधे को उत्तर प्रदेश, दक्षिण भारत, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, गुजरात आदि राज्यों में उगाया जाता है. अधिकतर लोगों ने अपने आस-पास चित्रक का पौधा देखा होगा, लेकिन उन्हें इसकी जानकारी नहीं होगी. आज हम अपने इस लेख में चित्रक की खेती के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं.
उपयुक्त जलवायु एवं मिट्टी (Suitable climate and soil)
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यह पौधा गहरी नालीदार रेतली व चिकनी मिट्टी युक्त भूमि में होता है.
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इस पौधे की वृद्धि के लिए आर्द्र स्थिति उपयुक्त नहीं होती है.
रोपण साम्रगी (Planting material)
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चित्रक कमल या बीजों से आसानी से उगाया जा सकता है.
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कलम पकी फसल से मार्च-अप्रैल महीने में एकत्र किए जा सकते हैं, जिनकी लंबाई 10-15 सेंटीमीटर तक और प्रत्येक में कम से कम तीन गांठें होनी चाहिए.
नर्सरी तकनीक (Nursery techniques)
पौध तैयार करना (Planting seedlings)
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इनके शीघ्र अंकुरण के लिए काटे गए टुकड़ों का उपचार किया जाता है. उपचार में 500 पी.पी.एम (पार्ट्स पर मिलियन) नेप्थलीन एसेटिक का उपयोग किया जाता है.
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तैयार टुकड़ों को बरसात के मौसम में उपचार के 24 घंटे के अंदर तैयार की गई क्यारियों में बो दिया जाता है.
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क्यारियों का आकार 10x1 मीटर होना चाहिए. यह ऐसे स्थानों पर होने चाहिए, जहां पेड़ और आंशिक धूप रहती हो.
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टुकड़ों को क्रम में बोया जाना चाहिए. इनमें 5 सेंटीमीटर का परस्पर अंतर होना चाहिए.
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इन क्यारियों की नियमित रूप से सिंचाई की जानी चाहिए.
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ये टुकड़े नर्सरी में अंकुरण के लिए एक महीने का समय लेते हैं.
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जुलाई में इन अंकुरित जड़ों को मुख्य खेत में लगा दिया जाता है.
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बीजों को मार्च के महीने में पॉलीबैग में बोया जाता है जिसमें रेत, मिट्टी की बराबर मात्रा का मिश्रण होता है.
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ये बीज अंकुरण के लिए 10 से 12 दिना का समय लेते हैं और तब तक 70 प्रतिशत बीजों में अंकुरण निकल आते हैं.
पौध दर (Planting Rate)
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एक हेक्टर भूमि के लिए लगभग 80 हजार अंकुरित कलमों या पौध की आवश्यकता होती है.
खेत में पौधे लगाना (Planting trees in the field)
भूमि तैयार करना और उर्वरक का उपयोग (Land preparation and fertilizer use)
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मई-जून महीने में जमीन तैयार कर ली जाती है.
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मानसून प्रारम्भ होते ही नर्सरी में उगाई गई पौध या अंकुरित कलमें मुख्य खेत में लगा दी जाती हैं.
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पौधे लगाने से एक महीने पहले जब हल चलाया जाता है और जमीन तैयार की जाती है, तो उसमें प्रति हेक्टेयर 10 टन उर्वरक में मिलाई जाती है.
पौधों का प्रत्यारोपण और उनमें अन्तर रखना (Plant transplantation and spacing)
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कलमों के अंकुरण के बाद 60 से 50 दिनों के अंदर पौध को मुख्य खेत में लगा दिया जाता है.
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पौधे लगाते समय उनमें परस्पर अंतर 50X25 सेमी. का रखना उचित रहता है. इससे फसल की पैदावार अधिक मात्रा में होती है.
अंतर फसल प्रणाली (Inter cropping system)
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चित्रक की खेती बागानों में फलदार पेड़ों जैसे, अमरूद, आम, नींबू जैसे पेड़ों के बीच की जा सकती है.
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इसे मेलिया अरबोरिया, ओरोजाइलम इंडिकम या अन्य औषधीय पेड़ों की प्रजातियों के बीच की जमीन पर भी उगाया जा सकता है.
संवर्धन विधियां (खेती के तरीके)
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पौधे लगाने के एक महीने बाद अगस्त महीने में खरपतवार निकालने के लिए पहली गुड़ाई की जानी चाहिए.
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दूसरी और तीसरी गुड़ाई अक्टूबर और दिसंबर में की जानी चाहिए.
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फसल की कटाई से पूर्व मई महीने में पौधों की कांट-छांट की जा सकती है.
सिंचाई विधियां (Irrigation methods)
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फसल की सिंचाई 4 से 5 बार- नवम्बर, जनवरी, मार्च, अप्रैल और मई में करना पर्याप्त होता है.
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बहते पानी की सिंचाई में प्रत्येक बार 2 सेमी. तक पानी रहना चाहिए.
बीमारी एवं कीटनाशक (Disease and Pesticide)
जब पौधे विकास के दौर में होते हैं, तो इन पर सेमी लूपर लार्वे और सूंड़ी हमला कर देते हैं, जिससे पौधों को भारी नुकसान होता है. ये कलियों और कोपलों को भी खा जाते हैं. इनकी रोकथाम के लिए मैलाथॉन का छिड़काव (स्प्रे) करना चाहिए, जिसे प्रति लीटर पानी में 2 मिली. की दर से तैयार किया जा सकता है. यह छिड़काव 15-15 दिन बाद दो बार करना चाहिए.
फसल का प्रबंधन (Crop Management)
फसल का पकना और उसकी कटाई (Crop Harvesting)
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खेत में पौध लगाने के बाद 10-12 महीनों में फसल तैयार हो जाती है.
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यदि फसल को पौधे लगाने के 12 महीने बाद काट लिया जाए, तो पैदावार अधिकतम होती है.
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एक हेक्टेयर खेत के लिए 20 हजार पौधे से 80 हजार कलमें तैयार की जा सकती है.
फसल काटने के बाद का प्रबंधन (post harvest management)
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जड़ों को जून की धूप में जमीन से निकाला जाना चाहिए, ताकि वे सूख जाएं.
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खेत में हल गहरा चलाना चाहिए, ताकि सभी जड़ें नजर आ जाएं. इन्हें तुरंत एकत्र कर लिया जाना चाहिए.
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जड़ों को निकालने के बाद साफ पानी से धोकर सुखाया जाएगा और उन्हें 5-7.5 सेमी. के टुकड़ों में काटा जाएगा.
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साफ और शुष्क जड़ों को हवारहित पॉलीबैग में पैक कर स्टोर किया जाएगा.
पैदावार (Production)
अगर खेत में फसल की स्थिति ठीक रहे, तो इसकी पैदावार 12 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टर हो सकती है.