मौसम के अनुसार फल, सब्जी, अनाज के साथ-साथ कई मसालों की खेती की जाती है, जिसमें जायफल का नाम भी आता है. जायफल एक सदाबहार वृक्ष माना जाता है, जिसकी उत्पत्ति इंडोनेशिया का मोलुकास द्वीप माना जाता है.
मौजूदा समय की बात करें, तो जायफल की खेती भारत के साथ-साथ अन्य कई देशों में भी होती है. इसके कच्चे फलों का इस्तेमाल अचार, जैम, कैंडी बनाने में किया जाता है. इसके अलावा, सूखे फलों का इस्तेमाल सुगन्धित तेल, मसाले और औषधीय रूप में होता है. इसका पौधा लगभग 15 से 20 फिट ऊंचा होता है. भारत में इसकी खेती मुख्यतः केरल के त्रिशोर, एरनाकुलम व कोट्टयम और तमिलनाडू के कन्याकुमारी व तिरुनेलवेल्ली के कुछ भागों में होती है. अगर हमारे किसान भाई जायफल की खेती करना चाहते हैं, तो एक बार इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ते रहें, क्योंकि इस लेख में हम जायफल की खेती की संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
जायफल की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
इसकी खेती के लिए उचित गहरी उपजाऊ भूमि की जरूरत होती है, लेकिन व्यापारिक रूप से पौधों का विकास जल्दी करने के लिए बलुई दोमट मिट्टी या लाल लैटेराइट मिट्टी में उगाना चाहिए. इसकी खेती के लिए जल निकासी वाली मिट्टी अच्छी होनी चाहिए. इसके साथ ही भूमि का पी.एच. मान सामान्य होना चाहिए.
जलवायु
जायफल का पौधा उष्णकटिबंधीय जलवायु का है, इसलिए इसके पौधे के विकास के लिए सर्दी और गर्मी, दोनों मौसम की जरूरत होती है. ध्यान रहे कि इसकी खेती के लिए अधिक सर्दी और गर्मी उपयुक्त नहीं होती है. अंकुरण के समय 20 से 22 डिग्री के बीच का तापमान उचित रहता है. इसके बाद सामान्य तापमान की जरूरत होती है.
जायफल की उन्नत किस्में
जायफल की खेती करने के लिए आई.आई.एस.आर विश्वश्री, केरलाश्री व कुछ अन्य उन्नत किस्मों की बुवाई कर सकते हैं.
खेत की तैयारी
पौधों की रोपाई करने के लिए खेत में गड्डे तैयार किए जाते हैं, लेकिन उससे पहले सफाई कर खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को नष्ट कर दें. फिर खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई करें. इसके बाद कुछ दिन खेत को खुला छोड़ दें, ताकि मिट्टी में मौजूद हानिकारक कीट नष्ट हो जाएं. कुछ दिन बाद खेत की कल्टीवेटर से 2-3 तिरछी जुताई करें. फिर खेत में रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बनाएं. इसके बाद खेत में उचित दूरी पर पंक्तियों में गड्डे बना लें. सभी गड्डों के बीच 20 फीट के आसपास दूरी होनी चाहिए. इसके साथ ही हर पंक्तियों के बीच 18 से 20 फीट की दूरी होनी चाहिए.
पौध तैयार करना
इसकी खेती के लिए पौध बीज और कलम, दोनों तरीकों से नर्सरी में तैयार कर सकते हैं.
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बीज के तरीके से पौध तैयार करने के लिए बीजों में उचित मात्रा में उर्वरक मिलाएं. इसके बाद मिट्टी से भरी पॉलीथीन में लगाएं. इस पॉलीथीन को छायादार जगह में रख दें. जब पौधे अच्छी तरह अंकुरित हो जाएं, तब उन्हें लगभग एक साल बाद खेत में लगाएं.
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कलम के माध्यम से पौध तैयार करने के लिए कलम दाब और ग्राफ्टिंग होती है, लेकिन ग्राफ्टिंग विधि से पौध तैयार करना काफी आसान होता है. इसके लिए पौधों की शाखाओं से पेंसिल के सामान आकार वाली कलम तैयार करें. इसके बाद कलमों को जंगली पौधों के मुख्य शीर्ष को काटकर उनके साथ वी (<<) रूप में लगाकर पॉलीथीन से बांध दें.
पौध रोपाई का तरीका
रोपाई से पहले गड्डों के बीचोंबीच एक और छोटे आकार का गड्डा बनाएं. इसके बाद गोमूत्र या बाविस्टीन से उपचारित कर लें, ताकि पौधा किसी बीमारी की चपेट में न आए. फिर पौधे की पॉलीथीन को हटाकर उसमें लगा दें. इसके बाद पौधे के तने को 2 सेंटीमीटर तक मिट्टी से दबा दें.
पौध रोपाई का समय
रोपाई का सबसे उपयुक्त समय बारिश का मौसम होता है. पौधों की रोपाई जून के मध्य से अगस्त के शुरुआत तक कर दें. इसके अलावा पौधों को मार्च के बाद भी उगाया जा सकता है, लेकिन इस स्थिति में पौधों की ज्यादा देखभाल करनी पड़ती है.
पौधों की सिंचाई
शुरुआत में जायफल के पौधों को सिंचाई की जरूरत अधिक होती है. गर्मियों में 15 से 17 दिन के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए, तो वहीं सर्दियों में 25 से 30 दिन के अंतराल पर पानी देना चाहिए. बारिश के मौसम में पौधों को पानी की आवश्यकता नहीं होती है.
खरपतवार नियंत्रण
जायफल की खेती में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक तरीके से कर सकते हैं. इसके लिए पौधों की रोपाई के 25 से 30 दिन बाद हल्की गुड़ाई कर दें. इसके बाद गड्ढों में मौजूद खरपतवार को निकाल दें.
पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
जायफल के पौधों में कई तरह के कीट और रोगों का प्रकोप हो जाता है, इसलिए समय रहते देखभाल ना की जाए, तो पौधों का विकास काफी हद तक प्रभावित होता है, जिससे फसल की पैदावार प्रभावित होती है.
फलों की तुड़ाई और छटाई
जायफल की खेती में लगभग 6 से 8 साल बाद पैदावार मिलना शुरू होती है, लेकिन पौधों से पूर तरह पैदावार लगभग 18 से 20 साल बाद मिलती है. पौधे पर फल फूल खिलने के लगभग 9 महीने बाद पककर तैयार हो जाते हैं. इसके फल जून से लेकर अगस्त तक प्राप्त होते हैं. यह पकाने के बाद पीले दिखाई देते हैं. इसके बाद बाहर का आवरण फटने लगता है और तब फलों की तुड़ाई कर लेनी चाहिए. इस दौरान जायफल को जावित्री से अलग कर लेते हैं.
पैदावार
अगर आप जायफल की खेती करते हैं, तो पौधे को लगाने में अधिक खर्च शुरुआत में ही आता है. इसके पूर्ण रूप से तैयार एक पेड़ से सालाना लगभग 500 किलो सूखे हुए जायफलों की पैदावार मिल सकती है. बाजार में इनकी कीमत 500 रुपए प्रति किलो के आस-पास होती है. इस तरह किसान भाई एक बार में प्रति हेक्टेयर से लगभग 2 लाख रुपए तक की कमाई आसानी से कर सकते हैं.