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Updated on: 4 February, 2025 12:00 AM IST
भारतीय खाद्य एवं कृषि चैंबर (ICFA) द्वारा दिल्ली में आयोजित "पोस्ट यूनियन बजट-2025" बैठक में डॉ. राजाराम त्रिपाठी

इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, दिल्ली में इंडियन चैंबर ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर (ICFA) द्वारा "पोस्ट यूनियन बजट-2025" पर महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई. इस बैठक की अध्यक्षता चेंबर के डायरेक्टर जनरल डॉ. तरुण श्रीधर (पूर्व सचिव, पशुधन एवं डेयरी मंत्रालय, भारत सरकार) ने की, जबकि संचालन चेंबर की मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्रेयसी अग्रवाल ने किया.

गौरतलब है कि पिछले दिसंबर में कृषि तथा कृषि संबद्ध उद्योगों की देश के शीर्ष संस्थान 'इंडियन चैंबर ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर' की कार्यकारिणी के पुनर्गठन के दौरान 'अखिल भारतीय किसान महासंघ' (आईफा) के राष्ट्रीय संयोजक, किसान वैज्ञानिक डॉ. राजाराम त्रिपाठी को चेंबर का  सदस्य बनाया गया था. यह पोस्ट-बजट समीक्षा बैठक उनकी पहली आधिकारिक बैठक थी, जिसमें उन्होंने किसानों के हक में तथ्यों और आंकड़ों के साथ दमदार तरीके से अपनी बात रखी.

बैठक में बजट 2025-26 में कृषि क्षेत्र के लिए किए गए प्रावधानों, किसानों की समस्याओं और आवश्यक सुधारों पर विस्तार से चर्चा हुई. इसी दौरान बस्तर से दिल्ली पहुंचे डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने पहली ही बैठक में जोरदार तरीके से किसानों का पक्ष रखा और कृषि बजट, एमएसपी गारंटी कानून, जैविक खेती, किसान क्रेडिट और कृषि अनुसंधान जैसे अहम मुद्दों पर सरकार को ठोस कदम उठाने की मांग की.

"पोस्ट यूनियन बजट-2025" बैठक में कृषि बजट कटौती पर उठे सवाल

खेती के लिए अलग बजट जरूरी!

डॉ. त्रिपाठी ने कहा, "जब रेलवे के लिए अलग बजट हो सकता है, तो कृषि के लिए क्यों नहीं? 61% आबादी की आजीविका खेती पर निर्भर है और 1.5 अरब लोगों को भोजन उपलब्ध कराने वाले इस सेक्टर का बजट हर साल महंगाई के मुकाबले घटता जा रहा है." उन्होंने बताया कि 2023-24 में कृषि बजट 1.25 लाख करोड़ था, जिसे 2024-25 में बढ़ाकर 1.52 लाख करोड़ किया गया. अब 2025-26 में इसे केवल 1.75 लाख करोड़ किया गया है, यानी महंगाई और मुद्रास्फीति को देखते हुए यह बजट बढ़ोतरी नहीं बल्कि व्यावहारिक कटौती है.

सरकार को ये करना होगा

अलग कृषि बजट लाया जाए: जब रेलवे के लिए अलग बजट संभव है, तो देश के सबसे महत्वपूर्ण सेक्टर खेती के लिए अलग से बजट क्यों नहीं? कृषि नवाचारों और किसान वैज्ञानिकों के लिए अलग फंड: आधुनिक तकनीकों और नवाचारी किसानों को बढ़ावा देने के लिए बजट में अलग राशि तय हो. केवीके (कृषि विज्ञान केंद्र) को मजबूत किया जाए: देशभर के केवीके केंद्रों को सशक्त बनाया जाए और वहां हो रहे भेदभाव को खत्म किया जाए.

जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाए: जैविक उत्पादों की प्रमाणन प्रक्रिया सरल, पारदर्शी और किसान-हितैषी हो. "एपीडा (APEDA) की ट्रेसनेट प्रणाली इतनी जटिल है कि अच्छे-खासे पढ़े-लिखे किसान भी इसमें उलझ जाते हैं."

कृषि शोध बजट में कटौती बंद हो: डॉक्टर-इंजीनियरिंग के शोध छात्रों की तरह ही कृषि शोध छात्रों के लिए भी समान अवसर दिए जाएं. अनुदान में भेदभाव खत्म हो: छोटे, मझोले और बड़े किसानों में भेदभाव किए बिना सभी को अनुदान मिले, क्योंकि खेती के जोखिम – सूखा, अतिवृष्टि, बीमारियां – सभी किसानों के लिए समान होते हैं.

किसान क्रेडिट सीमा 5 लाख हुई, पर कर्ज से समस्या नहीं सुलझेगी: "कर्ज समाधान नहीं है, किसानों को उनके उत्पादों का वाजिब दाम मिले, तभी उनकी आय बढ़ेगी." इसके लिए सरकार को एमएसपी गारंटी कानून लाना होगा.

पहली ही बैठक में किसानों की आवाज बुलंद!

चेंबर की पहली ही बैठक में डॉ. त्रिपाठी ने किसानों की दुर्दशा और कृषि क्षेत्र की अनदेखी पर खुलकर सवाल उठाए. उन्होंने कहा, "बजट 1.75 लाख करोड़ का जरूर हुआ है, लेकिन वास्तविकता यह है कि महंगाई के अनुपात में यह कटौती ही है. कृषि क्षेत्र को मजबूत करने के लिए ठोस नीतिगत बदलाव जरूरी हैं."

उन्होंने एमएसपी गारंटी कानून लाने की मांग करते हुए कहा कि "सरकार, नीति निर्माता, कृषि विशेषज्ञ और किसान संगठनों को मिलकर एक व्यवहारिक नीति तैयार करनी चाहिए. अगर सरकार पहल करे तो 'अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा)' और अन्य किसान संगठन इस दिशा में सकारात्मक पहल करने के लिए तैयार हैं." अंत में उन्होंने कहा कि बजट पर विस्तृत सुझाव एक पत्र के माध्यम से चेंबर को भेजे जाएंगे. बैठक में अन्य विशेषज्ञों ने भी अपने विचार रखे और यह सहमति बनी कि कृषि क्षेत्र को मजबूत करने के लिए ठोस नीतिगत कदम उठाने की जरूरत है.

English Summary: msp guarantee law farmers loans Demanded to increase agriculture budget organic farming
Published on: 04 February 2025, 11:15 IST

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