भारत का गेहूं की खेती (Wheat Cultivation) और उत्पादन में प्रमुख स्थान है. इसके मुख्य उत्पादक राज्यों में पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश का नाम शामिल है. मौजूदा समय में देश में लगभग 8 करोड़ टन से ज्यादा गेहूं का उत्पादन हो रहा है.
हालांकि, देश में बढ़ रही जनसंख्या के मुताबिक गेहूं उत्पादन (Wheat Cultivation) में और वृद्धि की आवश्यकता है. इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों द्वारा नई-नई तकनीकियों को अपनाया जा रहा है, ताकि गेहूं का उत्पादन बढ़ाया जा सके. इन नई तकनीकों में बुवाई विधि, बीज दर, पोषक तत्व प्रबंधन, सिंचाई, खरपतवार नियन्त्रण व फसल संरक्षण आदि प्रमुख है.
मगर सबसे ज्यादा प्रमुख है किस्मों का सही चुनाव. आज हम इस लेख में गेहूं की एक नई किस्म (Wheat Variety) का उल्लेख करने वाले हैं, जिसे ब्रिटिश वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया है.
गेहूं की नई किस्म (New Variety of Wheat)
ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक हर्टफोर्डशायर में गेहूं की जेनेटिकली मोडिफाइड किस्म उगा रहे हैं. यह प्रोजेक्ट पर लगभग 5 साल तक कार्य चलेगा. ऐसा पहली बार है कि जब यूके या यूरोप में जीन एडिटिंग तकनीक से गेहूं उगाया जा रहा है.
बता दें कि अमेरिका और चीन में इस तकनीक से गेहूं उगाया जा चुका है. खास बात यह है कि गेहूं की नई किस्म (Wheat Variety) कैंसर का खतरा घटाने के लिए बहुत सहायक है. इसमें एसपर्जिन नाम के अमीनो एसिड की मात्रा को घटाया गया है.
अमीनो एसिड 90 प्रतिशत कम (90% Less Amino Acids)
शोधकर्ताओं की मानें, तो गेहूं की नई किस्म की जांच करने पर एक्रेलामाइड की मात्रा दूसरी सामान्य गेहूं की किस्म (Wheat Variety) से 90 प्रतिशत तक कम है. इस नई किस्म से लोगों के खान-पान और पैकेज फूड से एक्रेलामाइड का खतरा कम होगा.
एसपर्जिन को हटाया जाता (Aspergine is Removed)
शोधकर्ताओं के मुताबिक, जब सामान्य गेहूं से ब्रेड को बेक्ड या रोस्ट किया जाता है, तो इसमें मौजूद एसपर्जिन कैंसर फैलाने वाले तत्व एक्रेलामाइड में बदल जाता है. इसकी वजह से कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है.
मगर शोधकर्ताओं ने गेहूं की नई किस्म (Wheat Variety) में जीन एडिटिंग करके एसपर्जिन को हटा दिया है. इस तरह गेहूं की नई किस्म काफी लाभकारी साबित हो सकती है.
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