भारत में अगर कृषि व्यवस्था की अगर बात करें, तो इसमें कृषि कार्य यानी खेती-बाड़ी के साथ-साथ पशुपालन भी मुख्य भूमिका अदा करता है. ऐसे में जरुरी है कि कृषि योजना के तहत सरकार पशुपालन की ओर भी अपना ध्यान केन्द्रित करे, ताकि इस क्षेत्र में रोजगार करने वाले लोगों को कोई समस्या ना हो.
मगर बात अगर पशु चिकित्सा सेवाओं की करें, तो उसकी हालत हमारे समाज में काफी जड़-जड़ स्थिति है. हाल ही में, सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में पशु चिकित्सा सेवाओं की पहुँच सुनिश्चित करने के लिये ‘पशुधन स्वास्थ्य एवं रोग नियंत्रण कार्यक्रम’ के संशोधित प्रावधानों के तहत ‘सचल पशु चिकित्सा सेवा इकाईयों’ (Mobile Veterinary Services Unit: MVU) की शुरुआत की है. इस कार्यक्रम का मुख्य मकसद ये है कि वाहनों पर घूम-घूम कर ग्रामीण इलाकों के पशुओं को रोग मुक्त करना.
आपको बता दें कि इन वाहनों में सभी प्रकार के उपकरण मौजूद रहते हैं और इस वाहन में जीपीएस ट्रैकिंग जैसी एडवांस टेक्नोलॉजी का भी इस्तेमाल किया गया है. इतना ही नहीं, इसमें पशु-रोगों के निदान, उपचार और सामान्य सर्जरी के लिये उपकरण तथा अन्य बुनियादी आवश्यकताएँ उपलब्ध होती हैं. ग्रामीण इलाकों में इसको लेकर जागरूकता फैलाई जा सके, इसके लिए ऑडियो-विजुअल विज्ञापन की भी व्यवस्था है. यह पशु-चिकित्सा सेवाओं की दरवाज़े तक पहुँच (Door Step Delivery) सुनिश्चित करेगा ये भारत सरकार की कोशिश है. पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण कार्यक्रम’ में एक लाख पशुओं के लिये एक एम.वी.यू. की परिकल्पना की गई है. एम.वी.यू. से देशभर में पशु-चिकित्सकों और सहायकों के लिये रोज़गार के अवसरों में भी वृद्धि होगी.
20वीं पशुधन गणना की रिपोर्ट
जनगणना के स्वरुप पशुओं के रिकॉर्ड को बनाए रखने के लिए साल 1919-20 से प्रत्येक पांच वर्ष में पशुओं की गिनती की जाती है. इसमें सभी पालतू जानवरों की कुल गणना को शामिल किया जाता है. वहीँ 16 अक्टूबर 2019 को मतस्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के पशुपालन व डेयरी विभाग ने 20वीं पशु गणना रिपोर्ट जारी की थी. जिसमे मंत्रालय ने कुछ ख़ास विन्दुओं को दर्शाते हुए जनता और पशुपालकों का ध्यान इस ओर केन्द्रित किया था. तो आइये जानते हैं क्या थी 2019 की वो रिपोर्ट.
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पशुधन गणना-2019 के अनुसार देश में कुल पशुधन आबादी 535.78 मिलियन है, जिसमें पशुधन गणना- 2012 की तुलना में 4.6% की वृद्धि हुई है.
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पश्चिम बंगाल में पशुओं की संख्या में सबसे अधिक (23%) की वृद्धि हुई, उसके बाद तेलंगाना (22%) का स्थान रहा.
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देश में कुल मवेशियों की संख्या में 0.8% की वृद्धि हुई है.
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यह वृद्धि मुख्य रूप से वर्ण शंकर मवेशियों और स्वदेशी मादा मवेशियों की आबादी में तेज़ी से वृद्धि का परिणाम है.
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उत्तर प्रदेश में मवेशियों की आबादी में सबसे ज़्यादा कमी देखी गई है, हालाँकि राज्य ने मवेशियों को बचाने के लिये कई कदम उठाए हैं.
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पश्चिम बंगाल में मवेशियों की आबादी में सबसे अधिक 15% की वृद्धि देखी गई है.
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कुल विदेशी/क्रॉसब्रीड मवेशियों की आबादी में 27% की वृद्धि हुई है.
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2018-19 में भारत के कुल दूध उत्पादन में क्रॉस-ब्रीड मवेशियों का योगदान लगभग 28% था.
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जर्सी या होलेस्टिन जैसे विदेशी और क्रॉसब्रीड मवेशियों की दुधारू क्षमता अधिक है, इसलिये कृषकों द्वारा इन मवेशियों को अधिक पसंद किया जा रहा है.
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कुल देशी मवेशियों की आबादी में 6% की गिरावट देखी गई है.
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राष्ट्रीय गोकुल मिशन के माध्यम से देशी नस्लों के संरक्षण को बढ़ावा देने के सरकार के प्रयासों के बावजूद, भारत के स्वदेशी मवेशियों की संख्या में गिरावट जारी है.
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उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि राज्यों में सबसे अधिक गिरावट देखी गई है, जिसका कारण बहुत हद तक गौहत्या कानून है.
