Mahabodhi Temple : पटना से करीब 92 किलोमीटर की दूरी पर फल्गु नदी के पश्चिम में बिहार का एक प्राचीनतम नगर गया है. जिसका विशेष धार्मिक महत्व है. धार्मिक दृष्टिकोण से अगर इसे बिहार का बनारस कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा. यहां अनेकों मन्दिर है जिनका अपना एक अलग इतिहास है. छठीं शताब्दी ई. पूर्व में बौद्ध धर्म और जैन धर्म के उद्गम स्त्रोत के रूप में बिहार ने संसार को संदेश दिया. ऐसा कहा जाता है कि भगवान बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति के लगभग 250 साल बाद सम्राट अशोक बोध गया आए थे तथा उन्होंने ही महाबोधि मन्दिर का निर्माण कराया था. साथ ही पूरी तन्मयता से बौद्ध धर्म को अपना कर उसके प्रचार- प्रसार में लग गए. इतना ही नहीं सम्राट अशोक के उत्तरकालीन राजवंशों ने भी इस धर्म का खूब प्रचार-प्रसार किया. इस धर्म का प्रचार मध्य एशिया, चीन, जापान ,तिब्बत, वर्मा, थाईलैंड व कम्बोडिया और अन्य दूर देशों में खूब हुआ. आज भी इन देशों में सहस्त्र शताब्दियों के बाद भी अटूट परंपरा बनी हुई है.
विष्णु का नगर माना जाता है 'गया'
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गया को भगवान विष्णु का नगर माना गया है. यह मोक्षभूमि है . विष्णु पुराण और वायु पुराण में भी इसका उल्लेख किया गया है. विष्णु पुराण के अनुसार, यहां पिंडदान करने से मोक्ष मिलता है. ऐसी मान्यता है कि यहां स्वयं भगवान विष्णु पितृ देवता के रूप में विराजमान हैं, जिसकी वजह से इसे 'पितृ तीर्थ' भी कहा जाता है. गया को ‘मोक्षस्थली’ भी कहा जाता है. यहां साल में 17 दिनों का मेला लगता है जिसे पितृपक्ष मेला कहते हैं. इस मेले में फल्गु नदी के तट पर स्थित विष्णुपद मंदिर के करीब और अक्षयवट के पास पिंडदान करने की मान्यता है. इस विष्णुपद मंदिर का जीर्णोद्धार 18वीं शताब्दी के अंत में इंदौर की रानी अहिल्याबाई ने करवाया था.
महाबोधि : जहां गौतम बुद्ध को हुई थी ज्ञान की प्राप्ति
बोधगया बिहार के गया जिले में स्थित है. बौद्ध धर्म में विश्वास रखने वाले श्रद्धालुओं के लिए पवित्र स्थान है. यहां महाबोधि मंदिर सबसे अधिक पूजनीय स्मारकों में से एक है. इस मंदिर को वर्ष 2002 में विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया था. कहा जाता है कि महाबोधि वो स्थान है, जहां गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. जिस बोधि वृक्ष के नीचे उनको ज्ञान की प्राप्ति हुई थी वहाँ आज भी एक पीपल का पेड़ है जिसे बोधि वृक्ष कहते है. पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए यह आकर्षण का मुख्य केंद्र है. मुख्य मन्दिर के पीछे भगवान बुद्ध की लाल बलुए पत्थर की 7 फिट ऊँची मूर्ति है जो वज्ररासन मुद्रा में स्थापित है. कहते है कि तीसरी ई0 पू0 में सम्राट अशोक ने यहां पर हीरे से बना राज सिंहासन लगवाया था. इस मूर्ति के आगे भूरे बलुए पत्थर पर बुद्ध के विशाल पद चिन्ह बने है, जिन्हें धर्मचक्र परिवर्तन का प्रतीक भी माना गया है. साथ ही यहां कई तरह के बुद्ध की प्रतिमा भी देखने को मिल जाएंगी. अलग-अलग ध्यान मुद्राओं में गौतम बुद्ध के दर्जनों मठ हैं, जिनमें प्रमुख तिब्बतियन मठ, बर्मी विहार, जापानी मन्दिर, चीनी मन्दिर, थाई मठ, भूटानी मठ एवं वियतनामी मन्दिर है.
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बौद्ध मठ को बोधि- मंडल कहा गया
बोध गया में बुध पूर्णिमा के अवसर पर वैशाख के महीने में एक वार्षिक मेला लगता है. ऐतिहासिक दृष्टि से इस स्थान को उरूवेला, वज्रसेना, महाबोधि या संबोधि के नाम से जाना जाता है क्योंकि ये सभी नाम बुद्ध द्वारा मोक्ष प्राप्ति से संबंधित है. बोधगया परिसर में स्थित प्रमुख बौद्ध मठ को पहले बोधि- मंडल बिहार कहा जाता था. मन्दिर के चारों ओर पत्थर की शानदार नक्काशीदार रेलिंग बनी है जो बोधगया में प्राप्त सबसे प्राचीन अवशेष है. इस मन्दिर के दक्षिण पूर्व में एक सुन्दर पार्क है जहाँ बोधि भिक्षु ध्यान साधना करते है