अलसी रबी के मौसम की तिलहनी और रेशे वाली मुख्य फसल है. जिसका दो प्रकार से उपयोग होता है. पहला इसके बीजों से तेल निकलता है वहीं दूसरा उपयोग रेशे के लिए किया जाता है. इसके बीजों में 33 से 47 प्रतिशत तेल होता है. अलसी के तेल का उपयोग औषधीय और औद्योगिक उत्पादों के लिए किया जाता है. मवेशियों के लिए खली बनाने में भी अलसी का उपयोग होता है. दरअसल, यह खाने में स्वादिष्ट और प्रोटीन से भरपूर होती है. अलसी के उत्पादन में भारत का तीसरा स्थान है. यह देश के कई प्रांतों जैसे मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर में उगाई जाती है. आज हम आपको अलसी की सबसे नई और उन्नत किस्म जवाहर अलसी 165 के बारे में बताने जा रहे हैं. आईए जानते हैं कैसे करें इसकी खेती-
किस्म के बारे में
अलसी की इस उन्नत किस्म को मध्य प्रदेश के जबलपुर स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ने तैयार की है. जिसे उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर राज्य के लिए अनुशंसित किया गया है.
खेती की तैयारी
अलसी की इस उन्नत किस्म के अच्छे अंकुरण के लिए खेत को भुरभुरा और खरपतवार मुक्त होना चाहिए. इसके लिए खेत में दो-तीन बार हैरो चलाकर पाटा लगाना चाहिए. अलसी का बीज बेहद छोटा और महीन होता है इसलिए मिट्टी की भुरभुरी होगी तो अंकुरण अच्छा होगा.
बुवाई का समय
सिंचित क्षेत्र में अलसी की बुवाई नवंबर के पहले सप्ताह में करना चाहिए. वहीं असिंचित क्षेत्र में इसकी बुवाई अक्टूबर महीने के पहले सप्ताह में कर देनी चाहिए. इसकी बुवाई जितनी जल्दी होगी फसल की फली को मक्खी और पाउडरी मिल्ड्यू से बचाया जा सकता है.
बीज की मात्रा और बोने की विधि
इसकी उन्नत किस्म का बीज प्रति हेक्टेयर 25-30 किलो लगता है. वहीं पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 5.7 सेंटीमीटर रखना चाहिए. जबकि बीज को भूमि में 2.3 मीटर की गहराई में बोना चाहिए.
बीजोपचार
विभिन्न रोगों से बचाने के अलसी के बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए. बुवाई से पहले बीज को कार्बेन्डाजिम की 2.5 से 3 ग्राम मात्रा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए.
उर्वरक एवं खाद
अलसी के बेहतर पैदावार के लिए मिट्टी परीक्षण के मुताबिक उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए. हालांकि अंतिम जुताई के समय प्रति हेक्टेयर में 4 से 5 पकी हुई गोबर की खाद मिला देना चाहिए. वहीं प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन 60 किलो, फास्फोरस 80 किलो और पोटाश 40 किलो और सल्फर 20 किलो देना चाहिए.
सिंचाई
अलसी की फसल 2 सिंचाई में हो जाती है. पहली सिंचाई बुवाई के एक महीने बाद और दूसरी सिंचाई फल आने से पहले यानि 60 से 65 दिन बाद करना चाहिए.
खरपतवार प्रबंधन
पहली निराई गुड़ाई बुवाई के 20 से 25 दिन बाद करना चाहिए. दूसरी निराई गुड़ाई 40 से 45 दिन बाद करना चाहिए.
उत्पादन
अलसी की यह नई किस्म 160 से 170 दिन बाद पककर तैयार हो जाती है. इसका अन्य किस्मों की तुलना में 15 से 19 प्रतिशत तक को अधिक उत्पादन होता है. प्रति हेक्टेयर 21 से 22 क्विंटल उत्पादन होता है जिससे 454 किलोग्राम तेल निकलता है.