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कुल दुधारू मवेशियों में 6% की वृद्धि देखी गई है.
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आँकड़े बताते हैं कि देश में कुल मवेशियों का लगभग 75% मादा (गाय) हैं, यह दुग्ध उत्पादक पशुओं के लिये डेयरी किसानों की वरीयताओं का एक स्पष्ट संकेत है. गायों की संख्या में वृद्धि का कारण सरकार द्वारा किसानों को उच्च उपज वाले बैल के वीर्य के साथ कृत्रिम गर्भाधान की सुविधा प्रदान करना है.
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बेकयार्ड पोल्ट्री में लगभग 46% की वृद्धि हुई.
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बेकयार्ड मुर्गी पालन में वृद्धि ग्रामीण परिदृश्य में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव है जो गरीबी उन्मूलन के संकेत को दर्शाता है.
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कुल गोजातीय जनसंख्या (मवेशी, भैंस, मिथुन और याक) में लगभग 1% की वृद्धि देखी गई है.
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भेड़, बकरी और मिथुन की आबादी दोहरे अंकों में बढ़ी है जबकि घोड़ों, सूअर, ऊँट, गधे, खच्चर और याक की गिनती में गिरावट आई है.
(Source: PIB)
भारत में पशुपालन का लाभ
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ग्रामीण क्षेत्रों की अगर बात करें, तो पशुपालन ( Animal Husbandry) में छोटे व सीमांत किसानों तथा खेतिहर मजदूरों के लिये अतिरिक्त आय सृजन के अवसर उपलब्ध कराता है.
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यह ग्रामीण तथा अर्ध-ग्रामीण क्षेत्रों के कम आय समूहों के लिये पौष्टिक आहार के रूप में दूध के साथ ही मांस आदि की उपलब्धता को भी सुनिश्चित करता है और अधिक मुनाफा का श्रोत भी.
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मवेशियों के गोबर से निर्मित खाद मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण है. ग्रामीण क्षेत्रों में वर्तमान में भी कृषि-कार्यों के लिये इन पशुओं का प्रयोग किया जाता है.
चुनौतियाँ
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20वीं पशुधन जनगणनाके अनुसार, भारत में अधिकांश पशुधन आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में केंद्रित है.
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जिस वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में पशु-चिकित्सा सेवाओं को पहुँचाना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है.
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केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय द्वारा गठित स्थाई समिति के अनुसार पशु चिकित्सा रोगों के लिये अपर्याप्त परीक्षण और उपचार सुविधाओं की कमी है जो की हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती है.
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मीण क्षेत्रों में समय पर चिकित्सा सेवाओं तक पर्याप्त पहुँच न होने के कारण पशुओं की आयु तथा उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
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मीण क्षेत्रों में अप्रशिक्षित पशु स्वास्थ्य कार्यकर्ता की उपलब्धता आसान होती है, जिनके त्रुटिपूर्ण इलाज (विशेषकर मास्टिटिस रोग के संबंध में) ने एंटीबायोटिक प्रतिरोध जैसी समस्याओं को बढ़ावा दिया है.
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ग्रामीण समुदायों में दवा वितरकों के सेल्समैन की बढ़ती उपस्थिति से पशु स्वास्थ्य का मुद्दा जटिल हो गया है.
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ग्रामीण पशुपालकों की अनभिज्ञता का लाभ उठाते हुए पशुओं को तत्काल राहत प्रदान करने वाली दवाओं को बेचते हैं, जो पशुओं के दीर्घकालिक स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होती है.
समाधन
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ग्रामीण क्षेत्रों में पशु चिकित्सा सेवाओं की बेहतर पहुँच सुनिश्चित करने के लिये सरकार को इस और विशेष ध्यान देने की जरुरत है. साथ ही पशु चिकित्सा इकाईयों की संख्या में वृद्धि की जानी चाहिये.
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इसके लिये निजी भागीदारी को बढ़ावा देने की आवश्यकता है, ताकि वो इसकी सही मांगों को सही समय पर सुनिश्चित करवा सकें.
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अप्रशिक्षित पशु स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को उचित प्रशिक्षण प्रदान कर ग्रामीण तथा दूरदराज़ के क्षेत्रों में उत्कृष्ट चिकित्सा सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकती है. इससे इस क्षेत्र का भाड़ कम होगा.
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ग्रामीण क्षेत्रों में केवल सरकार द्वारा प्रशिक्षित तथा मान्यता प्राप्त सेल्समेन को दवा बिक्री की अनुमति दी जानी चाहिये. इसका परिणाम दो क्षेत्रों में दिखाई देगा, पहला काला बाज़ारी की कोई गुंजाइश नहीं और दूसरा पशुपालकों को उचित परामर्श के साथ दवा उपलब्ध कराई जा सकेगी.
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पारंपरिक कृषकों के समान पशुपालकों तक भी ऋण तथा पशुधन बीमा तक पहुँच सुनिश्चित किया जाना चाहिये.
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पशुपालन क्षेत्र में सहकारी समितियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये ताकि उन्नत डेयरी उद्योग का विकास किया जा सके.